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ऋण की चिंता और बी.आर.आई.

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह तथा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

पृष्ठभूमि

कोविड-19 महामारी ने स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक धरातल पर कई प्रकार के प्राकृतिक और मानवीय बदलावों को जन्म दिया है। इन बदलावों का असर आर्थिक और राजनीतिक सम्बंधों पर भी पड़ा है। वर्तमान समस्या के कारण चीन के बेल्ट और रोड पहल में भागीदार देशों ने ऋण भुगतान पर अपनी चिंतायें व्यक्त की हैं। इस चिंता के परिणाम स्वरुप चीन ने इस परियोजना को जारी रखने के लिये कुछ बदलाव के संकेत दिये हैं।

बेल्ट और रोड पहल

  • ‘बेल्ट और रोड पहल’ (बी.आर.आई.) की शुरुआत चीन द्वारा वर्ष 2013 में की गई थी। इसका औपचारिक शुभारम्भ कज़ाकिस्तान में किया गया था। यह एक विशाल बुनियादी ढाँचा परियोजना है। इसे ‘वन बेल्ट वन रोड’ (OROB) पहल के नाम से भी जाना जाता है।
  • चीन का लक्ष्य इसके माध्यम से अपनी मध्यकालीन सिल्क रोड को पुनर्जीवित करना है। इस पहल के अंतर्गत, चीन एशिया, अफ्रीका और यूरोप के 150 से अधिक देशों में बंदरगाहों, पुलों और रेल लाइनों जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना चाहता है।
  • चीन का दावा है कि यह पूरी तरह से एक आर्थिक पहल है जबकि भारत, जापान और अमेरिका सहित कई देश इस तर्क को सही नहीं मानते हैं। परियोजना का विरोध करने वाले देशों को इस बात का डर है कि इससे चीन-केंद्रित प्रभाव में वृद्धि होने के साथ-साथ ‘ऋण जाल’ में भी वृद्धि हो सकती हैं।
  • वैश्विक, राजनीतिक और रणनीतिक प्रभाव के लिये चीन की आर्थिक और औद्योगिक रूप में यह सबसे अधिक प्रभावशाली परियोजना है। बी.आर.आई. एक अलग प्रकार के वैश्वीकरण की शुरुआत का संकेत माना जा सकता है।
  • थाईलैंड, तंज़ानिया, श्रीलंका और नेपाल जैसे देश चीन के ऋण जाल में फँस चुके हैं। परियोजनाओं के बहुत ज्यादा महँगे होने तथा स्थानीय ठेकेदारों व कामगारों को बहुत सीमित मात्रा में ही काम में भागीदारी देने के कारण कई देशों ने या तो इस पहल से बाहर होने या पुनः मोल-भाव करने का निर्णय लिया है।
  • वर्ष 2018 में मलेशिया ने रेलवे सहित कुछ परियोजनाओं को स्थगित करने का निर्णय लिया था। वर्ष 2017 में श्रीलंका को हम्बंटोटा पोर्ट का नियंत्रण चीन को बेचने के लिये मजबूर होना पड़ा था। इटली, G-7 समूह का पहला ऐसा देश है जिसने इस पहल का समर्थन किया है।
  • इस पहल की सबसे महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (CPEC) है, जिसका उद्देश्य चीन के शिनजियांग प्रांत को अरब सागर से जोड़ना है।

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वर्तमान समस्या और बदलाव के संकेत

  • हालिया सप्ताहों में, एशिया और अफ्रीका के कई देशों ने चीन से कर्ज़ चुकाने में मोहलत देने या उन्हें माफ करने का आह्वान किया है। इस तरह की माँग पर प्रतिक्रिया देने के लिये चीन पिछले कई दिनों से स्थिति का मूल्यांकन कर रहा था।
  • चीन की संसद ‘राष्ट्रीय जनता कांग्रेस’ (NPC) की शुरुआत पर चीन सरकार के प्रमुख ली केकियांग ने ‘वार्षिक सरकारी कार्य’ नाम से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बी.आर.आई. के संयुक्त लक्ष्यों के तहत ‘गुणवत्ता’ पर ध्यान दिया जाएगा।
  • एन.पी.सी. रिपोर्ट चीन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नीतिगत दस्तावेज़ों में से एक है। एन.पी.सी. रिपोर्ट का आमतौर पर चीन के नीति-निर्माण के सम्बंध में किसी भी प्रकार के बदलाव हेतु सावधानी पूर्वक मूल्यांकन किया जाता है।
  • इस दस्तावेज़ में वर्ष 2019 से बी.आर.आई. को एक आवश्यक उप-खंड के रूप में शामिल किया जा रहा है। बी.आर.आई. की विशेष स्थिति को रेखांकित करते हुए वर्ष 2017 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान में इसका उल्लेख किया गया था।
  • वर्ष 2019 में जारी इस रिपोर्ट में कहा गया था की चीन बी.आर.आई. के संयुक्त लक्ष्यों को प्रोत्साहित करेगा जबकि इसमें ‘गुणवत्ता’ शब्द का उल्लेख नहीं किया गया था। वर्ष 2019 की रिपोर्ट में इसका भी उल्लेख किया गया है कि चीन बुनियादी ढाँचा कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाना चाहता है, जबकि इस वर्ष की रिपोर्ट में इसको स्थान नहीं दिया गया है।
  •   इस वर्ष की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ‘परामर्श और सहयोग के माध्यम से साझा विकास प्राप्त करने’ पर ध्यान केंद्रित करेगा तथा ‘बी.आर.आई. भागीदारों के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणामों के लिये कार्य करेगा’।
  • इन सबके बीच यह सुझाव दिया गया है कि लोन को ‘राइट-ऑफ’ करने जैसे सामान्य उपायों की जगह चीन को इन परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने और सतत लाभ को वास्तविक बनाने जैसे प्रयास करने चाहिये।

वित्तीय सहायता व चीन द्वारा ऋण की स्थिति

  • इन उपायों में चीन वित्तीय सहायता प्रदान कर सकता है। इन वितीय उपायों में अनुदान (ग्रांट), ब्याज मुक्त ऋण तथा तरजीही ऋण जैसे साधनों का प्रयोग हो सकता हैं। चीनी सरकार द्वारा दिये जाने वाले ब्याज मुक्त ऋण जैसे उपाय ऋण राहत के लिये लागू होते हैं। तरजीही ऋण जैसे उपाय ऋण राहत के लिये लागू नहीं होते हैं और किसी भी जटिल ऋण समस्याओं के सम्बंध में अधिक पेचीदा होते हैं।
  • कर्ज़दार देशों के दायित्वों को माफ़ करने जैसे समाधान बहुत प्रभावी सिद्ध नहीं होंगें। यदि किसी देनदार (कर्ज़दार) को समय पर भुगतान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो ब्याज भुगतान की तिथियों का पुनर्निधारण करने या चीन द्वारा वित्त पोषण में वृद्धि जैसी योजनाएँ प्रभावी हो सकती हैं। इससे सम्बंधित परियोजनाओं को पुनः शुरू करने व लाभ अर्जित करने में असानी होगी।
  • चीन का सुझाव है कि ऋण के पुनर्भुगतान की समस्या कई वित्तीय और अन्य दृष्टिकोणों के द्वारा हल की जा सकती है। इनमें अतिरिक्त अनुदान, ऋण-इक्विटी स्वैप का संचालन या परियोजनाओं को जारी रखने हेतु चीनी फर्मों की सहायता लेने जैसे उपाय शामिल हैं।
  • एडडाटा (AidData) अनुसंधान प्रयोगशाला के अनुसार, वर्ष 2000 से वर्ष 2014 के मध्य चीन द्वारा प्रदान किये गए अनुदान और लोन कुल मिलाकर 354.4 बिलियन डॉलर है। इसमें से 23 % अनुदान के रूप में दिया गया है जबकि शेष बाज़ार या लगभग बाज़ार दर पर दिया गया वाणिज्यिक लोन है।
  • जर्मनी के कील संस्थान के अनुसार, दुनिया द्वारा चीन को दिया गया कर्ज़ वर्ष 2000 से 2017 के मध्य 10 गुना बढ़ गया है। विकासशील देशों के पास चीन का 380 बिलियन डॉलर बकाया है।
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