(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)
संदर्भ
विगत वर्ष ‘हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवार रोज़गार अधिनियम, 2020’ को अधिसूचित किया गया था। इसके द्वारा निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। हाल ही में, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसके कार्यान्वयन पर स्थगन आदेश जारी किया था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दिया है।
सर्वोच्च न्यायलय का मानदंड
- सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय को इस कानून की वैधता पर एक माह में फैसला लेने का निर्देश दिया है। साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने इस आधार पर उच्च न्यायालय के अंतरिम स्थगन आदेश को रद्द कर दिया है कि उच्च न्यायालय ने बिना उचित कारण स्पष्ट किये यह आदेश दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार किसी कानून पर तब तक स्थगन आदेश जारी नहीं किया जा सकता है, जब तक कि प्रारंभिक निष्कर्ष से यह स्पष्ट न हो जाए कि उक्त कानून असंवैधानिक या अवैध है।
अधिनियम के विचारणीय प्रावधान
- कौशल, योग्यता और दक्षता के मामले में स्थानीय उम्मीदवारों की पर्याप्त संख्या उपलब्ध न होने की स्थिति में यह अधिनियम नियोक्ता को छूट भी प्रदान करता है।
- इस अधिनियम में 10 वर्षों का सूर्यास्त उपबंध है, अर्थात् यह क़ानून केवल इस अवधि के लिये ही प्रभावी है।
अधिनियम से संबंधित चुनौतियाँ
कानूनी चुनौतियाँ
- संविधान में राज्य द्वारा जन्म स्थान या निवास के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित किया गया है, जबकि ऐसे कानून इस उपबंध का अतिक्रमण करते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में निवास करने, बसने और किसी भी व्यवसाय को जारी रखने का अधिकार है किंतु ऐसे कानून इस भावना को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर राष्ट्रीय एकता को चोट पहुँचा सकते हैं।
- निजी क्षेत्र द्वारा रोज़गार में आरक्षण नीति का पालन करने से संबंधित मुद्दा अधिक विवादास्पद है। राज्य को सार्वजनिक क्षेत्र में रोज़गार में आरक्षण प्रदान करने का अधिकार अनुच्छेद 16(4) से मिलता है। इसमें पर्याप्त प्रतिनिधित्व के अभाव में कुछ वर्गों के लिये आरक्षण का प्रावधान है। हालाँकि, संविधान में निजी क्षेत्र में रोज़गार में आरक्षण को अनिवार्य बनाने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान नए संवैधानिक विवाद को जन्म दे सकता है।
आर्थिक चुनौतियाँ
- हरियाणा राज्य के इस कानून में निहित आवास का उपबंध राज्य में स्थित कंपनियों, सोसाइटियों, ट्रस्टों, साझेदारी फर्मों और व्यक्तिगत नियोक्ताओं पर लागू होता है। इससे स्थानीय उद्योगों में राज्य के बाहर की प्रतिभाओं के नियोजन में बाधा उत्पन्न होगी, जो राज्य के उद्योगों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है।
- कुछ स्थानीय नियोक्ताओं को राज्य के बाहर के कर्मचारी अपेक्षाकृत कम लागत (कम वेतन) में उपलब्ध हो जाते हैं। साथ ही, कुछ राज्यों में स्थानीय आबादी में दक्ष श्रमिकों की भारी कमी भी हो सकती है। अत: ऐसे क़ानून श्रम प्रवाह का संकट उत्पन्न कर सकते हैं।
वेतन एवं रोज़गार
- अकुशल कर्मचारियों को सामान वेतन मिलने से अन्य कर्मचारियों के बीच असंतोष की भावना भी उत्पन्न होगी। इससे उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा प्रभावित हो सकती है।
- इसके अतिरिक्त, यह कानून एम.एस.एम.ई. (MSMEs) कंपनियों को नुकसान पहुँचाने के साथ-साथ उनकी विस्तार योजनाओं को भी प्रभावित करेगा, जिससे रोज़गार सृजन के बजाय रोज़गार में कमी आएगी। अत: देश में एकीकृत और गतिशील श्रमिक बाज़ार की आवश्यकता है।
समस्या के स्वरुप की पहचान
- महामारी के कारण राज्य सरकारें रोजगार के अवसर को स्थानीय कर्मचारियों व श्रमिकों के लिये सुरक्षित करना चाहती हैं। कानूनी वैधता के प्रश्न से इतर यह समस्या का मूल कारण है।
- दूसरी मुख्य समस्या रोजगार के अवसर की तलाश में बड़े पैमाने पर होने वाला पलायन है, जिसका कारण तीव्र शहरीकरण और ‘कृषि लागत-लाभ अनुपात’ का कम होना है।
- जबकि वास्तविक चुनौती शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच तथा उन्नत राज्यों और पिछड़े राज्यों के बीच व्यापक असमानता तथा व्यक्तिगत असमानता को कम करने की है।
- आरक्षण को चुनाव जीतने के लिये लोक लुभावने वादों के तौर पर उपयोग किया जाता रहा है। गत वर्ष तमिलनाडु में सत्तारूढ़ दल द्वारा अपने घोषणा पत्र में निजी क्षेत्रों में 75% आरक्षण का वादा किया गया था।
निष्कर्ष
भारत में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच असमानताओं को दूर करने पर ध्यान देना चाहिये और समाधान के तौर पर आरक्षण का ही उपयोग नहीं करना चाहिये।