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धूल भरी आंधी और मंगल ग्रह पर वातावरण का क्षरण

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: विषय- अंतरिक्ष)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, इसरो के मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) और नासा के मार्स आर्बिटर मार्स एटमॉस्फियर एंड वोलेटाइल इवोल्यूशन (मावेन) द्वारा भेजी गई तस्वीरों से यह स्पष्ट हुआ है कि मंगल ग्रह तेज़ी से अपने बाह्य वातावरण को खो रहा है।

मुख्य बिंदु

  • यद्यपि मंगल ही नहीं वरन् पृथ्वी सहित सौर मंडल के अन्य ग्रह भी लगातार अपने वायुमंडल के बाहरी वातावरण को खो रहे हैं या उनमें क्षरण हो रहा है, लेकिन मंगल में यह बहुत तेज़ी से हो रहा है।
  • दो साल पहले जून-जुलाई 2018 में आए धूल के तूफान को इसकी मुख्य वजह माना जा रहा है, जिसके कारण मंगल का ऊपरी वायुमंडल गर्म हो गया था।
  • किसी ग्रह के बाहरी वातावरण को कितना नुकसान होगा, यह उसके आकार और ऊपरी वायुमंडल के तापमान पर निर्भर करता है। चूंकि मंगल, पृथ्वी की तुलना में बहुत छोटा है इसलिए यह बदलाव बड़ी तेज़ी से सामने आ रहा है।
  • हालाँकि नासा के अनुसार वातावरण को होने वाला यह नुकसान ऊपरी वायुमंडल के तापमान में आ रहे बदलावों पर भी निर्भर करता है। इसके शोध से जुड़े नतीजे हाल ही में अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन के जर्नल ऑफ़ जिओफिजिकल रिसर्च – प्लैनेट्स में प्रकाशित हुए हैं।

मंगल पर जून 2018 में आई धूल की आंधी

  • भारत ने मार्स ऑर्बिटर मिशन, जिसे मंगलयान के नाम से भी जाना जाता है, को 5 नवम्बर, 2013 को मंगल ग्रह पर भेजा था। जिसका एक प्रमुख उद्देश्य मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल पर सौर हवा, विकिरण और बाह्य अंतरिक्ष की गतिशीलता का अध्ययन करना था। यह उपग्रह आज भी मंगल ग्रह की तस्वीरों को धरती पर भेज रहा है।
  • इससे प्राप्त जानकारी से पता चला है कि जून 2018 के पहले सप्ताह में मंगल पर एक बड़ा धूल का तूफान आया था, जो जुलाई 2018 के पहले सप्ताह तक बढ़ता ही चला गया था। इस तूफान ने वहाँ के ऊपरी वायुमंडल को काफी गर्म कर दिया था। जिस वजह से मंगल ग्रह का बाह्य वातावरण और अधिक ऊँचाई पर पहुँच गया था।
  • ग्लोबल डस्ट स्टॉर्म और वातावरण के गर्म होने से वातावरण में जो विस्तार हुआ उससे मंगल के वायुमंडल का एक हिस्सा बड़ी तेज़ी से एक्सोबेस ऊँचाई (जो कि 220 किमी पर स्थित है) तक पहुँच गया था।
  • एक बार जब वायुमंडल एक्सोबेस ऊँचाई पर पहुँच जाता है तो गर्म गैसों के उसके ऊपर और अधिक ऊँचाई तक जाने की सम्भावना बढ़ जाती है, जिससे यह वायुमंडल बाद में बाह्य अंतरिक्ष में भी जा सकता है।

मंगल इतना महत्त्वपूर्ण क्यों?

  • मंगल ग्रह, सूर्य से दूरी के आधार पर सौरमंडल का चौथा ग्रह है, जो कि आकार में पृथ्वी का लगभग आधा है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम प्रतीत होती है, यही वजह है कि इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है।
  • गौरतलब है कि सौरमंडल में दो तरह के ग्रह होते हैं- पहला " चट्टानी या स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और दूसरे "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की ही तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है।
  • मंगल पर किये गए पिछले शोधों से पता चला है कि इस ग्रह पर पानी के साक्ष्य मौजूद हैं। ऐसे में वहाँ जीवन के होने की सम्भावनाएँ काफी बढ़ जाती हैं। यही वजह है कि शोधकर्ता इस ग्रह के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानना चाहते हैं।
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