(प्रारंभिक परीक्षा : कला एवं संस्कृति) |
चर्चा में क्यों
थाईलैंड की यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने थाईलैंड की प्रधानमंत्री शिनावात्रा को डोकरा धातु शिल्प से निर्मित पीतल की मयूर नौका उपहार में दी।

डोकरा धातु शिल्प : पीतल की मयूर नौका
- परिचय : यह ढोकरा डामर जनजातियों द्वारा प्रचलित एक प्राचीन धातु कला है, जो खोई हुई मोम तकनीक (Lost-Wax Casting) से बनाई जाती है।
- इसे ढोकरा या डोकरा कोबेल मेटल क्राफ्ट के रूप में भी जाना जाता है।
- इस कला का नामकरण ढोकरा डामर जनजातियों के नाम पर किया गया है।
- ये जनजाति ओडिशा व पश्चिम बंगाल के मुख्य पारंपरिक धातुकार हैं।
- विस्तार क्षेत्र : यह कला मुख्य रूप से पूर्वी भारत में, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में प्रचलित है।
- वर्तमान में यह गुजरात, राजस्थान एवं दक्षिण भारत में भी पाई जाती है।
- जी.आई. टैग : वर्ष 2018 में तेलंगाना के आदिलाबाद डोकरा को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दिया गया।
- तकनीक : खोई हुई मोम ढलाई तकनीक में मोम के सांचे का उपयोग करके धातु की वस्तुएं बनाई जाती हैं।
- भारत में प्रयोग : इस तरह की धातु की ढलाई तकनीक का उपयोग भारत में 4,000 वर्षों से अधिक समय से किया जा रहा है।
- इस तकनीक का उपयोग करके बनाई गई मूर्ति का सबसे पुराना नमूना मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त नृत्य करती हुई लड़की की प्रसिद्ध मूर्ति है।
पीतल की मयूर नौका की विशेषताएं :
- यह नौका छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों द्वारा निर्मित पारंपरिक भारतीय धातु शिल्प का एक शानदार उदाहरण है।
- शांति से नाव चलाता एक आदिवासी सवार मनुष्यों और प्रकृति के बीच सामंजस्य का प्रतिनिधित्व करता है, जो डोकरा कला का एक केंद्रीय विषय है।
- मोर की मूर्ति जटिल पैटर्न और रंगीन लाख के जड़ाऊ काम से सुसज्जित है।