संदर्भ
हाल ही में, केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें केंद्र सरकार से केरल राज्य का नाम बदलकर ‘केरलम’ करने का आग्रह किया गया है।
क्या है भारत में किसी राज्य का नाम बदलने की प्रक्रिया
- किसी राज्य का नाम बदलने के लिए, वर्ष 1953 के दिशा-निर्देशों में निर्धारित प्रावधानों के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) से मंजूरी की आवश्यकता होती है।
- प्रस्ताव पहले राज्य सरकार से आना चाहिए और इसके बाद MHA रेल मंत्रालय, खुफिया ब्यूरो, डाक विभाग, भारतीय सर्वेक्षण विभाग और भारत के महापंजीयक जैसी कई एजेंसियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त करने के बाद अपनी सहमति देता है।
- यदि प्रस्ताव MHA द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो इसे संसद में संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया जाता है, जिसके माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 3 में संशोधन किया जाता है।
- सविधान संशोधन विधेयक पारित होने के साथ ही प्रस्ताव कानून बन जाता है और उसके बाद राज्य का नाम बदल दिया जाता है।
- संविधान के अनुच्छेद तीन के प्रावधान : राज्यों के संबंध में संसद के पास निम्नलिखित अधिकार होते हैं :
- संसद किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकती है।
- किसी राज्य के क्षेत्र को बढ़ा या घटा सकती है।
- किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है।
- किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकती है।
- इस संबंध में अनुच्छेद 3 में दो शर्तों का उल्लेख किया गया है-
- उपरोक्त परिवर्तन से संबंधित कोई अध्यादेश राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बाद ही संसद में पेश किया जा सकता है।
- संस्तुति से पूर्व राष्ट्रपति उस अध्यादेश को संबंधित राज्य के विधानमंडल का मत जानने के लिए भेजता है। राज्यों द्वारा एक निश्चित सीमा के भीतर मत दिया जाना चाहिए और राष्ट्रपति राज्य विधानमंडल के मत को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
- अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन आवश्यक नहीं
- संविधान के अनुच्छेद 4 में यह घोषित किया गया है कि नए राज्यों का प्रवेश या गठन (अनुच्छेद 2 के अंतर्गत), नये राज्यों के निर्माण, सीमाओं, क्षेत्रों और नामों में परिवर्तन (अनुच्छेद 3 के अंतर्गत) को संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नहीं माना जाएगा।
- इस तरह का कानून एक सामान्य बहुमत और साधारण विधायी प्रक्रिया के जरिए पारित किया जा सकता है।
- स्वतंत्र भारत में नाम बदलने वाला पहला राज्य पूर्वी पंजाब था, जो वर्ष 1950 में ‘पंजाब’ बन गया।
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केरल का नाम ‘केरलम’ क्यों?
- भाषाई दृष्टिकोण : मलयाली शब्द ‘केरलम’ को अंग्रेजी के ‘केरल’ शब्द से प्रतिस्थापित किया जाता है।
- ऐतिहासिक दृष्टिकोण : केरलम शब्द का सबसे पहला उल्लेख 257 ईसा पूर्व के सम्राट अशोक के दूसरे शिलालेख में मिलता है।
- शिलालेख में स्थानीय शासक को ‘केरलपुत्र’ और चेर वंश का संदर्भ देते हुए “चेर का पुत्र” भी कहा गया है।
- केरलपुत्र, जिसका शाब्दिक अर्थ संस्कृत में “केरल का पुत्र” है, दक्षिण भारत के तीन मुख्य राज्यों में से एक चेरों के राजवंश को संदर्भित करता है।
केरल राज्य का गठन
- स्वतंत्रता पूर्व : संयुक्त मलयालम भाषी लोगों के लिए राज्य की मांग पहली बार वर्ष 1920 के दशक मजबूत हुई।
- इस राज्य के अंतर्गत त्रावणकोर और कोचीन की रियासतों तथा मद्रास प्रेसीडेंसी के मालाबार जिले को एकीकृत करने की योजना थी।
- स्वतंत्रता के पश्चात : 1 जुलाई, 1949 को दो मलयालम भाषी रियासतों को मिलाकर त्रावणकोर-कोचीन राज्य बनाया गया।
- सैयद फजल अली आयोग (वर्ष 1953) : आयोग ने मलयालम भाषी लोगों के राज्य में मालाबार जिले और कासरगोड के कुछ तालुकों को शामिल करने की सिफारिश की।
- इसी क्रम में, भाषाई आधार पर राज्यों के निर्माण की सिफारिश के बाद आखिरकार 1 नवंबर, 1956 को केरल राज्य अस्तित्व में आया।