(प्रारंभिक परीक्षा : कला एवं संस्कृति से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - भारतीय संस्कृति में चित्रकला के रूपों से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
हाल ही में, ‘टाटा टी प्रीमियम’ ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कारीगर समुदाय को अपना समर्थन देने के लिये ‘देश का कुल्हड़’ संग्रह का अनावरण करते हुए एक स्टार्टअप की शुरुआत की।
प्रमुख बिंदु
- इस पहल का उद्देश्य उन कारीगर समुदायों का समर्थन प्रदान करना है, जिनकी आजीविका कोविड-19 महामारी के चलते गंभीर रूप से प्रभावित हुई है।
- इसके अंतर्गत 26 अलग-अलग कुल्हड़ डिज़ाइनों को शामिल किया गया है, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- दस्तकारी कुल्हड़ कारीगर अपनी क्षेत्रीय चित्रकला शैलियों के माध्यम से अपने राज्यों के स्थलों, ऐतिहासिक घटनाओं, भोजन, त्योहारों, संस्कृति और लोकप्रिय रुपांकनों को चित्रित करने का काम करते हैं।
- इसमें हाथ से चित्रकारी किये गए कुल्हड़ क्षेत्र-विशेष कलाकृतियों जैसे तमिलनाडु की तंजौर चित्रकला, बिहार से मधुबनी, आंध्रप्रदेश की कलमकारी चित्रकला, प. बंगाल की पटुआ कला, गुजरात की पिथौरा कला और महाराष्ट्र से वरली कला आदि को शामिल किया गया है।
चित्रकला के अन्य क्षेत्रीय रूप
- तंजौर चित्रकला (तमिलनाडु)
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- तंजौर शैली विशिष्ट प्रकार की अलंकारिक चित्रकलाओं के लिये प्रसिद्ध है।
- मराठा शासकों ने 18वीं शताब्दी में इसको अत्यधिक संरक्षण प्रदान किया।
- इन्हें अधिकांशतः कांच और लकड़ी के तख्ते पलगई (पलागई) पदम पर निर्मित किया जाता है।
- इस शैली की विषयवस्तु में हिंदू देवी-देवताओं और संतों के चित्रों के अतिरिक्त पक्षियों, जानवरों और फूलों के दृश्य शामिल हैं।
- भारत सरकार द्वारा इस चित्रकला को भौगोलिक संकेतक (GI) के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
![tanjore-painting](https://www.sanskritiias.com/uploaded_files/images//tanjore-painting.jpg)
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- मधुबनी चित्रकला को मिथिला कला भी कहा जाता है, जिसका विषय धार्मिक है।
- इस चित्रकला में चित्रांकन भित्तिचित्र, पट्टचित्र और भू-चित्रण के रूपों में मिलता है।
- इस चित्रकला पर छाया का प्रभाव न होने के कारण यह एक द्विआयामी चित्रकला है।
- इसके मुख्य विषयों में हिंदू देवी-देवताओं, शादी, सामजिक घटनाओं आदि को सम्मिलित किया गया है।
- भारत सरकार द्वारा इस चित्रकला को भौगोलिक संकेतक (GI) के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
![madhubani-painting](https://www.sanskritiias.com/uploaded_files/images//madhubani-painting1.jpg)
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- यह दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में प्रचलित हस्त निर्मित चित्रकला है।
- इसमें चित्रकारी के लिये नुकीले नोक वाली बाँस की लेखनी का प्रयोग किया जाता है, जो रंगों के प्रवाह को विनियमित करती है।
- इस चित्रकला में चित्रों को सूती वस्त्र पर बनाया जाता है। इसमें वनस्पतियों से निर्मित रंगों का प्रयोग किया जाता है।
![kalamkari-painting1](https://www.sanskritiias.com/uploaded_files/images//kalamkari-painting1.jpg)
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- पटुआ कला बंगाल की लगभग 1000 वर्ष पुरानी कला है।
- इस कला के मुख्य विषय के रूप में मंगल काव्यों या हिंदू देवी-देवताओं की शुभ कहानियों को वर्णित किया जाता है।
- परंपरागत रूप से इसे कपड़े पर चित्रित किया जाता था, परंतु वर्तमान समय में इसे एक साथ सिली गई कागज की शीटों पर चित्रित किया जाता है।
![patua-art](https://www.sanskritiias.com/uploaded_files/images//patua-art.jpg)
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- इस कला का निर्माण गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ आदिवासी समुदायों द्वारा किया जाता है और इनका प्रयोजन आध्यात्मिक एवं धार्मिक बताया जाता है।
- इस समुदाय के लोग शांति और समृद्धि लाने के लिये घरों की दीवारों पर इनका चित्रण करते हैं।
- इसकी विषय-वस्तु में पशुओं, विशेष रूप से ‘घोड़ों’ का चित्रण सामान्य है।
![pithora-painting](https://www.sanskritiias.com/uploaded_files/images//pithora-painting.jpg)
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- यह चित्रकला मुख्य रूप से पश्चिमी महाराष्ट्र में प्रचलित है। इस क्षेत्र में पाई जाने वाली वरली जनजाति के नाम पर इस चित्रकला को जाना जाता है।
- यह चित्रकला पौराणिक चरित्रों या देवताओं की छवियों को नहीं, बल्कि सामजिक जीवन को चित्रित करती है।
- यह चित्रकला प्रागैतिहासिक गुफाचित्रों जैसी प्रतीत होती है।
![worli-painting](https://www.sanskritiias.com/uploaded_files/images//worli-painting.jpg)