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दिल्ली में वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

  • स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रयासों के बावजूद भारत में, विशेषकर दिल्ली में, वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार चिंताजनक होती जा रही है। एक वैश्विक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल प्रदूषण से भारत में लगभग 16 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हुई। मरने वालों में बड़ी संख्या नवजात बच्चों की रही, इनमें से अधिकतर बच्चे 1 महीने की उम्र के थे। इस वर्ष भी प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा है।
  • पिछले साल बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के कारण भारत में स्ट्रोक, दिल का दौरा, मधुमेह, फेफड़ों का कैंसर, फेफड़ों की पुरानी बीमारी और नवजात बच्चों के रोगों के कारण बड़ी मौतें हुई। नवजात बच्चों में अधिकतर मौतों का कारण कम वजन और समय से पूर्व जन्म है।

समस्या का निदान सम्भव

  • प्रदूषण का हल निश्चित तौर पर निकाला जा सकता है, लेकिन जल्दबाज़ी में नहीं बल्कि धीरे-धीरे निकाला जाना चाहिये क्योंकि वर्तमान में प्रदूषण के कई स्रोत हैं और उन सबको एकबार में रोकना सम्भव भी नहीं है।
  • यदि सरकारें वाकई मे प्रदूषण से लड़ना चाहती हैं तो उन्हें इस समस्या के प्रति एक परिपक्व और ईमानदार नज़रिया अपनाना होगा। सरकार को विभिन्न प्रकार की रोक लगाने की जगह समस्या की जड़ को समझ कर उस पर कार्य करना होगा, विभिन्न उपाय करने होंगे, लोगों के सामने हल रखने होंगे और उन्हें विकल्प प्रदान करने होंगे। तात्कालिक उपायों के साथ-साथ दीर्घकालिक लेकिन ठोस उपायों पर ज़ोर देना होगा। जैसे-

1. पराली के धुएँ से हवा दूषित होती है तो सरकार को यह बात समझनी चाहिये कि एक गरीब किसान, जो सामान्यतः ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं होता, से यह अपेक्षा करना कि वह प्रदूषण के प्रति जागरूक हो जाए और पराली जलाना बंद कर दे और यदि जलाए तो उससे जुर्माना वसूला जाए, बहुत तार्किक नहीं है। इसके बजाय सरकार द्वारा किसानों को विकल्प सुझाया जाना चाहिये। किसानों को पराली से छुटकारा पाने के बेहतर तरीके बताए जाने चाहियें। सरकार पराली को जैविक खाद में परिवर्तित करने के तरीके बता सकती है। अगर किसानों के पास जगह और समय की समस्या हो, तो सरकार किसानों से पराली खरीद कर जैविक खाद बनाने का संयत्रों को प्रोत्साहित कर सकती है। इस प्रकार जब किसान पराली से कमाएंगे तो जलाएंगे क्यों? 

2. इसी प्रकार देश की सड़कों पर हर साल वाहनों की बढ़ती संख्या भी प्रदूषण के बढ़ते स्तर के लिये ज़िम्मेदार है। परिवहन विभाग के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार राजधानी दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या एक करोड़ 12 लाख से अधिक है। राजधानी की सड़कों पर हर वर्ष 4 लाख से अधिक नई कारें आ जाती हैं। प्रदूषण में इनका योगदान काफी ज़्यादा होता है। इसके लिये सरकार तत्कालिक उपायों के अलावा दीर्घकालिक उपायों पर भी ज़ोर दे। जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट की संख्या, सुविधाजनक उपलब्धता और उसकी गुणवत्ता में सुधार करे ताकि लोग उनका अधिक से अधिक उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित हों।

3. इसके अलावा बैटरी अथवा बिजली से चलने वाले वाहनों के अनुसंधान और निर्माण की दिशा में शीघ्रता से ठोस कदम उठाए और धीरे धीरे पेट्रोल और डीज़ल से चलने वाले वाहनों के निर्माण को बंद करने के लिये कड़े कदम उठाए।

4. उद्योगों से होने वाला प्रदूषण भी एक बड़ा कारक है। क्योंकि इनमें ईंधन के रूप में पेट कोक इस्तेमाल होता है जिससे डीज़ल के मुकाबले 65000 गुना अधिक प्रदूषण होता है इसलिये इसे दुनिया का डर्टी फ्यूल यानी सबसे गंदा ईंधन भी कहा जाता है और अमरीका से लेकर चीन तक में प्रतिबंधित है। लेकिन भारत में वर्ष 2018 तक यह ना सिर्फ विश्व के लगभग 45 देशों से आयात होता था, बल्कि व्यापारियों को इसके व्यापार में टैक्स छूट के अलावा जी.एस.टी. में रिफंड भी प्राप्त होता था। लेकिन अब सरकार ने उद्योगों में ईंधन के रूप में इसके उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया है।

नई एवं अद्यतन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना

  • राष्ट्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोत खाद्य ईंधनों से निकलने वाला धुआं, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र, विभिन्न उद्योग, फसल अवशेष जलाना, निर्माणकार्य और सड़क की धूल आदि हैं। वाहनों से होने वाला प्रदूषण इस सूची में नीचे है।
  • प्रदूषण के इन सभी स्रोतों से निपटने के लिये मौजूदा प्रौद्योगिकियों को नई प्रौद्योगिकियों द्वारा क्रमिक रूप से प्रतिस्थापित किये जाने की आवश्यकता होगी।
  • खाना पकाने के लिये LPG, इंडक्शन स्टोव और अन्य इलेक्ट्रिक उपकरणों के प्रयोग पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • पुराने कोयला बिजली संयंत्रों को बंद किया जाना चाहिये और उन्हें पवन व सौर ऊर्जा से चलने वाली बैटरियों से बदल दिया जाना चाहिये तथा नए संयंत्रों में प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े नए उपकरण स्थापित करने होंगे।
  • नए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के निर्माण पर रोक लगनी चाहिये।
  • कोयले का उपयोग करने वाले अन्य उद्योगों को धीरे-धीरे गैस या हाइड्रोजन जैसे स्वच्छ ईंधन स्रोतों पर विचार करना होगा।
  • किसानों को फसलों के अवशेष प्रबंधन के वैकल्पिक तरीकों को अपनाना होगा।
  • डीज़ल और पेट्रोल वाहनों को धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक या हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहनों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये, जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न बिजली पर चल रहे हैं।

कानूनी उपाय और मुद्दे

  • प्रदूषणकारी गतिविधियों पर कर लगाने और स्वच्छ निवेश पर सब्सिडी देकर सरकारें स्वच्छ निवेश को बढ़ावा दे सकती हैं।
  • न्यायपालिका निर्णयन के मामले में शक्तिशाली है लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि न्यायपालिका केवल तभी कदम उठाती है जब कोई समस्या सामने आती है और भविष्य की समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय पिछली गलतियों पर ही मुख्यतः ध्यान केंद्रित रखती है।

नियामक एजेंसी में सुधार

  • हमारे मौजूदा कानून केंद्रीय और राज्य प्रदूषण बोर्ड को प्रदूषण उत्सर्जन पर आधारित प्रदूषण शुल्क या उपकर लगाने की अनुमति नहीं देते हैं। चूँकि किसी उद्योग को बंद करना एक कठोर कदम है अतः यह कभी लागू नहीं हो पाता।
  • भारत में एक ऐसी नियामक एजेंसी की सख्त आवश्यकता है जो प्रदूषण शुल्क या उपकर लगा सके। नियामक एजेंसी को स्वायत्तता भी दी जानी चाहिये।

निष्कर्ष

पिछले कुछ वर्षों में, वायु प्रदूषण के स्रोतों की हमें बेहतर वैज्ञानिक जानकारी है। निगरानी स्टेशनों का एक नेटवर्क भी हमारे पास है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिये क्या करना चाहिये, इसकी भी बेहतर समझ भी अब विकसित हो रही है। अगर हम इन बिंदुओं पर ध्यान दें तो भारत की हवा को स्वच्छ बनाने की दिशा में हम तेज़ी से आगे बढ़ सकते हैं।

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