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पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र

कस्तूरीरंगन समिति :

  • स्थापना: पश्चिमी घाट की पर्यावरणीय स्थिति के अध्ययन हेतु भारत सरकार द्वारा गठित।
  • प्रमुख सुझाव:
    • पश्चिमी घाट के 37% क्षेत्र (लगभग 60,000 वर्ग किमी) को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) घोषित किया जाए।
    • यह क्षेत्र 6 राज्यों में फैला हुआ है: केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा, महाराष्ट्र, और गुजरात।
    • सबसे बड़ा ESA क्षेत्र: कर्नाटक में
    • दूसरे स्थान पर: महाराष्ट्र

पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area - ESA)

  • परिभाषा (राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006):
    • “ऐसे क्षेत्र जिनमें अतुलनीय पर्यावरणीय संसाधन मौजूद होते हैं और जिनका संरक्षण विशेष रूप से आवश्यक होता है -
      • जैसे कि भू-परिदृश्य, वन्यजीव, जैवविविधता, सांस्कृतिक/ऐतिहासिक स्थल आदि।”
  • अधिसूचना: केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत।

ESZ के उद्देश्यः

  • पर्यावरण का संरक्षण करना और मानवीय गतिविधियों के कारण उसमें होने वाली गिरावट को रोकना ।
  • ये विशेष पारिस्थितिकी तंत्र (PAs) के लिए बैरियर / शॉक एब्जॉर्बर के रूप में कार्य करते हैं।
  • ESZs संक्रमण क्षेत्र (Transition zone) की तरह होते हैं। ये संरक्षण क्षेत्र अधिक संरक्षण की आवश्यकता वाले क्षेत्रों से कम संरक्षण की आवश्यकता वाले क्षेत्रों तक होते हैं।
  • ESZ में गतिविधियों को आमतौर पर विनियमित किया जाता है, न कि पूरी तरह से प्रतिबंधित ।

ESZ दिशा-निर्देशों में गतिविधियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

  • प्रतिबंधितः वाणिज्यिक खनन, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की स्थापना, आदि।
  • विनियमितः पेड़ों की कटाई, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना, आदि।
  • अनुमतिः स्थानीय समुदायों द्वारा जारी कृषि और बागवानी प्रथा, डेयरी फार्मिंग आदि।

पश्चिमी घाट के बारे में:

  • भौगोलिक विशेषताएं:
    • दरें (Passes): पालघाट गैप, थाल घाट और भोर घाट।
    • ऊंचाई: उत्तर से दक्षिण की ओर धीरे-धीरे ऊंचाई बढ़ती जाती है।
    • (सबसे ऊंची चोटीः अनाईमुडी)।
    • वनः 4 प्रमुख प्रकार (सदाबहार, अर्ध सदाबहार, आर्द्र पर्णपाती, और शुष्क पर्णपाती)।
    • खनिजः लौह, मैंगनीज और बॉक्साइट अयस्कों से समृद्ध।
  • अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
    • क्षेत्रीय नामः सह्याद्री (महाराष्ट्र), नीलगिरी पहाड़ियां (कर्नाटक और तमिलनाडु), अन्नामलाई पहाड़ियां और कार्डमम हिल्स (केरल और तमिलनाडु)
    • यह विश्व में जैव विविधता के 8 'सर्वाधिक महत्वपूर्ण हॉटस्पॉट' में से एक है।
    • यह भारत के कुल भू-भाग के 6% हिस्से पर विस्तृत है। भारत की सभी पादप, मछलियों, उभयचर प्रजातियों, पक्षियों और स्तनधारियों की 30% से अधिक प्रजातियां यहाँ पाई जाती हैं।
    • 2012 में यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
    • स्थानीय प्रजातियांः नीलगिरी तहर और लायन टेल्ड मकाक आदि।

पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिए उठाए गए कदम

  • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) (2011) या माधव गाडगिल समितिः
    • इसने सम्पूर्ण क्षेत्र को 'पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र' घोषित करने का सुझाव दिया था।
  • इसे 3 क्षेत्रों में विभाजित कियाः
    • ESZ1 (बहुत उच्च संवेदनशीलता वाला क्षेत्र / Very high sensitivity)
    • ESZ2 (उच्च संवेदनशीलता वाला क्षेत्र / High sensitivity)
    • ESZ3 (मध्यम संवेदनशीलता वाला क्षेत्र / Moderate sensitivity)
  • डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय कार्य समूहः
    • उन्होंने उद्योगों के लिए कलर कोडिंग की सिफारिश की।
    • पारिस्थितिकी फ्रेमवर्क के भीतर विकास को विनियमित करने के लिए समवर्ती सूची के तहत प्रविष्टि क्रमांक 20 (आर्थिक और सामाजिक योजना) का विस्तार करने का सुझाव दिया।
    • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन का 6ठा संस्करणः
    • केंद्रीय सरकार ने पश्चिमी घाट के 56,825.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया।
  • ब्रह्मगिरी पहाड़ियों का मामलाः 
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पर्यावरण मंत्रालय से पश्चिमी घाट को ESZ घोषित करने के लिए एक समय-सीमा निर्धारित करने को कहा।
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