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दिल्ली का प्रदूषण संकट: एक सतत आपातकाल

प्रारंभिक परीक्षा

(पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)

मुख्य परीक्षा 

(सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3;संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।)

सन्दर्भ 

हाल ही में, दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने 'स्वच्छ हवा का अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार के रूप में उल्लेख किया। न्यायालय ने केंद्र सरकार तथा दिल्ली एवं उसके पड़ोसी राज्यों की सरकारों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उसके आस-पास के क्षेत्रों में प्रदूषण मुक्त वातावरण सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिए फटकार लगाई।

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (Commission on Air Quality Management : CAQM) अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की कड़ी आलोचना की।
    • इस अधिनियमके तहत CAQM पैनल का गठन किया गया था जिसका उद्देश्य दिल्ली एवं आस-पास के क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता में सुधार से संबंधित विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करना था। 
    • पूर्व में ये एजेंसियाँ प्राय: अलग-अलग काम करती थीं। 
  • न्यायालय के अनुसार CAQM दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों के किसानों की कटाई के पराली दहन की गतिविधियों बदलाव लाने के अपने जनादेश में विफल रहा है। 
  • पैनल ने केवल एक आपातकालीन समाधान निकाय के रूप में काम किया है, जबकि समस्या के लिए पूरे साल निगरानी की आवश्यकता होती है।

दिल्ली में प्रदूषण संकट

  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में प्रत्येक वर्ष अक्टूबर माह में अनेक कारणों से वायु की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की जाती है, जिससे पूरे राजधानी क्षेत्र में एक अघोषित स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, विगत कुछ वर्षों सेदिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 और 10 का स्तर चिंता का विषय बना हुआ है। 
  • हाल ही में,15 सितंबर से 21 अक्टूबर, 2024 के बीच, दिल्ली में   "बहुत खराब" वायु गुणवत्ता वाले 6 दिन का  अनुभव किया गया। 
    • इस दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 332 के साथ यह 'बहुत खराब' स्तर पर पहुँच गया।
  • प्रदूषण के स्तर को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है:
    • 0-50>अच्छा
    • 51-100>संतोषजनक
    • 101-200>मध्यम
    • 201-300>ख़राब
    • 301-400>बहुत ख़राब
    • 401-500>गंभीर

वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव 

  • वायु में मौजूद PM 2.5 और PM 10 जैसे छोटे ठोस या तरल कण फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर गंभीर स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न करते हैं।
  • लंबे समय तक पार्टिकुलेट मैटर (PM) के संपर्क में रहने से व्यक्ति श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियां जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी , फेफड़ों का कैंसर और दिल का दौरा आदि से ग्रसित हो सकता है।
  • गैर-लाभकारी संस्था हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट के अनुसार प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण के कारण दस लाख से अधिक भारतीयों की असमय मृत्यु हो जाती है।
  • दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत में दो मिलियन से अधिक बच्चों (दिल्ली के आधे बच्चे) के फेफड़ों की कार्यप्रणाली में असामान्यताएँ हैं।

यह भी जाने!

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM)

  • स्थापना: 5 नवम्बर 2020 
  • उद्देश्य: आयोग की स्थापना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए बेहतर  समन्वय, अनुसंधान, पर्यावरण में वायु गुणवत्ता सूचकांक से संबंधित समस्याओ को पहचानने और उसका समाधान निकालने के लिए की गई थी।
  • सदस्य: कुल 15 (4 पूर्णकालिक, 2 गैर-सरकारी संगठन एवं 9 पदेन सदस्य)

दिल्ली में वायु प्रदूषण संकट के प्रमुख कारक

मौसमी पराली दहन

  • दिल्ली के आस-पास के राज्य पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश कृषि प्रधान राज्य हैं, जहाँ प्रत्येक वर्ष अक्टूबर माह में धान की कटाई के बाद उसके अवशेष (पराली) जलाने से वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है, जो इस समयावधि में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारक है।
    • हालाँकि मौजूदा संकट में पराली जलाने की हिस्सेदारी में कमी आई है।
  • नासा के विजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (VIIRS) के आंकड़ों ने वर्ष 2018 और अक्टूबर 2024 के मध्य के बीच खेतों में आग लगने की कुल संख्या में 51% की गिरावट का संकेत दिया है। 
    • सबसे बड़े योगदानकर्ता पंजाब में, खेतों में पराली दहन में अत्यधि कमी दर्ज की गई  है।
  • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के के अनुसार वर्ष 2024 में 12 अक्टूबर से 21 अक्टूबर के बीच, दिल्ली में PM 2.5 के स्तर में औसतन पराली जलाने की हिस्सेदारी केवल 0.92% थी। 
    • इससे पता चलता है कि खेतों में आग लगाना अभी भी एक भूमिका निभाता है, लेकिन यह अब प्रमुख कारक नहीं है।

वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन 

  • प्रदूषण के स्रोतों के विश्लेषण से पता चलता है कि दिल्ली की वायु को प्रदूषित करने वाले पार्टिकुलेट मैटर के एक बड़े हिस्से के लिए परिवहन क्षेत्र ज़िम्मेदार हैं।
  • 12 से 21 अक्टूबर, 2024 तक के आंकड़ों  के अनुसार शहर के आधे से ज़्यादा PM2.5 प्रदूषण की वजह वाहनों से होने वाला उत्सर्जन है।
  • दिल्ली  में दस लाख से ज़्यादा पंजीकृत वाहन है जिनकी संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है।
  • दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली व्यापक होने के बावज़ूद भी जनसंख्या और आर्थिक गतिविधि के साथ तालमेल नहीं रख पाई है, जिसके कारण निजी वाहनों पर निर्भरता बढ़ने से शहर की वायु गुणवत्ता खराब हो रही है।

अन्य स्थानीय स्रोत

  • अन्य स्थानीय स्रोतों जैसे निर्माण धूल, औद्योगिक उत्सर्जन और कचरे को खुले में जलाना भी इसमें योगदान देता है, जो शहर में PM2.5 के उच्च  सांद्रण में और वृद्धि करते हैं। 
    • इन प्रदूषकों के जमीन के करीब उपस्थित रहने से सांस लेने में भी कठिनाई उत्पन्न होती है।
  • इसके अलावा, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों के उद्योग और वाहन जैसे क्षेत्रीय योगदानकर्ता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वायु प्रवाह प्रदूषकों को दिल्ली तक पहुँचा देते हैं। 
    • यह सीमा-पार प्रदूषण पहले से ही चुनौतीपूर्ण समस्या में जटिलता की एक अतिरिक्त परत जोड़ता है।

संकट का समाधान

  • दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों प्रकार के समाधान की आवश्यकता है। 
    • पराली दहन जैसे मुद्दों से निपटना या केवल पड़ोसी राज्यों पर बोझ डालना पर्याप्त नहीं होगा।
  • संकट के समाधान के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें वाहनों, औद्योगिक और अपशिष्ट-संबंधी उत्सर्जन जैसे प्रमुख योगदानकर्ताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
  • वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए दिल्ली को इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर तीव्र संक्रमण पर बल दिए जाने के साथ ही सार्वजनिक परिवहन का विस्तार करना चाहिए। 
  • बेहतर यातायात प्रबंधन, कारपूलिंग को प्रोत्साहन और ऑड-इवन जैसे उपाय भी उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
  • निर्माण धूल और स्वच्छ औद्योगिक प्रथाओं पर सख्त नियंत्रण के साथ ही खुले में बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के प्रवर्तन की आवश्यकता है।
  • हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब के साथ क्षेत्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है, क्योंकि सीमा पार प्रदूषण दिल्ली की वायु गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
  • दिल्ली एवं आस-पास के क्षेत्रों में समन्वित वायु प्रदूषण प्रबंधन योजना, स्वच्छ परिवहन और बेहतर निर्माण प्रथाओं जैसे स्थानीय हस्तक्षेप लाभकारी साबित हो सकते हैं।

निष्कर्ष

अब समय आ गया है कि नीति निर्माता इस बात को समझें कि दिल्ली मेंसबसे बड़ी समस्या स्थानीय आधारभूत प्रदूषण स्रोत हैं। इस संकट का समाधान करने के लिए तकनीकी हस्तक्षेप, सार्वजनिक परिवहन में अधिक निवेश और लोगों को उनके व्यवहार में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करना होगा। प्रदूषण शमन उपायों को आपातकालीन स्थिति आने पर ही लागू करने के बजाय पूरे वर्ष इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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