(प्रारम्भिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र- 3 : ऊर्जा तथा पर्यावरण संरक्षण)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सरकार द्वारा प्रोत्साहन पैकेज की चौथी किश्त में भारत के कोयला उद्योग को बढ़ावा देने से सम्बंधित उपायों की घोषणा की गई है।
संदर्भ
भारत का कोयला क्षेत्र समग्र रूप से फंसी हुई परिसम्पत्तियों (स्ट्रेस्ड एसेट्स) का सामना कर रहा है, जिसका मुख्य कारण कोयला आधारित ऊर्जा की नवीकरणीय ऊर्जा से बढ़ती प्रतिस्पर्धा है। साथ ही वैश्विक स्तर पर भी कोयला आधारित विद्युत उत्पादन से सम्बंधित परियोजनाओं को समाप्त किया जा रहा है। यह प्रवृति अब भारत में भी दिख रही है।
मुख्य बिंदु
- खनिज ईंधन (माइन फ़्यूल) के निष्कर्षण हेतु 50,000 करोड़ रुपए का पैकेज दिया गया है। इससे कोयला क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बनने के साथ ही आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकेगा।
- कैप्टिव (कैप्टिव कोल माइनिंग के अंतर्गत किसी कम्पनी द्वारा कोयला केवल अपने उपयोग के लिये ही निकाला जाता है, जिसे वह बाज़ार में नहीं बेच सकती) और नॉन-कैप्टिव माइनिंग के बीच का अंतर समाप्त कर निजी कम्पनियों के लिये अब कोयले से सम्बंधित अंतिम उपयोग के प्रतिबंध को समाप्त कर दिया गया है। इससे निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि होगी|
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में निजी क्षेत्र को अपने कुल कोयला उत्पादन का 25% बाज़ार में बेचने की अनुमति दी गई थी जो कोयला उद्योग के वाणिज्यीकरण की दिशा में पहला महत्त्वपूर्ण कदम था।
भारत के कोयला उद्योग की वित्तीय स्थिति का अवलोकन
- वर्तमान में भारत में लगभग 62 गीगावाट की कोयला परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं तथा इन परियोजनाओं के प्रमुख वित्तपोषक सरकारी क्षेत्र के संस्थान तथा बैंक हैं।
- लोकसभा की स्थाई समिति की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन के लिये चयनित निजी क्षेत्र में कार्यरत 85% से अधिक (लगभग 65000 मेगावाट) कोयला आधारित विद्युत सयंत्र वित्तीय दबाव में हैं जिसके कारण अनुसूचित बैंकों की लगभग 3 लाख करोड़ रुपए की सम्पत्ति जोखिम में है।
- ध्यातव्य है कि बैंकिंग क्षेत्र में ग़ैर-निष्पादित परिसम्पत्तियों की एक बड़ी राशि विद्युत क्षेत्र से सम्बंधित है।
कोयला उद्योग की समस्याएँ
- भारत में कोयला उद्योग की फंसी हुई परिसम्पत्तियों में वृद्धि के प्रमुख कारणों में कोयला परियोजनाओं के लिये भूमि की अनुपलब्धता, अस्पष्ट पॉवर परचेस एग्रीमेंट (पी.पी.ए.), गुणवत्तापूर्ण कोयले की उपलब्धता में कमी तथा नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) की बढ़ती माँग और कोयला जलाकर बिजली बनाने की नीतियों में परिवर्तन आदि शामिल हैं।
- कोयला परियोजनाओं के लिये पिछले कुछ समय में अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण में भी भारी कमी आई है। यहाँ तक कि जापान, चीन तथा दक्षिण कोरिया जैसे देश भी कोयला परियोजनाओं को रोकने हेतु अंतर्राष्ट्रीय दबाव का सामना कर रहे हैं।
- भारत में वर्ष 2017 से 2018 के बीच कोयला से चलने वाले संयंत्रों का वित्तपोषण 90% तक कम हो गया तथा वर्ष 2018 में ऐसी परियोजनाओं की संख्या भी 12 से घटकर 5 हो गई है। वर्ष 2018 में 80% से अधिक ऋणों का डायवर्सन नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में हुआ है।
कोयला उद्योग हेतु सुझाव
- कोल इंडिया लिमिटेड (सहायक कम्पनियों के अलावा) से इतर अन्य स्वतंत्र संस्थाओं या कम्पनियों की सहायता से गुणवत्तापूर्ण कोयले के उत्पादन में वृद्धि करने के साथ ही निर्यात पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहिये।
- कोयले को खुले बाज़ार में बेचने (वाणिज्यीकरण) की पूर्ण रूप से अनुमति प्रदान की जानी चाहिये।
- कोयले के अंतिम उपयोग के आधार पर ग्रेड प्रणाली का निर्माण किया जाना चाहिये।
- कोयले के सुगम ट्रांसपोर्टेशन हेतु भारतीय रेलवे के पास संसाधनों की कमी है। अतः कोयला खनन वाले क्षेत्रों से अंतिम उपयोग के क्षेत्रों तक एक सुदृढ़ परिवहन क्षमता का निर्माण किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
वर्तमान में भारत का नीतिगत उद्देश्य अधिकांश लोगों तक ऊर्जा की पहुँच सुनिश्चित करना है। इसलिये कोयले के उपयोग को नीतिगत समर्थन मिल रहा है लेकिन जलवायु परिवर्तन के आर्थिक परिणामों को देखते हुए धीरे-धीरे कोयले के उपयोग तथा इसमें निवेश को समाप्त करना होगा। साथ ही इस क्षेत्र में फंसी हुई परिसम्पत्तियों की समस्या से निपटने और बैंक एवं वित्तीय संस्थानों की आर्थिक सुरक्षा हेतु एक व्यावहारिक रोडमैप तैयार किया जाना आवश्यक है।
प्री फैक्ट्स :
- कोयला मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कोयला उद्योग की शीर्ष निकाय कोल इंडिया लि. है जिसका मुख्यालय कोलकाता में है। यह नीति मार्गनिर्देशों निर्धारित करने और अपनी सहायक कंपनियों के साथ समन्वित रूप से कार्य करने हेतु उत्तरदायी है।
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