भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बिहार स्थित साइक्लोपियन दीवार के मानचित्रण एवं त्रि-आयामी (3D) सर्वे के लिए परियोजना शुरू की है।
साइक्लोपियन वॉल मानचित्रण परियोजना
- प्रारंभ : जनवरी 2025 से
- उद्देश्य : वॉल (दीवार) के स्थापना काल एवं इतिहास के बारे में जानकारी ज्ञात करना
- हितधारक : भारतीय पुरातत्व विभाग, इसरो एवं भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान
- प्रमुख लक्ष्य : बेहतर त्रि-आयामी दस्तावेजीकरण के लिए मल्टी-सोर्स-मल्टी-प्लेटफॉर्म (टेरेस्ट्रियल लेजर स्कैनर, टेरेस्ट्रियल कैमरा एवं हाई रेजोल्यूशन डाटा) से प्राप्त डाटा का एकीकरण करना
- प्रथम चरण : इसमें भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान, देहरादून द्वारा त्रि-आयामी दस्तावेजीकरण एवं मॉडलिंग के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों व विधियों का उपयोग किया जा रहा है।
- सर्वेक्षण विधि : लिडार तकनीक, उपग्रह मानचित्रण, ड्रोन इत्यादि तकनीकों द्वारा
साइक्लोपियन दीवार (Cyclopean Wall) के बारे में
- अवस्थिति : राजगीर (बिहार)
- निर्माण शैली : साइक्लोपियन वास्तुकला
- साइक्लोपियन शैली में निर्माण के कारण इसका नाम साइक्लोपियन दीवार पड़ा।
- उपनाम : ग्रेट वॉल ऑफ बिहार
- लंबाई : लगभग 40 किमी.
- निर्माण काल : लगभग 600 ई. पू. से 400 ई. पू. के मध्य (चीन की ग्रेट वॉल से पुरातन)
- चीन की प्रसिद्ध ‘ग्रेट वॉल’ का निर्माण संभवतः चौथी-पांचवीं सदी में हुआ था।
- निर्माता : नींव बृहद्रथपुरी (वर्तमान राजगीर) के राजा बृहद्रथ द्वारा
- बाद में उनके पुत्र सम्राट जरासंध ने इसे पूरा कराया।
- विशेषता : विशाल एवं बिना तराशे पत्थरों को एक साथ जोड़कर निर्मित
- बिहार पुरातत्व विभाग के अनुसार, यह दीवार दुनिया में विशाल साइक्लोपियन चिनाई के सबसे पुराने उदाहरणों में से एक है।
- यह दीवार रोमन साम्राज्य की उन सीमाओं के समान है, जो जर्मनी, यू.के. एवं उत्तरी आयरलैंड में है। इसे हैड्रियन की दीवार कहते हैं जिसे वर्ष 1987 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था।
साइक्लोपियन वास्तुकला शैली
- साइक्लोपियन वास्तुकला शैली में विशाल प्रस्तर (पत्थर) खण्डों का उपयोग करके मोर्टार के बिना दीवार निर्मित की जाती है।
- इस तकनीक का उपयोग किलेबंदी में किया जाता था जहाँ बड़े पत्थरों के उपयोग से जोड़ों की संख्या कम हो जाती थी और दीवारें अधिक मजबूत हो जाती थी।
- प्राचीन काल में ग्रीक एवं माइसीनियन सभ्याताओं द्वारा इस वास्तुकला शैली का प्रयोग किया जाता था, जैसे- पेरू के माचू-पिचू, एथेंस के एक्रोपोलिस में माइसीनियन दीवार आदि।
|