(सामान्य अध्ययन, मुख्य परिक्षा प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, प्रश्नपत्र- 3 : बुनियादी ढाँचा- ऊर्जा)
पृष्ठभूमि
21 अप्रैल, 2020 को अमेरिका में कच्चे तेल के वायदा कारोबार में ऐतिहासिक गिरावट देखी गई। व्यापार के दौरान यह शून्य के स्तर से भी नीचे (– 37 डॉलर प्रति बैरल) चला गया।
तेल की कीमतों में गिरावट के मुख्य कारण
- कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के चलते तेल की वैश्विक खपत में कमी आना।
- मांग में कमी आने के बाबजूद तेल के उत्पादन में कमी नहीं की गई।
- विश्व के अधिकांश हिस्सों में लॉकडाउन की वजह से अंतर्राष्ट्रीय विमानन उद्योग में ठहराव।
- विश्व की अधिकतर तेल भंडारण क्षमताएँ पूरी हो चुकी हैं, अब कच्चे तेल के लिये अतिरिक्त भंडारण क्षमता उपलब्ध नहीं है।
- सऊदी अरब और रूस के मध्य तेल उत्पादन बढ़ाने के सम्बंध में जारी ‘कीमत युद्ध’ (Price War)।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- भारत अपने कच्चे तेल की आवश्यकता का 80 प्रतिशत से भी अधिक आयात करता है।
- कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से सरकार के आयात बिल में कमी आती है। साथ ही, चालू खाता घाटा (Current Account Deficit-CAD) तथा राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) भी कम होते हैं।
- कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने से तेल (पैट्रॉल व डीज़ल) सस्ता होने के कारण परिवहन लागत में कटौती होती है, जिससे महँगाई दर में कमी आती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये चुनौतियाँ
- अत्यधिक सस्ता कच्चा तेल भी भारतीय अर्थव्यवस्था के हित में नहीं है। कच्चे तेल की कीमतों में अत्यधिक कमी से भारतीय तेल कम्पनियों का मुनाफा कम होता है।
- ध्यातव्य है कि खाड़ी देशों में बड़ी संख्या में भारतीय श्रमिक कार्य करते हैं, तेल की कीमतों में अत्यधिक गिरावट होने से उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था अस्थिर हो सकती है, फलस्वरूप इन कामगारों के लिये आजीविका का संकट उत्पन्न हो सकता है।
- तेल उत्पादक खाड़ी देशों से भारत को बड़ी मात्रा में हस्तांतरित आय (Remittance) प्राप्त होती है, अगर वहाँ किसी प्रकार का आर्थिक संकट उत्पन्न होता है तो भारत को विदेशों से प्राप्त होने वाली आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- उपर्युक्त चुनौतियों के अतिरिक्त, तेल की कीमत बहुत ज़्यादा कम होने से लोग उसका लापरवाही से उपभोग करते हैं, जिसके कारण प्रदूषण बढ़ने से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- भारत में निवेश करने वाले ‘सॉवरेन वेल्थ फंड’ की आय का मुख्य स्त्रोत तेल कारोबार से प्राप्त मुनाफा है। इसीलिये तेल की कीमतों में कमी से भारत के विदेशी निवेश में कमी हो सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अवसर
- सरकार कम कीमत पर कच्चे तेल का आयात करके अपने रणनीतिक तेल रिज़र्व में वृद्धि कर सकती है, जिससे भविष्य में तेल बाज़ार में होने वाली अस्थिरता से निपटा जा सकता है।
- भारत को अपने समस्त तेल भण्डारण टैंकों की क्षमता का सौ फीसदी उपयोग करते हुए अतिरिक्त तेल भण्डारण क्षमता विकसित करनी चाहिये।
- सरकार द्वारा जनता को तेल मूल्य में कमी का सीमित मात्रा में लाभ देकर शुल्क में वृद्धि करके, राजकोषीय घाटे एवं चालू खाता घाटे को कम किया जा सकता है।
क्या हो आगे की राह ?
विश्व का प्रमुख तेल आयातक होने के नाते भारत को तेल की कीमतों में वर्तमान कमी का लाभ अवश्य उठाना चाहिये। साथ ही, अपनी दीर्घकालीन ऊर्जा नीति में जीवाश्म ईंधन की बजाय वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों के उपयोग को प्राथमिकता देनी चाहिये।