(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : बुनियादी ढाँचा, निवेश मॉडल, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)
संदर्भ
हाल ही में, भारत सरकार ने डिज़ाइन से जुड़ी प्रोत्साहन (Design Linked Incentive- DLI) योजना का हिस्सा बनने के लिये 100 घरेलू कंपनियों, स्टार्टअप्स और छोटे व मध्यम उद्यमों को आमंत्रित किया है।
प्रमुख बिंदु
- यह योजना सेमीकंडक्टर डिज़ाइन, निर्माण को बढ़ावा देने और इंजीनियरों के प्रशिक्षण में मदद करेगी।
- डी.एल.आई. योजना का उद्देश्य भारत में फैब या सेमीकंडक्टर बनाने वाले संयंत्र स्थापित करने वाली कंपनियों को वित्तीय और ढाँचागत सहायता प्रदान करना है।
- उन्नत कंप्यूटिंग के विकास के लिये केंद्र (सी-डैक), डी.एल.आई. योजना के कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा। सी-डैक, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत निकाय है।
योजना के घटक
1. चिप डिज़ाइन के लिये बुनियादी ढाँचे का समर्थन: सी-डैक अत्याधुनिक डिज़ाइन इंफ्रास्ट्रक्चर और समर्थित कंपनियों तक इसकी पहुँच की सुविधा प्रदान करेगा।
2. उत्पाद डिज़ाइन से जुडा प्रोत्साहन: इसके तहत योग्य प्रतिभागियों को कुल लागत का 50% तक की वित्तीय सहायता व अर्धचालक डिज़ाइन में लगे अनुमोदित आवेदकों को वित्तीय सहायता के रूप में प्रति आवेदन 15 करोड़ रुपये प्रदान किये जाएँगे।
3. अविनियोजन से जुड़ा प्रोत्साहन: इंटीग्रेटेड सर्किट, चिपसेट और आई.पी. कोर के लिये सेमीकंडक्टर डिज़ाइन की कंपनियों को पांच साल के लिये शुद्ध बिक्री पर 4% से 6% तक का प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा।
योजना के लाभ
- चिप्स और सेमीकंडक्टर घटकों की मांग में आई अचानक वृद्धि से भारत में एक मज़बूत अर्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
- डी.एल.आई. जैसी योजनाएँ भारत की कुछ राष्ट्रों या कंपनियों पर उच्च निर्भरता को कम करने व इस क्षेत्र में नई कंपनियों की स्थापना से मांग और आपूर्ति को पूरा करने और नवाचार को प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।
- डी.एल.आई. योजना का उद्देश्य मौजूदा और वैश्विक प्रतिभागियों को आकर्षित करना है क्योंकि यह डिज़ाइन सॉफ्टवेयर, आईपी अधिकार, विकास, परीक्षण और तैनाती से संबंधित उनके खर्चों का समर्थन करेगा।
- यह सेमीकंडक्टर डिज़ाइन को विकसित करने के लिये घरेलू कंपनियों, स्टार्ट-अप और एम.एस.एम.ई. को बढ़ावा देगा। यह वैश्विक निवेशकों को भारत को अपने पसंदीदा निवेश गंतव्य के रूप में चुनने में भी मदद करेगा।
अन्य देशों की इस क्षेत्र में प्रतिक्रिया
- वर्तमान में, सेमीकंडक्टर निर्माण में अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, इज़रायल और नीदरलैंड की कंपनियों का दबदबा है। ये देश चिप की कमी की समस्या को दूर करने के लिये भी प्रयास कर रहे हैं। ये दुनिया के 70% सेमीकंडक्टर का उत्पादन करते हैं।
- अमेरिका विनिर्माण को पुनः विकसित करना चाहता है, ताकि बड़े पैमाने पर ताइवान और दक्षिण कोरिया में स्थित चिपमेकर्स पर देश की निर्भरता को कम किया जा सके।
- वर्ष 2030 तक यूरोपीय आयोग ने यूरोप की चिप उत्पादन हिस्सेदारी को 20% तक बढ़ाने के लक्ष्य के साथ एक सार्वजनिक-निजी अर्धचालक गठबंधन की भी घोषणा की है।
- वर्ष 2030 तक दक्षिण कोरिया ने 450 अरब डॉलर के निवेश को आकर्षित करने के लिये विभिन्न प्रोत्साहनों की पेशकश की है।
भारत के समक्ष चुनौतियाँ
- प्रोत्साहन में कमी: भारत में फैब स्थापित करने के लिये सहायक सरकारी नीतियों का कम होना और निवेश की कमी मुख्य चुनौती है।
- भू-राजनीतिक सीमाएँ: भू-राजनीतिक स्थिति और बुनियादी ढाँचे की कमी जैसे कि हवाई अड्डों, बंदरगाहों और शुद्ध जल के गैलन की उपलब्धता ना होना।
- अधिक पूंजी की आवश्यकता: फैब स्थापित करना पूंजी गहन निवेश है। इस रूप में इसमें 5 अरब डॉलर से 10 अरब डॉलर के बीच निवेश की जरूरत होती है।
- हालाँकि, भारत के पास मोहाली और बेंगलुरू में सेमीकंडक्टर फैब हैं, लेकिन वे विशुद्ध रूप से रक्षा और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिये रणनीतिक हैं।
निष्कर्ष
- सेमीकंडक्टर उद्योग तेज़ी से विकसित हो रहा है और वर्तमान दशक में यह 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। भारत इस क्षेत्र में तेज़ी से बढ़त हासिल करते हुए वर्ष 2026 तक 64 अरब डॉलर तक के बाज़ार को हासिल कर सकता है।
- डी.एल.आई. योजना के साथ-साथ इस क्षेत्र में विनिर्माण से जुड़ी प्रोत्साहन (पी.एल.आई.) योजना भारत को एक कुशल, न्यायसंगत और लचीला डिज़ाइन और निर्माण केंद्र के रूप में आकार देने में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है।