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कोरोनोवायरस में D614G उत्परिवर्तन

सम्पूर्ण विश्व में नॉवेल कोरोनोवायरस कई उत्परिवर्तनों से गुज़र रहा है, इन सभी उत्परिवर्तनों में से एक विशेष उत्परिवर्तन, जिसे D614G नाम दिया गया है, वर्तमान में कोविड ​​-19 महामारी के प्रमुख स्वरूपों में से एक हो गया है।

D614G उत्परिवर्तन (D614G mutation)

  • जब वायरस किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है, तो यह बहुगुणन के द्वारा स्वयं की प्रतियाँ बनाने लगता है। जब भी यह इस गुणन प्रक्रिया में कोई त्रुटि करता है, तो नया उत्परिवर्तन देखने को मिलता है।
  • इस नए उत्परिवर्तन के मामले में, वायरस ने अमीनो एसिड के 614 वें स्थान पर एस्पार्टिक एसिड (डी) को ग्लाइसिन (जी) के साथ बदल दिया है। इसलिये इस उत्परिवर्तन को D614G कहा जा रहा है।
  • वायरस के इस उत्परिवर्तित रूप को पहले चीन और फिर यूरोप में पहचाना गया। बाद में यह अमेरिका और कनाडा जैसे अन्य देशों में भी फैल गया और अब इसे भारत में भी दर्ज किया गया है।

उत्पन्न खतरे

  • यह उत्परिवर्तन, वायरस को व्यक्तियों में ACE2 रिसेप्टर के साथ अधिक कुशलतापूर्वक संलग्नित होने में सहायता करता है, जिससे पूर्ववर्ती वायरसों की तुलना में यह उत्परिवर्तित वायरस मानव शरीर में प्रवेश करने में ज़्यादा सफल होता है।
  • D614G की संक्रामकता ज़्यादा है और इसमें किसी व्यक्ति के नाक और गले के अंदर की कोशिका भित्ति की दीवारों में खुद को संलग्न करने की क्षमता भी ज़्यादा है, जिससे वायरल संक्रमण का स्तर बढ़ जाता है।

भारत में स्थिति

  • एक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि D614G महामारी के प्रारंभिक चरण के दौरान भी सबसे प्रचलित स्पाइक म्यूटेशन में से एक था।
  • तब से, D614G म्यूटेशन दिल्ली को छोड़कर ज़्यादातर राज्यों में 70% से भी अधिक फैला है।
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