संदर्भ
18वीं लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद से ही लोकसभा उपाध्यक्ष का पद चर्चा का विषय बना हुआ है।
लोकसभा उपाध्यक्ष के लिए संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 95(1) के अनुसार अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उपाध्यक्ष अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करता है।
- अनुच्छेद 93 के अनुसार लोक सभा जितनी जल्दी हो सके सदन के दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी।
- अनुच्छेद 178 में राज्य विधानसभाओं में अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के लिए इसी तरह का प्रावधान है।
- सदन की अध्यक्षता करते समय उपाध्यक्ष के पास अध्यक्ष के समान सामान्य शक्तियाँ होती हैं।
- संविधान में उपाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। ऐसे में यह सरकारों को उपाध्यक्ष की नियुक्ति में देरी करने या उसे टालने की अनुमति देता है।
- हालाँकि संवैधानिक विशेषज्ञों के अनुसार, अनुच्छेद 93 और अनुच्छेद 178 दोनों में “होगा” और “जितनी जल्दी हो सके” शब्दों का प्रयोग यह दर्शाता है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव अनिवार्य होने के साथ ही इसे जल्द से जल्द कराया जाना चाहिए।
- वर्ष 1956 में पहले लोकसभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर का निधन हो जाने के बाद उपाध्यक्ष एम.अनंतशयनम अयंगर ने लोकसभा के शेष कार्यकाल के लिए कार्यभार संभाला था।
- अयंगर बाद में दूसरी लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए।
- वर्ष 2002 में 13वीं लोकसभा के अध्यक्ष जी.एम.सी. बालयोगी के निधन के बाद तत्कालीन उपाध्यक्ष पी.एम. सईद कार्यवाहक अध्यक्ष बने।
उपाध्यक्ष के निर्वाचन के लिए नियम
- अध्यक्ष/उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्यों में से उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है।
- सामान्यत: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए गठित में नए सदन के पहले सत्र में शपथ ग्रहण और प्रतिज्ञान के बाद अध्यक्ष का चुनाव करने की प्रथा रही है।
- लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 8 के तहत होता है।
- नियम 8 के अनुसार, चुनाव अध्यक्ष द्वारा तय की गई तिथि पर होगा।
- उपाध्यक्ष का चुनाव तब होता है जब उसके नाम का प्रस्ताव पारित हो जाता है।
- एक बार निर्वाचित होने के बाद सामान्यत: उपाध्यक्ष सदन के भंग होने तक पद पर बना रहता है।
उपाध्यक्ष की पदच्युत होना
- अनुच्छेद 94 और राज्य विधानसभाओं के संबंध में अनुच्छेद 179 के तहत अध्यक्ष या उपाध्यक्ष यदि लोक सभा का सदस्य नहीं रह जाता है तो वह अपना पद छोड़ देगा।
- अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष एक दूसरे को अपना त्यागपत्र सौंप सकते हैं।
- अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को सदन के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित लोक सभा के प्रस्ताव द्वारा पद से हटाया जा सकता है।
विपक्ष को लोकसभा उपाध्यक्ष का पद
- सामान्यतः लोकसभा उपाध्यक्ष का पद पर विपक्षी दल के किसी सदस्य के चयन की परंपरा रही है, हालाँकि इस परंपरा का कई बार उल्लंघन भी हुआ है।
- कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-I (2004-09) और यूपीए-II (2009-14) सरकारों के दौरान, उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के पास था।
- इससे पहले 13 वीं लोकसभा के दौरान भी (1999 से 2004 तक) उपाध्यक्ष का तत्कालीन विपक्ष के पास ही था।
- गौरतलब है कि, 17वीं लोकसभा के कार्यकाल में किसी भी सदस्य को उपाध्यक्ष के पद पर नियुक्त नहीं किया गया था।