(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत एवं विश्व का प्राकृतिक भूगोल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भूकम्प, सुनामी आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ)
चर्चा में क्यों?
जून के दूसरे सप्ताह में दिल्ली के आस-पास एक कम परिमाण के भूकम्प का झटका महसूस किया गया। मई माह से लेकर अब तक दिल्ली व आस-पास के क्षेत्रों में 10 से भी अधिक छोटे-बड़े भूकम्प के झटके महसूस किये गए हैं।
पृष्ठभूमि
भारत के दक्षिणी भू-भाग को छोड़कर अन्य क्षेत्र भूकम्प के प्रति सम्वेदनशील हैं। इनमें से हिमालय के आस-पास का क्षेत्र अति सम्वेदनशील माना जाता है। भारत के दक्षिणी भाग में आमतौर पर भूकम्प आने की उम्मीद कम या नहीं के बराबर है क्योंकि इसकी सतह चार्नोकाइट्स और खोंडालाइट्स चट्टानों (Charnockite and Khondalite Rocks) के कारण कठोर होती है। ये अपने गठन के दौरान उच्च तापमान के कारण बहुत अधिक रूपांतरित (Metamorph) हो गई हैं। ऐसा माना जाता है कि दक्षिणी भारत में रिक्टर पैमाने पर 6 के परिमाण वाला भूकम्प भी ज्यादा नुकसानदायक नहीं होगा। दक्षिण भारतीय क्षेत्र के भूकम्प के प्रति कम सम्वेदनशील होने के बावजूद भी कुछ अधिक तीव्रता के भूकम्प भौगोलिक रूप से विचारणीय हैं। उल्लेखनीय है कि सन् 1618 में मुम्बई (बॉम्बे) तथा सन् 1843 में दक्कन के पठार में भूकम्प आया था। वर्ष 1993 में महाराष्ट्र के लातूर में आए भूकम्प के कारणों को लेकर अभी भी निश्चित रूप से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सका है। दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में आए हालिया भूकम्पों के अलावा झारखंड और कर्नाटक में भी भूकम्प के झटके महसूस किये गए हैं। भूकम्प के छोटे झटके किसी बड़े भूकम्प का संकेत हैं, ऐसी आशंकाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
दिल्ली में कम समय में अधिक भूकम्पों का कारण
क्या छोटे भूकम्प आने वाले बड़े भूकम्पों का पूर्वाभास?
भारत में भूकम्पीय ज़ोन I. भारत के भौगोलिक आँकड़ों के अनुसार लगभग 54 % क्षेत्रफल भूकम्प की चपेट में है। भारत के भूकम्प प्रतिरोधी डिज़ाइन कोड के नवीनतम संस्करण के अनुसार, भारत का भूकम्प ज़ोनिंग मैप भारत को 4 भूकम्पीय ज़ोन (ज़ोन 2, 3, 4 और 5) में विभाजित करता है जबकि पूर्व के संस्करणों देश को पाँच या छह ज़ोन में विभाजित किया गया था। II. ज़ोन 5 - सर्वाधिक ज़ोखिम वाले क्षेत्र, एम.एस.के. IX (MSK IX) या उससे अधिक की तीव्रता से प्रभावित। इसमें कश्मीर का क्षेत्र, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान व निकोबार समूह शामिल। सामान्यतया ट्रैप रॉक या बेसाल्टिक रॉक वाले क्षेत्र भूकम्प के लिये अधिक प्रवण होते हैं। III. ज़ोन 4 - उच्च ज़ोखिम युक्त क्षेत्र, एम.एस.के. VIII (MSK VIII) की तीव्रता से प्रभावित। इसमें जम्मू व कश्मीर, लद्दाख , हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, सिंधु-गंगा के मैदानों के कुछ भाग (उत्तरी पंजाब, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई, उत्तरी बंगाल और सुंदरवन )। साथ ही, दिल्ली, महाराष्ट्र का पाटन क्षेत्र (कोयनानगर) और बिहार के कुछ उत्तरी भाग जैसे रक्सौल (भारत-नेपाल सीमा के पास) ज़ोन 4 में हैं। IV. ज़ोन 3 व ज़ोन 2 - मध्यम ज़ोखिम युक्त क्षेत्र तथा एम.एस.के. VII (MSK VII) की तीव्रता से प्रभावित क्षेत्र ज़ोन 3 में आते हैं जबकि ज़ोन 2 के अंतर्गत एम.एस.के. VI (MSK VI) या उससे कम की तीव्रता वाले क्षेत्र आते हैं। V. एम.एस.के. स्केल (MSK Scale)- भूकम्पी तीव्रता मापने के लिये मेदवेदेव-स्पोन्हुअर-कार्निक पैमाना रोमन अंकों I (न्यूनतम) से लेकर XII (अधिकतम) तक वितरित है। वर्ष 1964 में प्रस्तावित होने के कारण इसे MSK- 64 भी कहा जाता है। यह मैक्रोसिस्मिक तीव्रता का पैमाना है जिसका उपयोग भूकम्पीय घटना के क्षेत्र में देखे गए प्रभावों के आधार पर झटकों की गम्भीरता का मूल्यांकन करने के लिये किया जाता है। इसके अलावा, भूकम्प की तीव्रता को मापने के लिये मरकैली (Mercalli) पैमाने का भी प्रयोग किया जाता है। यह पैमाना गुणात्मक है, परिमाणात्मक नहीं। VI. तीव्रता (Intensity) बनाम परिमाण (Magnitude)- किसी स्थान पर भूकम्प की तीव्रता वहाँ पर भूमि में गति तथा मानव पर प्रभाव के रूप में आँकी जाती है। भूकम्प की तीव्रता का मापन भूकम्प द्वारा व्यक्तियों, इमारतों और भूमि पर दृष्टिगोचर होने वाले प्रभावों की व्यापकता के आधार पर किया जाता है, जबकि किसी भूकम्प का परिमाण उसके द्वारा मुक्त की गई ऊर्जा की माप है। परिमाण भूकम्पीय तरंगों के आयाम (Amplitude), त्वरण (Acceleration), आवृति (Frequency) तथा कई अन्य गणितीय बातों पर आधारित होता है। भूकम्प के परिमाण को रिक्टर पैमाने (Richter Scale) पर मापा जाता है। यह एक लघु-गणक (logarithmic) पैमाना है। |
क्या क्षेत्र में किसी बड़े भूकम्प की आशंका है?
भूकम्प से बचाव
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