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उत्तर-पूर्व में परिसीमन: प्रश्न और चिंताएँ

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राज्यतंत्र व शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संघीय ढाँचे से सम्बंधित विषय एवं चुनौतियाँ, विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ, सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय)

चर्चा में क्यों?

विधि मंत्रालय द्वारा जम्मू और कश्मीर सहित उत्तर-पूर्व के चार राज्यों के लिये परिसीमन आयोग के गठन हेतु इस वर्ष मार्च में एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसके सम्बंध में विशेषज्ञों द्वारा कुछ चिंताएँ व्यक्त की जा रहीं हैं।

पृष्ठभूमि

भारत में अब तक 4 बार परिसीमन आयोग का गठन किया जा चुका है। अंतिम बार परिसीमन का कार्य वर्ष 2002 से प्रारम्भ हुआ था, जो वर्ष 2008 में सम्पन्न हुआ। इस परिसीमन के तहत उत्तर-पूर्व के 4 राज्यों को शामिल नहीं किया गया था। इन राज्यों में परिसीमन करने के लिये केंद्र द्वारा परिसीमन आयोग की स्थापना के आदेश को चुनाव आयोग (ई.सी.) के पूर्व कानूनी सलाहकार एस. के. मेंदीरत्ता ने ‘असंवैधानिक’ और ‘अवैध’ कहा है। इस सम्बंध में मेंदीरत्ता द्वारा लिखे गए पत्र को चुनाव आयोग ने विधि मंत्रालय को भेज दिया है। एस. के. मेंदीरत्ता के अनुसार, विधि मंत्रालय द्वारा जारी की गई अधिसूचना ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950’ का उल्लंघन करती है।

एस.के. मेंदीरत्ता: व्यक्ति परिचय

i. एस.के. मेंदीरत्ता 50 वर्ष से अधिक समय तक चुनाव आयोग के कानूनी सलाहकार रह चुके हैं अतः ऐसे मामलों में उनकी राय महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
ii. उन्हें परिसीमन का विशेषज्ञ माना जाता है और वह वर्ष 2002 में गठित परिसीमन आयोग के सलाहकार थे।
iii. मेंदीरत्ता ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के तहत उत्तराखंड के 70 निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन कार्य में चुनाव आयोग की सहायता की थी।

परिसीमन: परिभाषा और आवश्यकता

  • ‘परिसीमन’ का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया।
  • जनसंख्या में हुए परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करने के लिये लोक सभा व विधान सभा सीटों की सीमाओं के पुनर्गठन और पुनर्वितरण का कार्य परिसीमन कहलाता है। नियमानुसार परिसीमन का कार्य हाल की जनगणना के अनुसार किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया में, किसी राज्य को आवंटित सीटों की संख्या में परिवर्तन किया भी जा सकता है और नहीं भी। हालाँकि, किसी राज्य में एस.सी. और एस.टी. सीटों की संख्या को जनगणना के अनुसार बदल दिया जाता है।
  • परिसीमन का उद्देश्य जनसंख्या के समान खण्डों के लिये विधायिका में समान प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने के साथ-साथ भौगोलिक क्षेत्रों का इस प्रकार से उचित विभाजन करना है, जिससे किसी भी राजनीतिक दल को कोई अतिरिक्त लाभ न हो।
  • साथ ही, परिसीमन का उद्देश्य ‘एक मत एक मूल्य’ के सिद्धांतों का अनुपालन करना भी है।
  • उल्लेखनीय है कि परिसीमन आयोग के आदेशों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। ये आदेश लोकसभा और सम्बंधित राज्य विधानसभाओं के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं परंतु इसमें संशोधनों की अनुमति नहीं होती है।

परिसीमन: कब और कितनी बार?

  • अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के आधार पर परिसीमन का कार्य किया जाता है। इस तरह की पहली कवायद सन् 1950-51 में राष्ट्रपति द्वारा चुनाव आयोग की मदद से की गई थी।
  • वर्ष 1952 में ‘परिसीमन आयोग अधिनियम’ के बाद से परिसीमन का कार्य वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में गठित किये गए परिसीमन आयोगों द्वारा सम्पन्न हुए हैं। इस प्रकार, अभी तक 4 परिसीमन आयोगों का गठन किया जा चुका है।
  • वर्ष 1981 और 1991 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया था। यह इस प्रावधान का नतीजा था कि किसी राज्य में लोक सभा की सीटों की संख्या और उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात, जहाँ तक ​व्यावहारिक है, सभी राज्यों के लिये समान हों।
  • यद्यपि इसका तात्पर्य यह था कि जनसंख्या नियंत्रण में कम रुचि रखने वाले राज्यों (उत्तर प्रदेश, बिहार आदि) को संसद में अधिक सीटें प्राप्त हो रही थीं, जबकि परिवार नियोजन को बढ़ावा देने वाले दक्षिणी राज्यों को कम सीटें प्राप्त हो रही थीं।
  • इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1976 में किये गए संविधान संशोधन (42वें) द्वारा वर्ष 2001 तक परिसीमन को स्थगित कर दिया गया था।
  • 84वें संविधान संशोधन अधिनियम,2001 द्वारा वर्ष 2026 तक सीटों की संख्या को स्थिर कर दिया गया है। ऐसा इस अनुमान के मद्देनज़र किया गया था कि वर्ष 2026 तक देश एक समान जनसंख्या वृद्धि दर को हासिल कर लेगा। इस प्रकार, भविष्य का परिसीमन 2031 की जनगणना पर आधारित होगा।
  • अतः वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर जुलाई 2002 से 31 मार्च, 2008 के मध्य सम्पन्न अंतिम परिसीमन के द्वारा केवल मौजूदा लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमाओं को पुनः व्यवस्थित करने के साथ आरक्षित सीटों की संख्या के परीक्षण का कार्य किया गया।

परिसीमन: वर्ष 2002-08 और कुछ राज्यों का अपवर्जन

  • वर्ष 2002-08 के परिसीमन के खिलाफ अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड के विभिन्न संगठनों द्वारा परिसीमन हेतु संदर्भ वर्ष के रूप में 2001 की जनगणना के उपयोग को गुवाहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
  • असम ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) को अद्यतन नहीं किये जाने के कारण परिसीमन के कार्य को स्थगित करने की माँग की थी।
  • वर्ष 2008 में परिसीमन अधिनियम में संशोधन किया गया और फरवरी 2008 में इन चार राज्यों में परिसीमन को स्थगित करने के लिये राष्ट्रपति द्वारा आदेश जारी किये गए थे।

परिसीमन: 4 राज्यों में पुनः शुरू करने का निर्णय- कब और क्यों?

  • इसी वर्ष 28 फ़रवरी को राष्ट्रपति द्वारा फ़रवरी 2008 के आदेश को रद्द करते हुए 4 राज्यों में परिसीमन का कार्य पुनः शुरू करने का रास्ता साफ कर दिया गया।
  • इससे सम्बंधित ताजा आदेश को विधि मंत्रालय के विधायी विभाग द्वारा मार्च माह में अधिसूचना के रूप में जारी किया गया, जिसके अनुसार परिसीमन अधिनियम, 2002 के तहत परिकल्पित निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन अब किया जा सकता है। साथ ही, इसके लिये एक परिसीमन आयोग के गठन को भी अधिसूचित किया गया।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि इस क्षेत्र में विद्रोह की घटनाओं में कमी आई है, जो परिसीमन के लिये काफी अनुकूल स्थिति पैदा करती हैं।
  • इसके अतिरिक्त जम्मू और कश्मीर सहित चार राज्यों में परिसीमन का निर्णय सी.ए.ए. के कारण उपजी आशांति को भी माना जा रहा है।

परिसीमन: आयोग की संरचना

  • अनुच्छेद 82 के तहत, संसद द्वारा प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
  • परिसीमन आयोग की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
  • इसकी संरचना इस प्रकार होती है:

1. उच्चतम न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश (अध्यक्ष के रूप में)
2. मुख्य चुनाव आयुक्त या उनके द्वारा नामित अन्य चुनाव आयुक्त (पदेन सदस्य)
3. सम्बंधित राज्य के राज्य चुनाव आयुक्त (पदेन सदस्य)

  • वर्तमान में परिसीमन आयोग में अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई और चुनाव आयोग के प्रतिनिधि के तौर पर निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा को नामित किया गया है।
  • ज्ञात हो कि इससे पूर्व वर्ष 2002 में परिसीमन आयोग का गठन न्यायाधीश कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में किया गया था।

परिसीमन: राज्यों में सीटों की संख्या में परिवर्तन

  • संविधान द्वारा वर्ष 2026 तक सीटों की संख्या में परिवर्तन को स्थगित कर दिया गया है, अतः इन राज्यों में केवल सीटों की सीमा क्षेत्रों में परिवर्तन किया जा सकता है न की संख्या में।
  • साथ ही, यह आयोग जनगणना के अनुसार एस.सी. और एस.टी. की सीटों की संख्या का पुनर्निर्धारण कर सकता है। इस प्रकार अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड की लोक सभा और विधान सभा सीटों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
  • हालाँकि, पूर्व की असामान्य परिस्थितियों के कारण, परिसीमन के बाद अब जम्मू और कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़कर 114 हो जाएंगी, जिससे जम्मू क्षेत्र का प्रतिनिधित्त्व बढ़ने की उम्मीद है। इसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिये 24 सीटें शामिल हैं।
  • जम्मू और कश्मीर का अंतिम परिसीमन वर्ष 1995 में किया गया था जब यह राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन था। जम्मू और कश्मीर विधानसभा द्वारा वर्ष 2002 में जम्मू और कश्मीर जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम में संशोधन कर वर्ष 2026 तक परिसीमन पर रोक लगा दी गई थी।
  • उल्लेखनीय है कि जम्मू और कश्मीर का परिसीमन जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में संशोधन के कारण वर्ष 2011 की जनगणना पर आधारित होगा।

परिसीमन: इन 4 राज्यों के लिये इसके असंवैधानिक और अवैध होने का तर्क

  • एस. के. मेंदीरत्ता के अनुसार, विधि मंत्रालय द्वारा मार्च में जारी की गई अधिसूचना जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1950 का उल्लंघन करती है।
  • वर्ष 2008 में, राष्ट्रपति द्वारा अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड में परिसीमन को स्थगित कर दिया गया था, जिसके बाद संसद द्वारा निर्णय किया गया था कि भविष्य में चार पूर्वोत्तर राज्यों में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के परिसीमन के सीमित उद्देश्य हेतु एक अन्य परिसीमन आयोग का गठन करने के बजाय यह कार्य चुनाव आयोग द्वारा किया जाएगा। इस उद्देश्य के लिये जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1950 में संशोधन करते हुए धारा 8A को जोड़ा गया था।
  • संसद को इस तथ्य द्वारा निर्देशित किया गया था कि चुनाव आयोग में निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने की प्रधानता निहित है। चुनाव आयोग द्वारा ही दिल्ली को वर्ष 1991-92 में और उत्तराखंड को वर्ष 2000 में सीमांकित किया गया था।
  • इस प्रकार, विधि मंत्रालय की अधिसूचना और जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1950 की धारा 8A के मध्य अंतर्विरोध हैं। जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1950 के अनुसार इन चार उत्तर-पूर्वी राज्यों में परिसीमन का कार्य चुनाव आयोग के पुनर्विचार के दायरे में आता है। अतः इस उद्देश्य के लिये केंद्र को अलग से एक परिसीमन आयोग की अधिसूचना जारी नहीं करनी चाहिये था।
  • इस नए परिसीमन आयोग को अदालतों द्वारा अमान्य घोषित कर दिया जाएगा परिणामस्वरूप यह केवल सार्वजनिक धन का अपव्यय होगा।
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