(प्रारम्भिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र– 3 : बुनयादी ढाँचा : बंदरगाह तथा विमानपत्तन)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, पोत परिवहन मंत्रालय ने शासन व्यवस्था में आम जनता और हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित करने तथा पारदर्शिता बढ़ाने हेतु तटीय नौवहन विधयेक– 2020 का मसौदा जारी किया है।
पृष्ठभूमि
जहाजरानी मंत्रालय द्वारा तटीय नौवहन विधयेक 2020 का मसौदा, मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 के भाग-XIV के स्थान पर लाया गया है। इस विधयेक का मसौदा तैयार करते समय तटीय नौवहन से सम्बंधित सर्वश्रेष्ठ वैश्विक प्रथाओं का अवलोकन किया गया है।
आवश्यकता
- भारत में पोत परिवहन क्षेत्र में अत्यधिक तीव्रता से विकास हो रहा है इसलिये नौपरिवहन श्रृंखला तथा तटीय नौवहन के विकास और उसे विनियमित करने हेतु एक विशेष कानून की आवश्यकता है।
- भारत के जहाजरानी उद्योग की मांगों को पूरा करने तथा सम्बंधित नीतिगत प्राथमिकताओं को सुनिश्चित करने के लिये।
मसौदा विधयेक के मुख्य प्रावधान
- इस मसौदा विधयेक में तटीय नौवहन तथा तटीय जल सीमा की परिभाषाओं में विस्तार किया गया है।
- इसमें भारत के ध्वजवाहक जहाजों के लिये तटीय व्यापार हेतु लाइसेंस की ज़रूरत को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया है साथ ही अन्य क्षेत्रों के लिये लाइसेंस प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रावधान भी किया गया है |
- मसौदा विधयेक में अंतर्देशीय जलमार्गों को भारत के तटीय समुद्री परिवहन के साथ एकीकृत किये जाने का प्रस्ताव है।
- मसौदा विधयेक में भारत के तटीय तथा अंतर्देशीय नौवहन के लिये एक राष्ट्रीय रणनीतिक तथा सामरिक योजना के निर्माण का भी प्रावधान किया गया है।
- मसौदा विधयेक में तटीय जहाजों के नौवहन में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये एक प्रतिस्पर्धी वातावरण का निर्माण तथा परिवहन की लागत को कम करने हेतु एक मज़बूत फ्रेमवर्क बनाने का प्रस्ताव किया गया है।
मसौदा विधयेक से सम्बंधित मुद्दे तथा सुझाव
- विधयेक के मसौदे में ट्रांसशिपमेंट (निर्यात के उद्देश्य से आयात करना) व्यवसाय पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। भारत को अपनी विस्तृत तटीय सीमा तथा रणनीतिक भू-स्थिति का लाभ उठाते हुए ट्रांसशिपमेंट व्यवसाय को उद्योग के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिये।
- भारत में वस्तुओं के परिवहन हेतु अधिकतर व्यवसाय या उद्योग सड़क या रेलमार्गों पर निर्भर हैं इसमें जल परिवहन की हिस्सेदारी बहुत कम (लगभग 6%) है, जबकि विकसित देशों में जल परिवहन की हिस्सेदारी लगभग 30% है। साथ ही यह उपरोक्त दोनों माध्यमों (सड़क और रेल) से सस्ता, सुगम तथा पर्यावरण हितैषी भी है। जल परिवहन को प्रोत्साहित करने हेतु बंदरगाहों, सड़क तथा रेल परिवहन को एकीकृत कर कनेक्टिविटी को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- इस मसौदा विधयेक में पोत उद्योग के विनियमन हेतु एक समर्पित संस्था या विनियामक का अभाव है। अतः सुगम तथा पारदर्शी कार्यान्वयन हेतु एक स्वयात्त विशेष एजेंसी का निर्माण किया जाना चाहिये।
- वर्तमान में तटीय नौपरिवहन की अनुपालन लागत (Cost Of Compliance) बहुत अधिक है। सुरक्षा तथा पर्यावरण के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए लागत को कम किया जाना चाहिये।
- मसौदा विधयेक में समग्र तटीय नौपरिवहन के विनियमन का अभाव है। सभी पोत या शिपिंग व्यवसायों को इस विधयेक के दायरे में लाया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
भारत की आर्थिक वृद्धि तथा व्यापक स्तर पर रोज़गार सृजन में तटीय नौपरिवहन क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिये समय की माँग है कि इस क्षेत्र के विकास हेतु गम्भीरतापूर्वक विचार विमर्श कर ठोस प्रयास किये जाने चाहिये।
प्री फैक्ट्स :
- वर्ष 2017 में भारत सरकार ने बंदरगाहों के अवसंरचनात्मक विकास हेतु सागरमाला परियोजना की शुरुआत की थी। इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य बंदरगाहों का आधुनिकीकरण तथा तटरेखा के आस-पास के क्षेत्रों में विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देना है।
- हाल ही में, भारत सरकार ने पोत परिवहन मंत्रालय का नाम बदलकर पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय करने की घोषणा की है।
|