संदर्भ
हाल ही में, उत्तराखंड सरकार ने केंद्र से चमोली ज़िले की ‘नीती घाटी’ और उत्तरकाशी ज़िले की ‘नेलांग घाटी’ से ‘इनर लाइन परमिट’ (ILP) प्रणाली को वापस लेने की माँग की है।
उद्देश्य
- इसका उद्देश सीमावर्ती क्षेत्रों में बेहतर प्रबंधन करने के साथ-साथ इन क्षेत्रों में पर्यटन और अन्य आर्थिक गतिविधियों का विस्तार करना है।
- इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोगगाँवों का पुनर्वास करने के लिये इसे सभी क्षेत्रों से वापस लेने की माँग कर रहे हैं, जो प्रवास में कमी लाने के साथ-साथ सीमाई क्षेत्रों में निगरानी में भी सहायक होगा।
- विदित है कि उत्तराखंड में पर्यटकों को कम से कम तीन ज़िलो- उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और चमोली में सीमाई क्षेत्रों में जाने के लिये आई.एल.पी. आवश्यक होता है।
इनर लाइन परमिट
- ‘इनर लाइन परमिट’ की अवधारणा भारत में औपनिवेशिक शासकों द्वारा विकसित की गई थी, जो ‘बंगाल पूर्वी सीमांत नियमन अधिनियम’ (Bengal Eastern Frontier Regulation Act (BEFR)),1873 की देन है।
- इसके द्वारा जनजातीय आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्रों को मैदानी क्षेत्रों से अलग किया गया है।इन क्षेत्रों में प्रवेश करने और ठहरने के लिये भारत के अन्य क्षेत्रों के नागरिकों सहित बाहरी लोगों को एक विशेष परमिट की आवश्यकता होती है। इसी को ‘इनर लाइन परमिट’ (ILP) व्यवस्था कहा जाता है।
- साथ ही यहाँ भूमि, रोज़गार आदि के संबंध में स्थानीय लोगों को संरक्षण औरअन्य सुविधाएँ भी प्रदान की जाती हैं।
उत्तराखंड और चीन सीमा
- उत्तराखंड चीन के साथ लगभग 350 किमी. और नेपाल के साथ 275 किमी. की सीमा साझा करता है। राज्य के 13 में से पाँच ज़िले सीमावर्ती हैं। इन क्षेत्रों में अधिकाशत: मोबाइल कनेक्टिविटी का अभाव है।
- पिथौरागढ़ ज़िला सामरिक दृष्टि से अधिक संवेदनशील है क्योंकि यह चीन और नेपाल दोनों के साथ सीमा साझा करता है।