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विमुक्त जनजातियों के सामाजिक एवं आर्थिक उन्नयन की मांग

संदर्भ 

विमुक्त जनजातियों ने केंद्र सरकार द्वारा इदाते आयोग की सिफ़ारिशों को त्वरित रूप से लागू करने की मांग की है।

कौन है विमुक्त जनजातियाँ 

  •  विमुक्त जनजातियों में शामिल हैं : 
    • विमुक्त जनजातियाँ (De-Notified Tribes : DNT ) : विमुक्त जनजातियाँ (DNT) वे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत ‘जन्मजात अपराधी’ के रूप में 'अधिसूचित' किया गया था। 
      • हालाँकि वर्ष 1952 में इस अधिनियम को निरस्त कर दिया गया तथा  इस पदनाम को ‘आपराधिक जनजातियों’ से बदलकर ‘विमुक्त जनजातियाँ’ कर दिया गया।
      • इनमें मुख्य रूप से बंजारा, बावरिया, बेड़िया, भंटू, कंजर, लोधा, मोगिया, मुल्तान एवं सांसी आदि शामिल हैं।
    • खानाबदोश जनजातियाँ (Nomadic Tribes: NT) : खानाबदोश समुदाय को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो भोजन एवं आश्रय की तलाश में एक जगह पर रहने के बजाय एक जगह से दूसरी जगह भ्रमण करते रहते हैं। 
      • इनमें मुख्यत: बेदिया, चांग्पा, भूटिया एवं बक्करवाल आदि शामिल हैं। 
    • अर्ध-खानाबदोश जनजातियाँ (Semi-Nomadic Tribes: SNT) : ये जनजातियाँ भी भोजन एवं आश्रय की तलाश में वर्ष के किसी एक निश्चित मौसम में एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करती है तथा कुछ समय बाद पुन: अपने मूल स्थान पर वापस लौट आती हैं। 
      • इनमें मुख्य रूप से बांसफोर, बसोर, बाज़ीगर, सपेरा आदि शामिल हैं। 

विमुक्त जनजातियों के आर्थिक सामाजिक उन्नयन की मांग क्यों 

  • सभी राज्यों द्वारा इन्हें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करके जाति प्रमाणपत्र न दिया जाना 
    • अभी तक केवल 7 राज्यों, यथा- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा एवं राजस्थान ने ही प्रमाणपत्र जारी किया है।
  • इदाते आयोग की सिफारिशों के उचित क्रियान्वयन का अभाव
    • इन सिफारिशों में एक स्थायी आयोग की स्थापना, उचित वर्गीकरण और एक विस्तृत जाति-जनगणना शामिल है।
  • भूमिहीनता की स्थिति 
  • पहचान का अभाव 
    • कई विमुक्त जनजातियों को उपजातियों में शामिल कर लिया गया है जिससे उनकी अपनी पहचान एवं स्वायत्तता समाप्त हो गई है। 
  • सार्वजनिक सेवाओं तक सीमित पहुँच 
  • नेतृत्व एवं राजनीतिक भागीदारी का अभाव 
  • शिकायत निवारण तंत्र का अभाव

विभिन्न आयोगों की सिफारिशें 

रेनके आयोग 

  • वर्ष 2006 में विमुक्त, घुमंतू एवं अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिए बालकृष्ण सिदराम रेनके की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया था। इसने जून 2008 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 
  • इस आयोग ने वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर इनकी आबादी का अनुमान लगभग 10.74 करोड़ लगाया था। 
  • रिपोर्ट में शामिल सिफारिशें : 
    • सरकारी सेवाओं, पदोन्नति एवं संसद, विधानसभाओं, स्थानीय नागरिक निकायों और पंचायतों जैसे विधायी निकायों में विमुक्त जनजातियों के लिए आरक्षण 
    • विमुक्त जनजातियों के विकास के लिए एक अलग बजट एवं विकास निगम की स्थापना
    • आवासीय विद्यालयों का निर्माण, उच्च शिक्षा के लिए वित्तीय ऋण और छात्रवृत्ति
    • विमुक्त जनजातियों के निवास स्थानों को राजस्व गांवों के रूप में मान्यता 

इदाते आयोग कि सिफारिशें

  • वर्ष 2015 में सरकार ने भीकू रामजी इदाते की अध्यक्षता में DNT/NT/SNT के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया था जिसने वर्ष 2017 में अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की। 
  • इदाते आयोग के अनुसार देश भर में कुल 1,526 DNT/NT/SNT समुदाय हैं जिनमें से 269 को अभी तक SC/ST/OBC के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था। 
  • रिपोर्ट में शामिल सिफारिशें : 
    • इन समुदायों के लिए एक स्थायी आयोग की स्थापना 
    • समुदायों का वर्गीकरण
    • वर्ष 2021 की जनगणना में जाति-जनगणना कॉलम शामिल करके उनकी आबादी की गणना
    • सार्वजनिक शिक्षा एवं रोजगार में SC/ST/OBC कोटा के तहत उनके लिए उप-कोटा प्रदान करना

अन्य संबंधित समितियाँ एवं आयोग 

  • अनंतशयनम अयंगर समिति (1949) 
  • काका कालेलकर आयोग (1953) 
  • बी. एन. लोकुर समिति (1965) 
  • बी. पी. मंडल आयोग (1980) 
  • एम. एन. वेंकटचलैया आयोग (2002)

सरकार द्वारा इन जनजातियों के उन्नयन के प्रयास 

विमुक्त, ख़ानाबदोश एवं अर्ध- ख़ानाबदोश समुदायों के लिए विकास एवं कल्याण बोर्ड 

  • 21 फरवरी, 2019 को भीकू रामजी इदाते की अध्यक्षता में सरकार ने इन समुदायों के लिए कल्याणकारी कार्यक्रमों को लागू करने के उद्देश्य से विमुक्त, ख़ानाबदोश एवं अर्ध-ख़ानाबदोश समुदाय विकास एवं कल्याण बोर्ड (Development and Welfare Board for De-notified, Nomadic and Semi-Nomadic Communities : DWBDNC) की स्थापना की। 
  • इसकी स्थापना सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तत्वावधान में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत की गयी। 

पहचान के लिए समिति का गठन 

  • नीति आयोग द्वारा विमुक्त, ख़ानाबदोश एवं अर्ध-ख़ानाबदोश समुदायों की पहचान की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए एक समिति का गठन किया गया। 
  • भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण द्वारा इन समुदायों का नृवंशविज्ञान (Ethnographic) अध्ययन किया जा रहा है।
  • अब तक 269 जातियों की DNT’S के रूप में पहचान की जा चुकी है तथा इन्हें SC/ST/OBC श्रेणियों में रखने के लिए सर्वेक्षण प्रक्रिया जारी है। 

बजट आवंटन 

  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता संबंधी स्थायी समिति के अनुसार DNT’S समुदायों से संबंधित कल्याणकारी योजनाओं के लिए वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक की अवधि के लिए कुल 200 करोड़ रुपए का परिव्यय निर्धारित किया गया है।
    • हालाँकि, इन योजनाओं के क्रियान्वयन की गति बहुत ही धीमी है। 

केंद्र सरकार की SEED योजना 

  • फरवरी 2022 में DNTs समुदायों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए योजना (Scheme for Economic Empowerment of DNTs : SEED) की शुरुआत की गई। 
  • इस योजना में आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा एवं आवास के लिए सहायता की पेशकश की गई। 

आगे की राह 

  • DNT’S समुदायों की समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसके लिए निम्नलिखितउपाय किए जा सकते हैं :
    • प्रभावी नीति निर्माण के लिए डाटा संग्रह एवं दस्तावेज़ीकरण : इससे DNT’S की विविध आवश्यकताओं एवं सांस्कृतिक संदर्भों को समझकर उनके विशिष्ट परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील लक्षित हस्तक्षेपों का विकास किया जा सकेगा।
    • शिक्षा एवं कौशल विकास : DNT’S के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच के उद्देश्य से खानाबदोश क्षेत्रों में आवासीय विद्यालय, छात्रवृत्ति, सकारात्मक कार्रवाई और उनके पारंपरिक कौशल पर आधारित व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की जानी चाहिए।
    • सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच : DNT’S समुदायों की विशिष्ट स्वास्थ्य चिंताओं को दूर करने और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में अंतर को पाटने के लिए मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिक की आवश्यकता है।
    • आर्थिक सशक्तीकरण : DNT’S समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम, ऋण सुविधाओं तक पहुँच, स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। 
    • कानूनी सुधार एवं संरक्षण : DNT’S को उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी सुधारों के माध्यम से सशक्त बनाना आवश्यक है। भेदभावपूर्ण कानूनों को निरस्त करने, भूमि अधिकारों की रक्षा करने वाले कानून के निर्माण, जाति-आधारित भेदभाव को रोकने और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने पर बल दिया जाना चाहिए।
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