(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ एवं पर्यावरण से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 - संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव के आकलन से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
हाल ही में, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गुवाहाटी के दक्षिण-पश्चिमी किनारे पर स्थित ‘दीपोर बील’ वन्यजीव अभयारण्य को ‘पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र’ (eco-sensitive zone) के रुप में अधिसूचित किया गया है।
दीपोर बील
- दीपोर बील, असम राज्य की सबसे बड़ी मीठे पानी की झीलों में से एक है, जो ब्रह्मपुत्र नदी का पूर्वी चैनल भी है।
- यह एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र होने के साथ-साथ राज्य का एक मात्र रामसर स्थल भी है।
- जारी अधिसूचना के अनुसार, 16.32 किमी. तक के क्षेत्र को पर्यावरण के प्रति ‘पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र’ के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। इसका कुल क्षेत्रफल 148.9767 वर्ग किमी. है।
- गर्मियों में इस आर्द्रभूमि का विस्तार 30 वर्ग किमी. तक हो जाता है तथा सर्दियों में इसमें लगभग 10 वर्ग किमी. तक की कमी आ जाती है।
- इस आर्द्रभूमि में 4.1 वर्ग किमी का वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र है।
महत्त्व
- दीपोर बील, बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों द्वारा नियमित रूप से उपयोग किया जाने वाला मार्ग है। साथ ही, यहाँ बड़ी मात्रा में जलीय पक्षी भी देखे जा सकते हैं।
- आर्द्रभूमि, जलीय वनस्पतियों और एवियन जीवों के लिये एक अद्वितीय निवास स्थान है। इस अभयारण्य में पक्षियों की लगभग 150 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।
- इनके अलावा, सरीसृपों की 12 प्रजातियाँ, मछलियों की 50 प्रजातियाँ, उभयचरों की 6 प्रजातियाँ और जलीय मैक्रो-बायोटा की 155 प्रजातियाँ भी दर्ज की गई हैं।
- ध्यातव्य है कि इस झील में वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त पक्षियों की कुछ प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें स्पॉटबिल्ड पेलिकन (पेलिकैनस फिलिपेंसिस), लेसर एंड ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क (लेप्टोपिलोस जावनिकस व डबियस) और बेयर पोचार्ड (अयथ्या बेरी) शामिल हैं।
- यहाँ पाई जाने वाली मछलियों की लगभग 50 प्रजातियाँ, आस-पास के कई गाँवों के लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन हैं।
संबंधित चिंताएँ
- इस आर्द्रभूमि को, उसके दक्षिणी किनारे पर स्थित रेलवे लाइन के ‘दोहरीकरण तथा विद्युतीकरण’ से संकट का सामना करना पड़ रहा है।
- साथ ही, मानव बस्तियों के विकास, लोगों द्वारा कचरे को फेंका जाना तथा वाणिज्यिक इकाइयों के अतिक्रमण ने भी इस आर्द्रभूमि के समक्ष संकट उत्पन्न कर दिया है।
- गुवाहाटी के निकट अवस्थित होने के कारण झील को लगातार बढ़ती विकास गतिविधियों द्वारा उत्पन्न होने वाले अत्यधिक जैविक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
- विषाक्त पदार्थों के रिसाव से झील का जल प्रदूषित हो गया है, जिस कारण इसमें पाये जाने वाले जलीय पौधें, जिन्हें हाथियों द्वारा खाया, जाता है समाप्त होते जा रहे हैं।
- शहर के कचरे के साथ-साथ औद्योगिक अपशिष्ट समृद्ध आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक और पर्यावरणीय मूल्यों के लिये गंभीर समस्या पैदा करते हैं।
रामसर कंवेंशन
- इस कंवेंशन को वर्ष 1971 में ईरान के शहर रामसर में अपनाया गया तथा इसे वर्ष 1975 में लागू किया गया था।
- यह कंवेंशन आर्द्रभूमि पर एक अंतर सरकारी संधि है। इसका उद्देश्य आर्द्रभूमियों को संरक्षण प्रदान करना है।
- अभी तक विश्व के सभी भौगोलिक क्षेत्रों से संयुक्त राष्ट्र के लगभग 90 प्रतिशत सदस्य इसके अनुबंधित सदस्य हैं।
- वर्तमान में भारत में 46 रामसर स्थलों की पहचान की गई है।