(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र व राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान व निकाय) |
संदर्भ
- मानवविज्ञानियों (Anthropologists) ने भारत में ‘जनजाति’ (Tribes) की परिभाषा में परिवर्तन का आह्वान किया है। उनका मत है कि किसी समुदाय को जनजाति के रूप में वर्गीकृत करने का मूल्यांकन ‘जनजाति के स्पेक्ट्रम’ के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि द्विआधारी प्रश्न के आधार पर कि वह जनजाति ‘है’ अथवा ‘नहीं’ है।
- भारतीय मानव विज्ञान कांग्रेस में इस पर व्यापक सहमति बनी। इसमें भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (AnSI) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने हिस्सा लिया।
भारत में अनुसूचित जनजाति की आबादी
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों के रूप में 705 जातीय समूह सूचीबद्ध हैं।
- अनुसूचित जनजातियों के रूप में 10 करोड़ से अधिक भारतीय अधिसूचित हैं जिनमें से 1.04 करोड़ शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं। अनुसूचित जनजातियाँ कुल जनसंख्या का 8.6% और ग्रामीण आबादी का 11.3% हिस्सा हैं।
द्विआधारी प्रश्न
द्विआधारी प्रश्न या बाइनरी प्रश्न (Binary Question) को हाँ/नहीं या क्लोज्ड क्वेश्चन के रूप में भी जाना जाता है। इन प्रश्नों के केवल दो संभावित उत्तर होते हैं, जैसे- ‘हां’ या ‘नहीं’ अथवा ‘सत्य’ या ‘असत्य’।
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किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची में समावेशन या बहिष्करण की प्रक्रिया
- राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन किसी विशेष समुदाय को एस.टी. (या एस.सी.) सूची में शामिल करने या बाहर करने की सिफारिश कर सकता है। ऐसे प्रस्ताव संबंधित राज्य सरकार की ओर से केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय को भेजा जाता है।
- जनजातीय कार्य मंत्रालय अपने विचार-विमर्श के माध्यम से प्रस्ताव की जाँच करता है और इसे भारत के महापंजीयक (RGI) को भेजता है। आर.जी.आई. द्वारा अनुमोदित होने के बाद यह प्रस्ताव राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग या राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजा जाता है। इसके बाद प्रस्ताव को वापस केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है जो अंतर-मंत्रालयी विचार-विमर्श के बाद इसे अंतिम मंजूरी के लिए कैबिनेट में प्रस्तुत करता है।
- यह प्रस्ताव तभी प्रभावी होता है जब राष्ट्रपति द्वारा संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन करने वाले विधेयक को लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों से पारित किए जाने के बाद मंजूरी प्रदान की जाती है।
भारत सरकार द्वारा जनजातीय पहचान के लिए प्रयुक्त मानदंड
- वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा समुदायों को एस.टी. के रूप में वर्गीकृत करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले मानदंडों का निर्धारण वर्ष 1965 में लोकुर समिति द्वारा किया गया था।
- इन मानदंडों में शामिल हैं :
- आदिम लक्षण
- विशिष्ट संस्कृति
- भौगोलिक अलगाव
- बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच
- पिछड़ापन
- विगत एक दशक में शिक्षाविदों एवं विशेषज्ञ पैनल ने इन मानदंडों को अप्रचलित व अर्थहीन करार दिया है।
- विशेषज्ञों का तर्क है कि वस्तुतः कोई भी समुदाय इन मानदंडों को 100% पूरा नहीं करता है। इसलिए, इन मानदंडों के स्थान पर समुदाय की ‘जनजातीयता’ का आकलन करने के लिए एक फ़ॉर्मूला या पद्धति का निर्माण किया जा सकता है।
मानदंडों में बदलाव की आवश्यकता
विभिन्न समुदायों द्वारा एस.टी. सूची में शामिल होने की माँग
- वर्तमान में भारत में एस.टी. सूची में 756 से अधिक प्रविष्टियाँ हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के बाद से लगभग 27 समुदायों को एस.टी. सूची में जोड़ा गया है जिनमें से 5 मुख्य प्रविष्टियाँ और 22 उप-प्रविष्टियाँ हैं।
- भारत में कई अन्य समुदाय भी इस सूची में शामिल होने की माँग कर रहे हैं जिससे कुछ मामलों में अंतर-समुदाय संघर्ष भी उत्पन्न हो रहा है।
- इसे मणिपुर संघर्ष के संदर्भ में समझा जा सकता है जहाँ कुकी-जो व नागा जनजातियों द्वारा मैतेई समुदाय को एस.टी. के रूप में शामिल करने की माँग का विरोध किया जा रहा है।
मानदंडो की अव्यवहार्यता
भारत में समुदायों को ‘जनजातियों’ के रूप में वर्गीकृत करने के लिए स्वतंत्रता के बाद से केंद्र सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय आयोगों ने वर्गीकरण की समस्याओं को हल करने वाले मानदंडों का एक सेट बनाने की कोशिश की है।
पूर्व में प्रयास
- सरकार ने एस.टी. दर्जे के मानदंडों में बदलाव के लिए तत्कालीन जनजातीय मामलों के सचिव हृषिकेश पांडा के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया था।
- इस टास्क फोर्स ने वर्ष 2014 में सौंपी गई रिपोर्ट में लोकुर समिति द्वारा निर्धारित मानदंडों को बदलने की सिफारिश की थी।
- पांडा टास्क फोर्स की रिपोर्ट के आठ वर्ष बाद सरकार ने घोषणा की कि उसने लोकुर समिति के मानदंडों को जारी रखने का निर्णय लिया है।
मानदंडों में बदलाव के लिए सुझाव
संकेतकों के मैट्रिक्स का निर्माण
- हाल ही में आयोजित भारतीय मानव विज्ञान कांग्रेस में आदिवासी आबादी को जाति-आधारित और ‘मुख्यधारा’ समुदायों से विभेद करने के लिए एक मैट्रिक्स या स्पेक्ट्रम विकसित करने पर सहमति बनी।
- जनजातीय आबादी को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने और सटीक वर्गीकरण सुनिश्चित करने के लिए भी इसे महत्त्वपूर्ण माना गया।
- इस मैट्रिक्स में शामिल प्रत्येक संकेतक को भारांश दिया जाएगा, ताकि समुदाय की ‘जनजातीयता का स्तर’ निर्धारित किया जा सके।
सामाजिक मान्यताओं को शामिल करने पर बल
लोकुर समिति द्वारा निर्धारित मानदंडों के स्थान पर विशेषज्ञों ने विवाह, नातेदारी, नातेदारी का वर्गीकरण, व्यवहार में प्रचलित अनुष्ठान, भाषा एवं सांस्कृतिक संकेतकों की भौतिकता जैसे सामाजिक मान्यताओं को शामिल करने पर बल दिया है।
सभ्यतागत दृष्टिकोण
- एस.टी. समुदाय के वर्गीकरण के लिए निर्मित किए गए किसी भी मैट्रिक्स में एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह शामिल करना है कि समुदाय स्वयं को किस तरह से देखना पसंद करते हैं।
- विशेषज्ञों के अनुसार इसके लिए ऑस्ट्रेलिया एवं चीन में प्रयोग किए जाने वाले ‘विकासवादी’ दृष्टिकोण से हटकर ‘ऐतिहासिक या सभ्यतागत’ दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे समुदायों के साथ सह-अस्तित्व के साक्ष्य मौजूद हैं जिनका अपने आसपास के अन्य समुदायों के साथ कोई दमनकारी या शोषणकारी संबंध नहीं है।