(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)
संदर्भ
कोविड-19 महामारी के बाद भारतीय विश्व में जहाँ कहीं भी हैं, वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। बजट से कुछ परिवर्तन की सम्भावना दिखाई पड़ रही है। सरकार केवल महामारी से हुई हानि को ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य क्षेत्र और गरीबों पर पड़े दुष्प्रभाव से उनको सँभालने का भी प्रयास कर रही है।
विरोधाभासी बिंदु
- सरकार ने वर्ष 2020 में भिन्न-भिन्न पैकेज के माध्यम से जो व्यय किये थे वे जी.डी.पी. का 1.5% ही है। प्रस्तुत बजट को इन्हीं पैकेजों की एक क्रमिक श्रृंखला कहा जा सकता है।
- कुल मिलाकर वर्ष 2020-21 की ही तरह यह बजट भी वित्तीय संकुचन को आगे बढ़ा रहा है, जब महामारी एक कारक के रूप में नहीं थी, फिर भी मूल बजट के सापेक्ष केंद्र सरकार ने 13.4% तक ही व्यय को बढ़ाया था।
- महात्मा गाँधी रोज़गार गारंटी स्कीम व खाद्य सब्सिडी में किये जाने वाले खर्च को घटाया गया। इस असाधारण संकट की वजह से सरकार अपने राजस्व घाटे को स्थिर रखने के लिये व्यय को रोककर ऋण लेने का प्रयास कर रही है।
राजस्व आधार क्षरण
- सितंबर 2019 में कारपोरेट कर को तेज़ी से घटाया गया था पर वस्तु तथा सेवा पर लगाने वाले कर की गलत व्यवस्था; कर आधार क्षरण में कठिनाई उत्पन्न करती है। कोविड -19 महामारी के पूर्व राजस्व प्राप्ति, को जो कि वर्ष 2019-20 में 8 से 20.2 लाख करोड़ तक थी, के वर्ष 2020-21 के बजट में मामूली रूप से बढ़ने की सम्भावना व्यक्त की गई है,वर्तमान के संशोधित अनुमान के मुताबिक इससे 15.6 लाख करोड़ तक ही राजस्व की प्राप्ति हो सकेगी।
- सरकार के विनिवेश का एजेंडा जिसमे यह आशा की जा रही है कि गैर- ऋण पूँजी प्राप्त से 2.1 लाख करोड़ तक सरकार वापस ले लेगी इसका भी प्रभाव वित्त पर दिखेगा, जबकि कुल राशि का संग्रह मात्र 3200 करोड़ है लेकिन यदि खर्च को बढाया जाए तो वित्तीय घाटे की चिंता भी करनी पड़ेगी ,परन्तु ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है कि सरकार द्वारा इस संदर्भ में विशेष कदम उठाये जाएंगे, 2020-21 के सापेक्ष 2021 -22 के संशोधित बजट में मात्र 0.95% की वृद्धि ही देखी गई है, जबकि 2020-21 में इसके 14.5% वृद्धि का आंकलन किया गया था ।
सहायक बिंदु की अनदेखी
- वर्तमान वित्तीय संकुचन के रहते हुए ,मनरेगा में 1,11,500 करोड़ देने का अनुमान लगाया जा रहा था , तुलनात्मक रूप से 61,500 करोड़ दिया गया ,2019-20 के दौरान इसके तहत 71,687 करोड़ रूपए खर्च किए गए ,यह कई लोगो की आजीविका तथा रोजगार का प्रबंधन करता है , फिर इस पर कम खर्च का कोई ठोस कारण नहीं है ,जब अर्थव्यवस्था इतनी खराब स्थिति में हो
बजट में आर्थिक एवं सामाजिक सुधार के उपाय
- महामारी से सबक लेते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र के व्यय में वृद्धि की गई है ,2020-21 में यह 94,452 था जबकि वर्ष 2021-22 के बजट में इसे 2,42,836 करोड़ रूपए किया गया है, अर्थात लगभग 137% की वृद्धि हुई है।
- आधारभूत संरचना के पूँजीगत खर्च में 35% की वृद्धि की गई है, जो वर्ष 2020-21 में 4.12 लाख करोड़ था, वर्ष 2021-22 में 5.54 लाख करोड़ कर दिया गया है, इसमें लगभग 35% की वृद्धि की गई है।
- जहाँ तक ‘स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग’ की बात है तो इसमें कोई महत्त्वपूर्ण अंतर नहीं दिखता वर्ष 2020 के बजट में इसके लिये 65,00 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ था, वर्ष 2021 में 71,269 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ है, अर्थात मात्र 9.6% की वृद्धि हुई है।
- ‘जल जीवन मिशन’ प्रत्येक घर को सुरक्षित एवं पर्याप्त पेय जल की उपलब्धता प्रदान करने वाली एक योजना है, जिसके लिये वर्ष 2021-22 के बजट में 50,000 करोड़ रूपए आवंटित किये गए हैं। यद्यपि इसे ‘कोर स्वास्थ्य सुविधा’ का विकल्प नहीं कहा जा सकता।
वास्तविकता को छोड़ संभावनाओं पर विचार
- सार्वजनिक क्षेत्र की पूँजी, जो की वित्त प्राप्ति का एक साधन है,को बेचकर अवसंरचना में निवेश करना नए तरह का प्रयोग है। सार्वजनिक क्षेत्र में रणनीतिक विनिवेश, निजीकरण और गैर-लाभकारी सम्पतियों के विमुद्रीकरण का यह तरीका अर्थव्यवस्था पर दबाव उत्पन्न कर सकता है।
- इस नवउदारवादी बजट में कर व्यवस्था को निजी क्षेत्र के सापेक्ष रखा गया है, जिससे वित्तीय घाटा बढ़ने की संभावना है।
- सीमित व्यय के लिये सार्वजनिक पूँजी बेचकर वित्त का प्रबंध किया जा सकता है लेकिन इससे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के परिणाम आने की संभावना है। भारत को इसके लिये तैयार रहना होगा, लेकिन आशा है भारत इन आर्थिक झंझावतों से बाहर निकलने में सफल रहेगा।