(प्रारंभिक परीक्षा :भारत का इतिहास,कला एवं संस्कृति के संदर्भ में)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 –भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल की कला के रूप तथा वास्तुकला के मुख्य पहलू से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
मई माह में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने त्रि-रश्मि बौद्ध गुफा परिसर में, जो महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में स्थित है,के अंतर्गत सफाई प्रक्रिया के दौरान 3 नई बौद्ध गुफाओं को खोजा गया है। इस परिसर को पांडव लेनी नाम से भी जाना जाता है।
त्रि-रश्मि बौद्ध गुफा
- त्रि-रश्मि बौद्ध गुफा परिसर को पहली बार वर्ष 1823 में कैप्टन जेम्स डेलमाइन द्वारा प्रलेखित किया गया था और अब यह एक ए.एस.आई. संरक्षित स्थल है।
- त्रि-रश्मिया पांडव लेनी गुफाएँ 24 से 25 गुफाओं का एक समूह है, जिनका निर्माण दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और छठी शताब्दी ईस्वी के मध्य त्रि-रश्मि पहाड़ी से हुआ था। ये गुफाएँ पहाड़ी के एक ऊर्ध्वाधर मुख पर स्थित हैं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।
नवीनतम गुफा
- नवीनतम गुफाओं की प्राचीनता केलेकर पुरातत्वविदों का मानना है कि ये गुफाएँ त्रि-रश्मि गुफाओं से भी पुरानी हो सकती हैं, जो शायद बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थल रहीं होगीं।
- पहली दो गुफाओं की खोज पहाड़ी पर एक जल निकासी लाइन की वार्षिक प्री-मानसून सफाई के दौरान की गई थी तथा तीसरी को टीम द्वारा आगे की खोज के दौरान खोजा गया।
- पुरातात्विक मापदंडों, ऐतिहासिक अभिलेखों और पास की गुफाओं, जैसे नासिक के पास कन्हेरी, पुणे के पास कार्ले-भांजे के साथ तुलना करने पर, ऐसा प्रतीत होता है कि ये नई खोजी गई गुफाएँ निर्माण के प्रारंभिक चरण में हैं।
- इन गुफाओं के ले आउट और वास्तुकला को देखते हुए, यह संभव है कि उन्हें मौजूदा गुफाओं से पहले उकेरा गया हो।
- ये गुफाएँ वर्तमान परिसर के विपरीत दिशा में हैं और मौजूदा परिसर से 70 से 80 फीट ऊपर हैं।
- गुफाओं को एक खड़ी पहाड़ी से उकेरा गया है और नक्काशी की शैली को देखकर ऐसा लगता है कि ये भिक्षुओं के आवास थे, जो वर्तमान परिसर से भी पुराने हैं।
- पुरातत्वविदों का मानना है कि दो गुफाएँ साझा आवास प्रतीत होती हैं और तीसरे पर शायद सिर्फ एक साधु का अधिकार था।
- सभी गुफाओं में बरामदे और भिक्षुओं के लिये विशिष्ट वर्गाकार पत्थर का मंच है। भिक्षुओं के ध्यान के लिये कन्हेरी और वाई गुफाओं की तरह विशेष व्यवस्था की गई है।
- गुफाओं में बुद्ध एवं बोधिसत्व के चित्र हैं और इंडो-ग्रीक वास्तुकला के डिज़ाइन वाली मूर्तियाँ हैं।
ओझल रहने का कारण
इन गुफाओं का लंबे समय तक लोगों की नजरों से ओझल रहने के प्रमुख 2 कारण हैं-
★ पहला कारण इस परिसर का दस्तावेजी करण है, जो सर्वप्रथम वर्ष 1823 में किया गया था, जब यह क्षेत्र घने जंगल से ढका हुआ था।
★ दूसरा कारण अभी भी इन गुफाओं का झाड़ियों एवं पेड़ों से छिपे रहना है ।हालाँकि, यहाँ पर्यटक गुफाओं को देखने या सीधे पहाड़ की चोटी पर जाने के लिये आते हैं।
निष्कर्ष
बौद्ध मूर्तियाँ और गुफाएँ (नासिक में) बौद्ध धर्म की हीनयान परंपरा का प्रतिनिधित्व करने वाली भारतीय रॉक-कट वास्तुकला (पहाड़ों को काटकर बनाया गया) का एक प्रारंभिक उदाहरण है।इन नवीनतम गुफाओं का व्यापक अध्ययन महाराष्ट्र में बौद्धगुफाओं के कालक्रम को फिर से परिभाषित कर सकता है।
अन्य स्मरणीय तथ्य
कन्हेरी की गुफाएँ
- कन्हेरी गुफ़ाएँ महाराष्ट्र में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के परिसर में ही स्थित हैं।कन्हेरी शब्द कृष्ण गिरीयानी काला पर्वत से निकला है।यह मुख्य उद्यान से 6 किमी. की दूरी पर स्थित है।
- कन्हेरी की गुफा की लंबाई 86 फुट, चौड़ाई 40 फुट और ऊँचाई 50 फुट है।इसमें 34 स्तंभ लगाए गए हैं।कन्हेरी की गणना पश्चिमी भारत के प्रधान बौद्ध दरी मंदिरों में की जाती है।
- यहाँ 9 वींई. की बनी हुई लगभग109 गुफाएँ हैं, पर प्रसिद्ध केवल एक ही है जो काली के चैत्य के अनुरूप बनाई गई है।इस चैत्यशाला में बौद्ध महायान संप्रदाय की सुंदरमूर्ति है।
कार्ले-भांजे की गुफाएँ
- कार्ले की गुफाएँ महाराष्ट्र में लोनावाला के निकट कार्ली में स्थित हैं। ये चट्टानों को काटकर निर्मित प्राचीन बौद्धमंदिर हैं।
- यहाँ पर एक भव्य चैत्य ग्रह तथा तीन विहार हैं।यह चैत्य ग्रह सबसे बड़ा और सबसे सुरक्षित दशा में है।
- कार्ले की गुफाओं के स्तंभों पर बुद्ध की मूर्तियाँ और ब्राम्हीलिपि में लेख भी उत्कीर्ण हैं।
- एक अभिलेख के अनुसार, कार्ले चैत्य का निर्माण पुष्पदत्त ने करवाया,जबकि इसे सातवाहनों ने पूर्ण किया।