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रक्षा उत्पादन एवं निर्यात संवर्धन नीति, 2020 का मसौदा

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औधौगिक में परिवर्तन तथा औधौगिक विकास पर इनका प्रभाव)

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रति चीन के खुले तौर पर जुझारू रवैये के कारण भारत द्वारा युद्ध की तैयारी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। इसी पृष्ठभूमि को केंद्र में रखकर भारत के रक्षा मंत्रालय द्वारा, रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्धन नीति, 2020 (Draft Defence Promotion and Export Promotion Policy-DPEPP 2020) का मसौदा तैयार किया गया है।

नीति की प्रमुख विशेषताएँ

  • इस नीति का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 1,75,000 करोड़ रुपए का एयरोस्पेस और रक्षा वस्तुओं तथा सेवाओं का घरेलू उत्पादन करना है।
  • इसमें से 35,000 करोड़ रुपए के निर्यात का लक्ष्य शामिल है।
  • रक्षा उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित करने तथा वैश्विक रक्षा मूल्य श्रृंखलाओं का हिस्सा बनने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • इस नीति के तहत हथियारों की एक नकारात्मक सूची जारी की जाएगी, जिसके तहत अधिसूचित हथियारों तथा निर्धारित प्लेटफार्मों से आयात को प्रतिबंधित किया जाएगा।
  • नीति के अंतर्गत एक प्रौधौगिकी मूल्यांकन प्रकोष्ठ (Technology Assessment Cell-TAC) का निर्माण किया जाएगा, जोकि रक्षा उपकरण तथा हथियारों के डिज़ाइन, विकास तथा उत्पादन के लिये औद्योगिक क्षमता का आकलन करेगी।
  • इसमें विभिन्न रणनीतिक पहलों को शामिल किया गया है, जो हाइपरसोनिक मिसाइल, संवेदक, स्टील्थ पनडुब्बियों और लड़ाकू विमानों को आधुनिक तकनीक प्रदान कर स्वदेशी विकास में सहायता करेंगी।
  • नीति के अंतर्गत उपकरण तथा हथियार प्रणालियों के रख-रखाव हेतु आवश्यकताओं के आंकलन के लिये एक परियोजना प्रबंधन इकाई (Project management Unit) की स्थापना की जाएगी

रक्षा क्षेत्र से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस समय भारत का रक्षा क्षेत्र में पूँजीगत व्यय 40 :60 के अनुपात में बँटा हुआ है, यानि 40 % घरेलू उत्पादन के लिये तो, 60 % धन विदेशी हथियार खरीदने में व्यय किया जाता है।
  • सरकारी रक्षा कम्पनियों द्वारा वित्तीय वर्ष 2023 तक अपने कुल राजस्व का 25 % हिस्सा, निर्यात के माध्यम से प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है साथ ही विदेशों में भी भारतीय कूटनीतिक मिशन अर्थात दूतावास और वाणिज्यिक दूतावासों को निर्देश दिया गया है कि वे भारत की रक्षा निर्यात की सम्भावनाओं की आक्रामक ढंग से मार्केटिंग करें।
  • भारत के रक्षा मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार भारत ने वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान अपना रक्षा उपकरण निर्यात 4,682 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10,745 के स्तर तक पहुँचाने में सफलता प्राप्त की है।
  • इसी वर्ष फरवरी में हुए डिफेन्स ट्रेड शो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इस बात पर बल दिया था कि भारत को अगले पाँच वर्षों में अपने रक्षा निर्यात को 35,000 करोड़ रुपए के वार्षिक स्तर तक पहुँचाने के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयास किया जाना चाहिये।

स्वदेशी क्षमता के अभाव के कारण

  • स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति शोध संस्थान के वार्षिक आँकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया में हथियारों के आयातक देशों में लगातार उच्च स्तर पर बना हुआ है। इन आँकड़ों से भारत को अपने सैन्य औधौगिक क्षेत्र की दयनीय स्थिति का पता चलता है।
  • भारत में रक्षा उपकरण निर्माण की क्षमता देश की सार्वजनिक कम्पनियों के पास ही है। इन सरकारी रक्षा उत्पादन कम्पनियों के पास वैश्विक स्तर का कोई विशेष हथियार नहीं है। आर्डिनेंस फैक्ट्री जैसे संगठन लम्बे समय से आर्टिलरी के उत्पादन तक ही सीमित हैं। लेकिन न तो वे घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति कर पा रहे हैं और न ही निर्यात में कोई महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • भारतीय लड़ाकू विमान या तो बनावट के आधार पर खारिज हो जाते हैं या वे बहुत महँगे होते हैं या उनमें ये दोनों ही खामियाँ होती हैं।

सरकार के प्रयास

  • रक्षा क्षेत्र में स्वचालित माध्यम से विदेशी निवेश की सीमा को 49 % से बढाकर 74 % किया गया है। इससे विदेशी कम्पनियों को देश के रक्षा क्षेत्र में निवेश करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • विदेशी निवेश की सीमा में वृद्धि करने से हमारी आत्मनिर्भरता बढ़ेगी साथ ही रोज़गार के नए अवसर भी पैदा होंगे।
  • आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के निगमीकरण (Corporatization) को स्वीकृति प्रदान किये जाने से इसकी कार्यशैली में परिवर्तन आएगा तथा उत्पादकता में वृद्धि होगी साथ ही ओ.एफ.बी. को शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया जा सकता है, जिससे उनके कामकाज में पारदर्शिता आएगी।
  • सरकारी नीतियों के चलते जहाँ भारत 1990 के दशक में हथियारों का पता लगाने वाले रडार को अमेरिका और इज़राइल से प्राप्ति के लिये संघर्ष कर रहा था वहीँ, इस वर्ष हमने यही रडार आर्मेनिया को बेचने में सफलता प्राप्त की है। यह समझौता 4 करोड़ डॉलर का था।

निष्कर्ष

  • वर्तमान समय की माँग है कि सरकार अपनी नीतियों में परिवर्तन लाए और सरकारी उपक्रमों के बजाय रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को प्रतिद्वंदिता का अवसर उपलब्ध कराए क्योंकि निजी क्षेत्र पहले से ही अपनी क्षमता से अधिक निर्यात करने में सफल रहा है।
  • हालाँकि, भारत के रक्षा निर्यात का सफर अब तक काफी उल्लेखनीय रहा है। लेकिन रक्षा निर्यात में विकास कि इस गति को बनाए रखने और 5 अरब डॉलर के वार्षिक स्तर तक पहुँचने के लिये और ठोस कदम उठाए जाने कि आवश्यकता है।

स्रोत: लाइव मिंट और ORF

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