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डिजिटल शिक्षा: आचार नीति की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : सामाजिक विकास, सतत् विकास, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

भारत में यूरोप की तरह ‘जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन’ (GDPR) जैसा कोई नियामक ढाँचा उपस्थित नहीं है। ऐसे में, ‘एजुकेशन टेक्नोलॉजी’ (EdTech) संबंधी ऐप्स के माध्यम से पढ़ाई करने वाले छात्रों की गोपनीयता प्रभावित हो सकती है। 

ऑनलाइन शिक्षा का प्रभुत्व

  • कोविड-19 काल में ऑनलाइन शिक्षा ने पारंपरिक कक्षा-निर्देशों को प्रतिस्थापित कर दिया है। इस दौरान लॉन्च हुए कई ‘एडटेक’ (EdTech) में से कुछ अत्यंत लोकप्रिय हो गए हैं।
  • विद्यालयों व महाविद्यालयों ने अपनी शिक्षा प्रणाली को ‘ऑफलाइन से ऑनलाइन’ मोड में परिवर्तित कर दिया है। इससे वे सामग्री वितरण, संपर्क और मूल्यांकन के द्वारा शैक्षणिक व्यवधान को न्यूनतम करने में सक्षम हुए हैं।
  • इस प्रक्रिया ने शिक्षकों को विषय-वस्तु प्रदाता (Content Providers) बनने की बजाय अधिगम-सुगमकर्ता (Learning Facilitators) बनने के लिये प्रेरित किया है।
  • ‘एडटेक ऐप्स’ का उपयोग करने से छात्रों को यह लाभ है कि वे शिक्षा प्रणाली को अपने अनुसार व्यवस्थित कर (Customise) सकते हैं तथा अधिकाधिक सीख सकते हैं। 

सूचना संग्रहण क्षमता

  • ऐप के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के दौरान उसमें बड़ी मात्रा में डाटा एकत्र हो जाता है। ऐसे में, इस डाटा का विश्लेषण करके ऐप के भावी संस्करणों को डिज़ाइन करने के दौरान ‘अपने अनुसार सीखने’ (Learning Customization) की प्रक्रिया को और अधिक सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
  • नवीनतम मोबाइल फोन व ‘हैंड-हेल्ड’ उपकरणों में कैमरा और माइक्रोफोन के अतिरिक्त जी.पी.एस., जायरोस्कोप, एक्सेलेरोमीटर, मैग्नेटोमीटर तथा बायोमेट्रिक सेंसर आदि शामिल होते हैं।
  • ये सेंसर चेहरे के भावों तथा शारीरिक तापमान में परिवर्तन के माध्यम से अनुभव और व्यक्त की गई भावनाओं, जैसे– अंतरंग डाटा तथा विद्यार्थी के परिवेश के बारे में सूचना प्रदान करते हैं। संक्षेप में, इन ऐप और उपकरणों के पास शिक्षार्थी के निजी स्पेस तक पहुँचने की क्षमता होती है, जो सामान्य परिस्थितियों में संभव नहीं है।
  • मानवीय विषयों में संलग्न शोधकर्ताओं के लिये आवश्यक है कि वे संबंधित अनुसंधान संगठन के आचार नियमों को वैश्विक मानकों के अनुरूप तैयार करें।
  • सबसे आधारभूत नियम होना चाहिये कि सूचना-संबंधी सहमति को नहीं तोड़ा जाना चाहिये। मानवीय विषयों पर कोई भी अनुसंधान करने से पूर्व, शोधकर्ताओं को अनुमति प्राप्त करने के लिये संबंधित आचार समितियों के समक्ष प्रस्ताव प्रस्तुत करना चाहिये तथा ये प्रस्ताव व अनुमतियाँ पारदर्शी प्रक्रिया से गुजरने चाहियें।
  • इसके अतिरिक्त, बच्चों के साथ कार्य करने वाले शोधकर्ताओं को चाहिये कि वे एकत्रित किये गए डाटा के प्रकार, भंडारण की विधि तथा संभावित हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षकों, माता-पिता तथा विद्यालय प्रबंधन को आश्वस्त करे।
  • उक्त बातें लिखित रूप में दी जानी चाहियें, जबकि शिक्षार्थी को बिना किसी परिणाम के किसी भी समय अध्ययन प्रक्रिया से बाहर निकलने का विकल्प भी दिया जाना चाहिये। 

न्यूनतम रक्षोपाय

  • हालाँकि एडटेक उद्योग में, जहाँ निवेश निरंतर बढ़ रहा है, शोधकर्ताओं और ऐप डेवलपर्स को यथासंभव दखल देने के लिये प्रेरित भी किया जा रहा है। पारंपरिक शोधकर्ता जिन सुरक्षा उपायों के अधीन हैं, वे या तो गायब हैं या अनुसंधान में न्यूनतम हैं, जिसे एडटेक उद्योग बढ़ावा दे रहे हैं।
  • बच्चे इन ऐप्स का प्रयोग माता-पिता या वयस्कों की बिना देखरेख में ही करते हैं तथा निजता के उल्लंघन पर ध्यान नहीं दिया जाता है। सूचना आधारित सहमति की अवधारणा उचित नहीं है क्योंकि सामान्य आदमी की पेचीदगियों को समझाने के लिये किसी उचित प्रावधान का अभाव होता है।
  • चूँकि भारत में जी.डी.पी.आर. के समान सुरक्षा व्यवस्था उपस्थित नहीं है, ऐसे में, किसी एडटेक कंपनी द्वारा एकत्र किये गए निजी डाटा का दुरुपयोग किया जा सकता है या किसी अन्य कंपनी को बेचा जा सकता है।
  • वर्ष 2014 में किये गये 'सामाजिक नेटवर्क के माध्यम से बड़े पैमाने पर भावनात्मक संचार का प्रायोगिक साक्ष्य' नामक अध्ययन के अनुसार, फेसबुक ने दिखाए जाने वाले पोस्ट के प्रकार को बदलकर लगभग 7,00,000 प्रयोगकर्ताओं की भावनाओं में परिवर्तन किया था। 

निष्कर्ष

  • इन वास्तविकताओं को देखते हुए शिक्षकों, शोधकर्ताओं, माता-पिता, शिक्षार्थियों और उद्योग विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से एडटेक कंपनियों के लिये एक आचार नीति को तैयार करना आवश्यक है।
  • इस तरह की मसौदा-नीति से संबंधित सुझाव आमंत्रित करने के लिये ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों माध्यमों का प्रयोग किया जाना चाहिये। प्रयोगकर्ताओं की निष्पक्षता, सुरक्षा, गोपनीयता और गुमनामी के मुद्दों का समाधान करना चाहिये। अंततः एक स्वस्थ शिक्षण परिवेश के हित में एडटेक कंपनियों को अनुपालन के लिये भी प्रोत्साहित करना चाहिये।
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