चर्चा में क्यों
हाल ही में, पर्यावरण, ‘वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ ने वन स्थिति रिपोर्ट के तहत वनों की परिभाषा के संदर्भ में सूचित किया है।
प्रमुख बिंदु
- क्योटो प्रोटोकॉल के निर्णय-19 के अनुसार, देश की क्षमताओं और सामर्थ्य के आधार पर किसी भी देश द्वारा वनों को निम्नानुसार परिभाषित किया जा सकता है -
- चंदवा वन या वृक्ष घनत्व का प्रतिशत- 10 से 30% के मध्य ( भारत में 10%)
- न्यूनतम आच्छादित क्षेत्र- 0.05-1.0 हेक्टेयर का क्षेत्र
- वृक्षों की न्यूनतम ऊँचाई- परिपक्वता की स्थिति में 2-5 मीटर (भारत में 2 मीटर) न्यूनतम ऊँचाई तक पहुँचने की क्षमता।
- भारत में उपरोक्त तीन मानदंडों के आधार पर वनों को परिभाषित किया गया है, जिसे ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र ढाँचा अभिसमय’ (UNFCCC) तथा ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) द्वारा रिपोर्टिंग के लिये स्वीकार किया जाता है।
- स्वामित्व एवं कानूनी मानकों पर ध्यान ना देते हुए एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र, जिस पर 10% से अधिक वृक्षावरण है, को वनाच्छादित क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें बागान, बाँस व ताड़ के वृक्ष भी शामिल हैं। हालाँकि, ऐसा आवश्यक नहीं है कि ये भूमि अभिलिखित वन क्षेत्र हो
- हाल ही में, प्रकाशित अखिल भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR)-2021 में वनावरण के आँकड़ों को ‘आंतरिक अभिलिखित वन क्षेत्र’ (प्राकृतिक वन क्षेत्र एवं वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण) तथा ‘बाह्य अभिलिखित वन क्षेत्र’ (आम के बाग, नारियल के बागान, कृषि-वानिकी के अंतर्गत ब्लॉक वृक्षारोपण) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- अति सघन वन (Very Dense Forest) को वर्गीकृत करने के लिये उपग्रह डाटा को भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग के फील्ड इन्वेंट्री डेटा, ग्राउंड ट्रुथिंग डाटा और उच्च रिज़ॉल्यूशन उपग्रह इमेजरी जैसे सहायक डाटा का उपयोग किया जाता है।