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IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

डॉ. आंबेडकर का धर्म के प्रति दृष्टिकोण

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 1 व 4- स्वतंत्रता संग्राम- महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान, मानवीय मूल्य- महान नेताओं, सुधारकों एवं प्रशासकों के जीवन तथा उनके उपदेशों से शिक्षा)

संदर्भ 

प्रतिवर्ष 6 दिसंबर को डॉ. भीमराव आंबेडकर (बी. आर. आंबेडकर) की पुण्यतिथि को प्रशंसकों द्वारा महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है और वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। राजनीति, कानून एवं धर्म के बारे में उनके विचार अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। 

धर्म के प्रति दृष्टिकोण  

  • कानून के संबंध में डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचार और उनका राजनीतिक दर्शन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। साथ ही, धर्म के प्रति उनका दृष्टिकोण भी तार्किक एवं विचारपूर्ण है।
  • विभिन्न धर्मों की तीखी आलोचना के कारण कुछ लोग उन्हें धर्म के खिलाफ मानते थे किंतु वे आध्यात्मिक और सार्वजनिक जीवन में धर्म के महत्व के प्रति सचेत थे
  • अन्य धर्मों की अपेक्षा बौद्ध धर्म के बारे में उनके विचार सर्वविदित हैं और वे सभी प्रमुख धर्मों को अस्वीकार करने वाले दर्शन अर्थात् मार्क्सवाद से बुद्ध के मार्ग को श्रेष्ट मानते थे।     
    • विदित है कि डॉ. आंबेडकर ने मृत्यु से पूर्व हिंदू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लिया था।  

बौद्ध धर्म और मार्क्सवाद की तुलना

दृष्टिकोण 

  • डॉ. आंबेडकर के अनुसार, मार्क्सवाद एवं बौद्ध धर्म दोनों एक न्यायपूर्ण व सुखी समाज के लक्ष्य की कामना करते हैं किंतु बुद्ध द्वारा प्रतिपादित मार्ग मार्क्स से श्रेष्ठ हैं। 
  • हालाँकि, समय, काल और परिस्थिति के आधार पर मार्क्सवादी इस विचार का उपहास कर सकते हैं। 

समानताएँ

बौद्ध धर्म

मार्क्सवाद

धर्म का कार्य दुनिया का पुनर्निर्माण करना एवं उसे सुखी बनाना है, न कि उसकी उत्पत्ति या उसके अंत की व्याख्या करना

दर्शन का कार्य विश्व का पुनर्निर्माण करना है न कि विश्व की उत्पत्ति की व्याख्या करने में समय नष्ट करना

संपत्ति का निजी स्वामित्व एक वर्ग को शक्ति प्रदान करता है और दूसरे को दुःख की ओर ले जाता है

संपत्ति का निजी स्वामित्व शोषण के माध्यम से एक वर्ग को शक्ति और दूसरे को दुःख देता है

समाज की भलाई के लिये यह आवश्यक है कि दुःख के कारण को पहचान कर उसे दूर किया जाए

समाज की भलाई के लिये यह आवश्यक है कि निजी संपत्ति के उन्मूलन से दुख को दूर किया जाए 

सभी मनुष्य समान हैं और किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिये

समानता की आवश्यकता पर बल दिया गया है किंतु सर्वहारा वर्ग को अधिक महत्त्व दिया गया है 

अंतर 

  • दोनों में प्रमुख अंतर उनके द्वारा अपनाए जाने वाले मार्ग को लेकर है अर्थात साध्य समान हैं किंतु साधन (मार्ग) भिन्न-भिन्न हैं। मार्क्सवादियों द्वारा अपनाए गए साधन समान रूप से स्पष्ट, संक्षिप्त एवं तीव्रगामी हैं।
  • बुद्ध नैतिक स्वभाव में परिवर्तन करके किसी व्यक्ति में बदलाव की बात करते हैं जबकि मार्क्स हिंसा का सहारा लेते हैं, जो उनकी कमजोरी को प्रदर्शित करता है। 
  • मार्क्स सर्वहारा वर्ग की तानाशाही की बात करते हैं जबकि बुद्ध निजी संपत्ति के उन्मूलन के लिये ‘भिक्षुण’ के दृष्टिकोण को महत्त्व देते हैं। 'भिक्षु' सभी सांसारिक वस्तुओं का त्याग कर देते हैं। 
    • भिक्षुओं द्वारा संपत्ति के अर्जन का नियम रूस में साम्यवाद की तुलना में कहीं अधिक कठोर हैं।
    • इसके अतिरिक्त, बुद्ध का दृष्टिकोण लोकतांत्रिक है जोकि भारतीय संविधान की प्रेरक शक्ति है। 

राज्य के लिये धर्म का महत्त्व एवं साम्यवाद 

  • आंबेडकर के अनुसार, साम्यवादी इसका दावा करते हैं कि राज्य का अस्तित्त्व अंततः समाप्त हो जाएगा किंतु उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि ऐसा कब संभव होगा और राज्य की जगह कौन लेगा? 
  • साम्यवादी स्वयं स्वीकार करते हैं कि एक स्थायी अधिनायकवाद के रूप में राज्य का उनका सिद्धांत उनके राजनीतिक दर्शन की एक कमजोरी है। हालाँकि, इस कमजोरी के संदर्भ में उनकी दलील है कि एक दिन राज्य अंततः समाप्त हो जाएगा।
  • साम्यवादी विचार में यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य की जगह कौन लेगा और यदि ऐसी स्थिति में अराजकता फ़ैल जाती है, तो यह एक निरर्थक प्रयास साबित होगा। 
    • साथ ही, बल के बिना राज्य का स्थायित्व संभव नहीं है और ऐसी स्थिति में कम्युनिस्ट राज्य का क्या होगा?
  • बल के बिना धर्म ही एकमात्र चीज़ जो इसे कायम रख सकती है। धर्म के प्रति साम्यवादियों की प्रबल घृणा उन धर्मों के बीच भी अंतर नहीं कर पाती है जो उनके लिये सहायक हैं। 

अन्य धर्मों के प्रति दृष्टिकोण 

हिंदू धर्म  

  • उनके जीवन में सबसे बड़ी बाधा हिंदू समाज द्वारा अपनाई गई जाति व्यवस्था थी क्योंकि वे जिस परिवार में पैदा हुए थे उसे 'अछूत' माना जाता था। इसलिये उन्होंने जाति व्यवस्था का विरोध किया।
  • वर्ष 1935 में उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की ‘मैं एक हिंदू के रूप में पैदा हुआ क्योंकि मेरा इस पर कोई नियंत्रण नहीं था, लेकिन मैं एक हिंदू रहकर नहीं मरूंगा’। 

मुस्लिम धर्म

  • आंबेडकर के अनुसार, भारत में मुस्लिम समाज उन्हीं सामाजिक बुराइयों से पीड़ित है, जिनसे हिंदू समाज से पीड़ित हैं।
  • उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं के लिये पर्दे की अनिवार्य व्यवस्था उनको मानसिक और नैतिक पोषण से वंचित करता है।

ईसाई धर्म

  • डॉ. आंबेडकर के अनुसार यह दावा किया जाता है कि ईसाइयत द्वारा इस दुनिया में गरीबी एवं पीड़ा को महिमामंडित करने और लोगों को भविष्य का सपना दिखाने का कार्य किया जाता है। इसके विपरीत बौद्ध धर्म खुश रहने एवं नूनी तरीकों से धनार्जन की बात करता है।
  • बुद्ध ने बिना तानाशाही के संघ की दृष्टि से साम्यवाद की स्थापना करने की कोशिश की है। बंधुत्व या स्वतंत्रता के बिना समानता का कोई मूल्य नहीं होगा। तीनों का सह-अस्तित्व बुद्ध के मार्ग अक अनुसरण करने में है।  

डॉ. बी. आर. आंबेडकर : संक्षिप्त परिचय 

  • डॉ. आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश में हिंदू महार जाति में हुआ था। उन्हें समाज में गंभीर भेदभाव का सामना करना पड़ा था।
  • वर्ष 1923 में उन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा' (आउटकास्ट वेलफेयर एसोसिएशन) की स्थापना की, जो दलितों के बीच शिक्षा और संस्कृति का प्रसार करने, आर्थिक स्थिति में सुधार करने और उनकी समस्याओं से संबंधित मामलों को उचित मंचों पर उठाने व उन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये समर्पित थी।
  • उन्होंने मार्च 1927 में हिंदुओं के प्रतिगामी रीति-रिवाजों को चुनौती देने के लिये महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया। 24 सितंबर, 1932 को डॉ. आंबेडकर और गांधीजी के बीच एक समझौता हुआ, जिसे प्रसिद्ध पूना समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के अनुसार, कुछ परिस्थितियों में अछूतों के लिये आरक्षण प्रदान किया गया था। डॉ. आंबेडकर ने लंदन में तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया। 
  • डॉ आंबेडकर ने बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने के दो महीने से भी कम समय बाद 6 दिसंबर, 1956 को अंतिम सांस ली।
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