(प्रारम्भिक परीक्षा: परिसीमन आयोग, संवैधानिक प्रावधान) (मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र: 2- सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय) |
चर्चा में क्यों?
भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा 27 दिसंबर, 2022 को असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया को अधिसूचित किया गया।
प्रमुख बिन्दु
- असम में निर्वाचन क्षेत्रों का अंतिम परिसीमन 1976 में 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था।
- मार्च 2020 में, केंद्र ने जम्मू और कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड के लिए एक परिसीमन आयोग को अधिसूचित किया।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8ए अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर या नागालैंड में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की अनुमति देती है।
वर्तमान प्रतिनिधित्व की स्थिति:
- राज्य में 14 लोकसभा, 126 विधानसभा और सात राज्यसभा सीटें हैं।
- वर्तमान असम विधानसभा का कार्यकाल 20 मई, 2026 को समाप्त होगा।
परिसीमन क्या है और इसे कैसे किया जाता है?
- परिसीमन हाल की जनगणना के आधार पर लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने की प्रक्रिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक सीट पर मतदाताओं की संख्या लगभग समान हो।
- ECI के आदेश के अनुसार, "परिसीमन अभ्यास के दौरान, आयोग भौतिक सुविधाओं, प्रशासनिक इकाइयों की मौजूदा सीमाओं, संचार की सुविधा और सार्वजनिक सुविधा को ध्यान में रखेगा और जहां तक व्यावहारिक हो, निर्वाचन क्षेत्रों को भौगोलिक रूप से कॉम्पैक्ट क्षेत्रों के रूप में रखा जाएगा।
असम में परिसीमन क्यों रोका गया?
- परिसीमन पैनल तीन बार (1952, 1962 और 1972) नियमित रूप से स्थापित किए गए थे, 1976 में राज्यों में परिवार नियोजन कार्यक्रमों को देखते हुए अभ्यास निलंबित कर दिया गया था।
- हालांकि, चार उत्तर-पूर्वी राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड का परिसीमन अलग-अलग राष्ट्रपति के आदेशों के माध्यम से "सुरक्षा जोखिमों" के कारण स्थगित कर दिया गया था।
वर्ष 1981 और 1991 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन नहीं?
- गौरतलब है कि वर्ष 1981 और 1991 के जनगणना के बाद कोई भी परिसीमन नहीं किया गया था।
- दरअसल जिन राज्यों ने अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण से जुड़े प्रयासों को अच्छी तरह से लागू किया उनकी तुलना में जनसंख्या बाहुल्य वाले राज्यों को परिसीमन से कुछ फायदा होने की संभावना थी।
- ऐसी संभावना थी कि जनसंख्या बाहुल्य वाले राज्यों को संसद में ज्यादा प्रतिनिधित्व मिल सकता है। इन्हीं विवादों को टालने के लिए संविधान में संशोधन किया गया और परिसीमन को 2001 तक टाल दिया गया। बाद में, इसमें पुनः संशोधन करके परिसीमन को साल 2026 तक टाल दिया गया।
- यही वजह था कि साल 2002 में जो परिसीमन किया गया था उसमें लोकसभा की जो मौजूदा सीटें थी, उनकी बस सीमाओं में ही परिवर्तन किया गया, सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया।
परिसीमन आयोग
- परिसीमन आयोग भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक उच्च-शक्ति निकाय है।
- इसके आदेश न्यायिक समीक्षा से परे हैं।
- इसके आदेशों की प्रतियां लोक सभा और संबंधित राज्य विधान सभा के समक्ष रखी जाती हैं, लेकिन उनके द्वारा इसमें किसी भी प्रकार के संशोधन की अनुमति नहीं है।
- यह "एक वोट एक मूल्य" के सिद्धांत पर कार्य करता है
- सदस्य
- सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
- मुख्य चुनाव आयुक्त
- संबंधित राज्य चुनाव आयुक्त।
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 82: यह संसद को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम बनाने का अधिकार प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 170: यह प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार राज्यों को क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित करने का प्रावधान करता है।
भारत में, ऐसे परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है:
- 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 के तहत
- 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1962 के तहत
- 1973 में परिसीमन अधिनियम, 1972 के तहत
- 2002 में परिसीमन अधिनियम, 2002 के तहत।
कार्य
- निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का इस प्रकार निर्धारण करना कि सभी सीटों की जनसंख्या, जहां तक संभव हो, समान हो।
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की पहचान करना जहाँ उनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
- आयोग के सदस्यों के बीच मतभेद के मामले में, बहुमत से निर्णय होते है।
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