(सामान्य अध्ययन मुख्य परीक्षा पेपर-2 विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनके डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे। सामान्य अध्ययन मुख्य परीक्षा पेपर-3 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
संदर्भ
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) ने 21 फरवरी, 2022 को ‘भारत की डाटा पहुँच और उपयोग नीति (India Data Accessibility & Use Policy), 2022’ शीर्षक से एक मसौदा जारी किया। इसका उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के डाटा का उपयोग करने संबंधी भारत की क्षमता को मौलिक रूप से परिवर्तित करना है। विदित है कि सरकार द्वारा निजी क्षेत्र को सार्वजनिक डाटा के लाइसेंस और बिक्री की अनुमति देने संबंधी नीति प्रस्ताव चर्चा में रहे हैं।
नीति की आवश्यकता
- नागरिक डाटा की पीढ़ी अगले दशक में तेज़ी से बढ़ेगी, जिससे भारत की 5 ट्रिलियन-डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था की आधारशिला तैयार होगी। इस मसौदे में उल्लिखित नीतिगत उद्देश्य प्राथमिक रूप से वाणिज्यिक प्रकृति के हैं। विदित है कि राष्ट्रीय आर्थिक सर्वेक्षण, 2019 में सरकारी डाटा दुरुपयोग के वाणिज्यिक लाभों का उल्लेख किया गया है।
- व्यावसायिक उपयोग के लिये विशेष रूप से, निजी क्षेत्र को चयनात्मक डाटाबेस तक पहुँच प्रदान की जा सकती है। यह देखते हुए कि निजी क्षेत्र में इस डाटा से बड़े पैमाने पर लाभ प्राप्त करने की क्षमता है, इसके उपयोग के लिये शुल्क लेना ही उचित है। इसका उद्देश्य उत्पन्न डाटा के आर्थिक मूल्य का दोहन करना है।
- नीति की पृष्ठभूमि, डाटा साझाकरण और उपयोग में मौजूदा बाधाओं को रेखांकित करती है, जिसमें नीति निगरानी और डाटा साझा करने के प्रयासों को लागू करने के लिये निकाय की अनुपस्थिति, डाटा साझा करने के तकनीकी उपकरणों और मानकों की अनुपस्थिति, उच्च मूल्य वाले डाटासेट की पहचान तथा लाइसेंसिंग और मूल्यांकन ढाँचे शामिल हैं।
- यह अर्थव्यवस्था में डाटा के उच्च मूल्य प्रकटीकरण के लिये अनुकूल और मज़बूत शासन रणनीति, सरकारी डाटा को अंतर-संचालित बनाने और डाटा कौशल और संस्कृति को स्थापित करने हेतु भावी मार्ग प्रशस्त करती है।
- इसके अलावा, परामर्श पत्र या जिनसे परामर्श किया गया है, ऐसे हितधारकों की सूची का प्रकटीकरण न होने के कारण इसमें पारदर्शिता की कमी है, जिसमें ‘शैक्षणिक, उद्योग एवं सरकारी क्षेत्र के हितधारक’ शामिल हैं।
डाटा पहुँच और उपयोग नीति के लक्ष्य प्राप्त करने के उपाय
- यह नीति केंद्र सरकार द्वारा निर्मित, सृजित, एकत्रित व संगृहीत सभी डाटा और सूचनाओं पर लागू होगी। यह राज्य सरकारों को भी इसके प्रावधानों को अपनाने की अनुमति देगी। इसके समग्र प्रबंधन व संचालन इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत ‘भारत डाटा कार्यालय’ (IDO) के माध्यम से किया जाएगा, जिसमें प्रत्येक सरकारी संस्था एक मुख्य डाटा अधिकारी नामित करेगी।
- इसके अलावा, मानकों को अंतिम रूप देने संबंधी कार्यों के लिये सलाहकार निकाय के रूप में इंडिया डाटा काउंसिल का गठन किया जाएगा। इसमें उद्योग, नागरिक समाज या प्रौद्योगिकीविदों की गैर-सरकारी भागीदारी के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
- नीतिगत रणनीति यह है कि सभी के लिये सरकारी डाटा तक पहुँच सुनिश्चित की जाए और डाटासेट की एक नकारात्मक सूची बनाई जाए, जिसे साझा नहीं किया जा सकता है। अधिक संवेदनशील श्रेणियों, जिनकी पहुँच प्रतिबंधित होनी चाहिये, का निर्धारण स्वतंत्र सरकारी मंत्रालयों द्वारा किया जाएगा।
- इसके अतिरिक्त, मौजूदा डाटासेट को अधिक मूल्य प्राप्त करने के लिये समृद्ध या संसाधित किया जाएगा और उन्हें ‘उच्च-मूल्य वाले डाटासेट कहा’ जाएगा। उच्च मूल्य वाले डाटासेट सहित सरकारी डाटासेट सरकारी विभागों के भीतर स्वतंत्र रूप से साझा किये जाएंगे तथा निजी क्षेत्र को लाइसेंस भी दिया जाएगा। निजता या गोपनीयता के संरक्षण हेतु अनामीकृत और गोपनीयता संरक्षण की सिफारिश की गई है।
नीति में गोपनीयता संबंधी चिंताएँ
- भारत में डाटा संरक्षण के संबंध में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो गोपनीयता के उल्लंघन जैसे जबरदस्ती और अत्यधिक डाटा संग्रह या डाटा उल्लंघनों के लिये जवाबदेह हो और सुरक्षा उपाय प्रदान करता हो। यहाँ अंतर-विभागीय डाटा साझाकरण गोपनीयता से संबंधित चिंताओं को प्रस्तुत करता है, क्योंकि खुले सरकारी डाटा पोर्टल, जिसमें सभी विभागों के डाटा शामिल हैं, के परिणामस्वरूप 360 डिग्री प्रोफाइल का निर्माण हो सकता है तथा यह राज्य प्रायोजित जासूसी को सक्षम बना सकता है।
- भले ही नीति गोपनीयता को एक वांछित लक्ष्य मानती है, लेकिन इसमें कानूनी जवाबदेही और स्वतंत्र नियामक तंत्र की कमी है। साथ ही, यह अज्ञात डाटा की पुन: पहचान के लिये वैज्ञानिक विश्लेषण और स्वचालित उपकरणों की उपलब्धता पर भी विचार नहीं करती। यह उस स्थिति में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जहाँ सरकार निजी क्षेत्र को लाइसेंस देने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन देकर डाटा ब्रोकर के रूप में कार्य कर रही है। यहाँ डाटा का व्यावसायिक मूल्य व्यक्तिगत डाटा में वृद्धि के साथ बढ़ता जाता है।
- किसी मज़बूत कानून का अभाव नीति को गलत दिशा में ले जा सकता है। इसके अभाव में राज्य, गोपनीयता के संरक्षण हेतु उस वैध सीमा तक भी हस्तक्षेप करने में सक्षम नहीं होंगे, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने एक ऐताहासिक निर्णय में निर्धारित किया गया है।
नीति संबंधी अन्य समस्याएँ
- खुले डाटा को अपनाते समय यह नीति सरकार के मूल सिद्धांत; ‘नागरिकों को पारदर्शिता प्रदान करना’ से भटक जाती है। नीति में केवल पारदर्शिता का उल्लेख किया गया है, जबकि डाटा साझाकरण में जवाबदेही और निवारक उपायों के संदर्भ में इसमें बहुत कम या कोई उल्लेख नहीं है।
- यह नीति कार्यालयों के गठन एवं मानकों, जो न केवल केंद्र सरकार पर, बल्कि राज्य सरकारों और उनके द्वारा प्रशासित योजनाओं पर लागू हो सकते हैं, के निर्धारण में संसद और विधायी विचार-विमर्श की आवश्यकता को दरकिनार करती है।
- यह नीति संघवाद के सिद्धांत का भी पालन नहीं करती। यद्यपि नीति यह दर्शाती है कि राज्य सरकारें ‘नीति के कुछ हिस्सों को अपनाने के लिये स्वतंत्र’ होंगी, किंतु यह निर्दिष्ट नहीं करती है कि ऐसी स्वतंत्रता कैसे प्राप्त की जाएगी। ऐसे में, यह प्रासंगिक हो जाता है कि डाटा साझा करने या वित्तीय सहायता के लिये एक पूर्व शर्त के रूप में केंद्र सरकार द्वारा विशिष्ट मानक निर्धारित किये जाएँ।
- राज्यों से एकत्रित डाटा को केंद्र सरकार द्वारा बेचा जा सकता है। हालाँकि, केंद्र एवं राज्य इसकी बिक्री से होने वाली आय को कैसे साझा करेंगे, इसका उल्लेख नहीं किया गया है।