पश्चिमी घाट में एक नई अग्निरोधी व दो बार खिलने वाली (Dual Blooming) पुष्पीय प्रजाति की खोज की गई है। यह घास के मैदानों में लगी आग के कारण पुष्पित होती है तथा इसमें पुष्पों की संरचना ऐसी है जो भारतीय प्रजातियों में दुर्लभ है। इसका नाम डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा (Dicliptera Polymorpha) है।
डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा के बारे में
- डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा एक विशिष्ट प्रजाति है जो अपनी अग्निरोधी, पायरोफाइटिक प्रकृति (Pyrophytic Habit) और अपने असामान्य दोहरे खिलने वाली प्रकृति के लिए उल्लेखनीय है।
- पायरोफाइट्स वे पौधे हैं जो आग को सहन करने के लिए अनुकूलित हैं।
- यह प्रजाति वर्गीकरण की दृष्टि से अद्वितीय है जिसमें पुष्पक्रम इकाइयां (सिम्यूल्स) होती हैं जो स्पाइकेट पुष्पक्रम में विकसित होती हैं।
- यह स्पाइकेट पुष्पक्रम संरचना वाली एकमात्र ज्ञात भारतीय प्रजाति है जिसका सबसे निकट सहयोगी अफ्रीका में पाया जाता है।
- इस प्रजाति का नाम इसके विविध रूपात्मक लक्षणों को दर्शाने के लिए ही डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा गया है। इसके बारे में विस्तृत जानकारी देने वाला शोध पत्र केव बुलेटिन जर्नल में प्रकाशित किया गया था।
- डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा उत्तरी पश्चिमी घाट के खुले घास के मैदानों में ढलानों पर पनपता है। यह क्षेत्र गर्मियों में सूखे एवं प्राय: मानव-प्रेरित आग जैसी चरम जलवायु स्थितियों के संपर्क में आता है। इन कठोर परिस्थितियों के बावजूद इस प्रजाति ने अस्तित्व में रहने और वर्ष में दो बार खिलने के लिए स्वयं को अनुकूलित किया है।
- पहला पुष्प चरण मानसून के बाद (नवंबर की शुरुआत) से मार्च या अप्रैल तक होता है, जबकि मई और जून में दूसरा पुष्प चरण आग से शुरू होता है। इस दूसरे चरण के दौरान, काष्ठीय मूलवृंत (Woody Rootstock) छोटे पुष्पों की टहनियां पैदा करते हैं।
- डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा की खोज संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। आग के प्रति इस प्रजाति का अनूठा अनुकूलन और पश्चिमी घाट में इसका सीमित उत्पत्ति स्थान घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र के सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता को प्रदर्शित करता है।