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भारत में प्रकृति पुनर्स्थापन कानून की मांग

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

  • हाल ही में, यूरोपीय संघ ने प्रकृति पुनर्स्थापन (The Nature Restoration Law : NRL) को अपनाया है। वर्तमान में प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण एक गंभीर वैश्विक मुद्दा है और भारत भी अपनी विशाल भौगोलिक एवं पारिस्थितिक विविधता के साथ इसका अपवाद नहीं है।
  • भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 30% हिस्सा भूमि क्षरण की समस्या से ग्रसित है। फलतः भारत के लिए एक व्यापक प्रकृति पुनर्स्थापन कानून अपनाना महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में यूरोपीय संघ प्रकृति पुनर्स्थापन कानून एक मॉडल हो सकता है।

यूरोपीय संघ के प्रकृति पुनर्स्थापन कानून (NRL) के बारे में 

पृष्ठभूमि 

  • यूरोपीय संघ ने 17 जून, 2024 को प्रकृति पुनर्स्थापन कानून को अपनाया। यह संपूर्ण यूरोप में पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्स्थापन के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित करता है।
    • यूरोप के 80% से ज़्यादा पर्यावास उपयुक्त स्थिति में नहीं हैं जिससे जैव विविधता का तीव्र ह्रास हो रहा है।
  • यह वर्ष 2030 के लिए यूरोपीय संघ की जैव विविधता रणनीति एवं यूरोपीय ग्रीन डील का हिस्सा है। 

पुनर्स्थापना लक्ष्य 

  • वर्ष 2030 तक 20% क्षरित भूमि एवं समुद्री क्षेत्रों को पुनर्स्थापित करना। 
  • वर्ष 2050 तक आवश्यकता वाले सभी पारिस्थितिकी तंत्रों की पूर्ण पुनर्स्थापन का लक्ष्य प्राप्त करना 
    • इनमें जंगल, आर्द्रभूमि, नदियाँ, कृषि भूमि एवं शहरी हरित स्थान शामिल हैं।

मुख्य विशिष्ट लक्ष्य

  • 25,000 किलोमीटर लंबी नदियों को उनकी प्राकृतिक, मुक्त-प्रवाह स्थिति में पुनर्स्थापन करना
  • वर्ष 2030 तक पूरे महाद्वीप में 3 अरब वृक्ष रोपित करना 

भारत के समक्ष पर्यावरणीय चुनौतियाँ

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मरुस्थलीकरण एवं भूमि क्षरण एटलस के अनुसार, वर्ष 2018-19 में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 97.85 मिलियन हेक्टेयर (29.7%) भूमि क्षरण से प्रभावित हुआ। 
    • यह वर्ष 2003-05 में 94.53 मिलियन हेक्टेयर से ज़्यादा है।
  • गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं राजस्थान जैसे प्रमुख राज्यों में भूमि क्षरण अधिक है। इन राज्यों में कुल मिलाकर भारत के मरुस्थलीकृत भूमि क्षेत्र का 23.79% है।
  • गंगा व यमुना जैसी प्रमुख नदियाँ गंभीर जल गुणवत्ता समस्याओं व अवरोधों का सामना कर रही हैं। वस्तुतः जल की कमी तथा प्रदूषण दोनों में वृद्धि हुई है।

मौजूदा कार्यक्रम एवं पहल

  • ग्रीन इंडिया मिशन
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
  • एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वाटरशेड कार्यक्रम)
  • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम
  • हालाँकि, इन प्रयासों के बावजूद क्षरण के पैमाने और तेज़ गति में व्यवस्थित परिवर्तन लाने के लिए एक व्यापक, राष्ट्रव्यापी व कानूनी रूप से बाध्यकारी ढांचे की आवश्यकता है।

पुनर्स्थापना के लाभ

विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, प्रकृति की पुनर्स्थापना से वैश्विक स्तर पर वर्ष 2030 तक 10 ट्रिलियन डॉलर वार्षिक तक का आर्थिक लाभ हो सकता है।

आर्थिक लाभ 

  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि : मृदा स्वास्थ्य एवं जल संसाधनों को बहाल करने से फसल उत्पादन में सुधार होगा, जिससे बेहतर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
  • रोजगार सृजन : पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली लाखों नौकरियों का सृजन कर सकती है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बड़े पैमाने पर बहाली के प्रयासों के लिए मैनुअल श्रम, तकनीकी विशेषज्ञता एवं निगरानी की आवश्यकता होगी।
  • सतत विकास को बढ़ावा : एस.डी.जी. 15 (भूमि पर जीवन) में सीधे योगदान करना, जो वनों के प्रबंधन, मरुस्थलीकरण से निपटने और भूमि क्षरण को रोकने पर केंद्रित है।

सामाजिक लाभ 

  • पुनर्स्थापना प्रयासों से जल सुरक्षा में सुधार
  • बाढ़ और सूखे के प्रभाव में कमी  
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन में वृद्धि की संभावना 
  • स्थानीय आजीविका को बढ़ावा 
    • इससे विशेषकर खेती, वानिकी एवं मत्स्ययन पर निर्भर ग्रामीण समुदायों को लाभ होगा।

जलवायु परिवर्तन शमन

  • पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली, विशेष रूप से वन एवं आर्द्रभूमि को बहाल करने से कार्बन अवशोषण में वृद्धि होगी। इससे भारत को पेरिस समझौते के तहत अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी।
  • क्षरित भूमि से वर्तमान में जितना कार्बन अवशोषण होता है, उससे अधिक उत्सर्जन होता है। इसलिए इन भूमियों को बहाल करने से कार्बन सिंक में वृद्धि होगी, जो जलवायु के प्रति सहनशीलता में योगदान देगा।

भारत के लिए संभावित प्रकृति पुनर्स्थापन कानून संबंधी सुझाव 

यूरोपीय संघ के एन.आर.एल. से प्रेरणा लेते हुए भारत में एक समान कानून देश की पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए संरचित किया जा सकता है, जो दीर्घकालिक पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापना सुनिश्चित करता है।

पुनर्स्थापना लक्ष्य 

  • भारत को वर्ष 2030 तक अपनी क्षरित भूमि के 20% को बहाल करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य वर्ष 2050 तक देश भर में क्षरित सभी पारिस्थितिकी तंत्रों को पूरी तरह से पुनर्स्थापित करने का होना चाहिए। 
    • इसमें जंगल, आर्द्रभूमि, नदियाँ, कृषि भूमि एवं शहरी हरित क्षेत्र जैसे महत्वपूर्ण पारितंत्र शामिल हैं।

आर्द्रभूमि बहाली

  • विशेष रूप से सुंदरबन एवं चिल्का झील जैसी आर्द्रभूमियां जैव-विविधता के लिए महत्वपूर्ण हैं और प्रभावी कार्बन सिंक के रूप में काम करती हैं।
  • वर्ष 2030 तक क्षरित आर्द्रभूमि के 30% को बहाल करना, जल की गुणवत्ता को संरक्षित करना, जैव-विविधता को बढ़ावा देना और स्थानीय आजीविका के समर्थन का लक्ष्य रखा जा सकता है।

कृषि परिदृश्य एवं जैव विविधता

  • कृषि, भारत की अर्थव्यवस्था में केंद्रीय भूमिका निभाती है। कृषि वानिकी एवं संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने से कृषि भूमि को बहाल किया जा सकता है। 
  • यूरोपीय संघ में प्रयोग किए जाने वाले तितली या पक्षी सूचकांक (Butterfly or Bird index) जैसे संकेतक प्रगति को ट्रैक कर सकते हैं।
    • ग्रासलैंड बटरफ्लाई इंडेक्स एवं कॉमन बर्ड इंडेक्स का उपयोग यूरोप में प्रजातियों की प्रचुरता में परिवर्तन की निगरानी के लिए किया जाता है। 

नदी पुनरुद्धार

गंगा, यमुना एवं गोदावरी जैसी नदियाँ प्रदूषण, अतिक्रमण व मार्ग विचलन जैसी चुनौतियों से जूझ रही हैं। इस कानून द्वारा मुक्त प्रवाह वाली नदियों को बहाल करने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है तथा प्रदूषण व अवरोधों को दूर किया जा सकता है।

शहरी हरित क्षेत्र

भारत के तेजी से बढ़ते शहरी क्षेत्र (जैसे- दिल्ली, बेंगलुरु एवं मुंबई) अर्बन हीट आइलैंड व वायु प्रदूषण की दोहरी चुनौतियों का सामना करते हैं।

ताप को कम करने, प्रदूषण में कमी लाने और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए शहरी वनों एवं हरित बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना आवश्यक है। 

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