हाल ही में, उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में रामनगर वन प्रभाग ने सरीसृप और छोटे स्तनधारियों के लिये अपने प्रकार के पहले इको-ब्रिज का निर्माण किया है।
इको-ब्रिज क्या हैं?
- इको-डक्ट या इको-ब्रिज का उद्देश्य राजमार्गों में लगातार ट्रैफिक या जाम की स्थिति में वन्यजीव कनेक्टिविटी को बढ़ाना है, क्योंकि इन वजहों से अक्सर वन्यजीव सड़क पार नहीं कर पाते, या कई बार दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
- इनमें कैनोपी ब्रिज (आमतौर पर बंदरों, गिलहरियों और अन्य जंगली प्रजातियों के लिये); कंक्रीट अंडरपास या सुरंग (आमतौर पर बड़े जानवरों के लिये) और उभयचर सुरंग या पुलिया शामिल हैं।
आवश्यकता क्यों?
- इस प्रकार के ब्रिज या पुल भीड़भाड़ वाले मार्गों पर एक जागरूकता-निर्माण तंत्र का कार्य करते हैं।
- ये पुल, यह देखने का एक तरीका हैं कि कैसे हम सरीसृपों के लिये आवश्यक पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित कर सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 2020 में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) द्वारा किये गए एक अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि अगले पाँच से छह वर्षों में लगभग 50,000 किलोमीटर की सड़क परियोजनाएँ अस्तित्व में आएंगीं।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने ऐसे तीन प्रमुख सड़क निर्माण स्थलों की पहचान की है, जो पशु गलियारों के क्षेत्र को काट रहे हैं या परोक्ष रूप से अतिक्रमण कर रहे हैं।
- इनमें असम में काजीरंगा-कार्बी आंगलोंग के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 37 और कर्नाटक में नागरहोल टाइगर रिज़र्व के पास राज्य राजमार्ग 33 शामिल हैं।
- ध्यातव्य है कि भारत में पशु संरक्षण के लिये 1.4 किमी. लम्बा अंडरपास मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र सीमा पर बनाया जा रहा है।
- अन्य प्रस्तावों में चेन्नई-बैंगलोर राष्ट्रीय राजमार्ग, होसुर-कृष्णगिरी खंड और महाराष्ट्र के चंद्रपुर में ताडोबा-अंधारी टाइगर रिज़र्व में ऐसे पुलों का निर्माण शामिल है।