चर्चा में क्यों
हाल ही में, देश के गृह राज्य मंत्री ने संसद में स्पष्ट किया कि पिछले तीन वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों में पुलिस हिरासत में 348 लोगों की मृत्यु हुई है तथा 1,189 लोगों को प्रताड़ित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में 136, वर्ष 2019 में 112 तथा वर्ष 2020 में 100 लोगों की पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु हुई।
- संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, पुलिस एवं सार्वजनिक व्यवस्था राज्य के विषय हैं। इसके अंतर्गत जाँच, अपराध पंजीकृत करने, अभियुक्तों की दोष सिद्धि तथा जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा इत्यादि विषय सम्मिलित हैं।
- हिरासत में होने वाली मृत्यु के संदर्भ में वर्ष 1996 में डी. के. बसु मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये थे। इसका उद्देश्य गिरफ्तार करने की शक्ति के दुरूपयोग तथा हिरासत में होने वाली प्रताड़ना को रोकना था।
किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाना
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अध्ययाय 5 की धारा 41-60 में गिरफ्तारी से संबंधित प्रावधान दिये गए हैं परंतु इसमें गिरफ्तारी को परिभाषित नहीं किया गया है। किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वह सबूतों को प्रभावित न करे तथा जाँच के लिये उपस्थित रहे।
- अपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41 (1) के अनुसार, कोई पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश तथा वारंट के बिना भी किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जिसने संज्ञेय अपराध किया है या राज्य का अपराधी है या किसी मामले में बाधा डालता है।
- अपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 42 के अनुसार पुलिस अधिकारी को किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार है जिसने कोई असंज्ञेय अपराध किया है तथा अपना नाम एवं निवास स्थान बताने से मना करता है या गलत बताता है
पुलिस अभिरक्षा में अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 22 के अनुसार, किसी गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं-
- गिरफ्तारी का कारण बताए जाने का अधिकार
- अपने वकील से परामर्श का अधिकार
- गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करने का अधिकार
- गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना 24 घंटे से अधिक निरुद्ध नहीं करने का अधिकार
मौन का अधिकार
किसी आरोपी से पुलिस हिरासत में बल पूर्वक कोई बयान नही लिया जा सकता। इसके अंतर्गत आरोपी को दी जाने वाली शारीरिक एवं मानसिक दोनों यातनाएँ शामिल हैं। आरोपी यदि बयान न देना चाहे तो उसे मौन रहने का अधिकार प्राप्त है।
मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार
आर्थिक या किसी अन्य कारण से कोई व्यक्ति न्याय प्राप्त करने से वंचित नहीं रहना चाहिये। यदि किसी व्यक्ति को आवश्यकता है तो उसे निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
चिकित्सक द्वारा जाँच का अधिकार
गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को पंजीकृत चिकित्सक से जाँच कराने का अधिकार प्राप्त है। जाँच यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि आरोपी से पूछताछ के दौरान कोई यातना तो नहीं दी गई।