(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, ‘रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज’ ने वर्ष 2020 के लिये आर्थिक विज्ञान में ‘सेवरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार’ से पॉल आर. मिलग्रोम और रॉबर्ट बी. विल्सन को सम्मानित किया है।
भूमिका
‘सेवरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार’ को लोकप्रिय रूप में अर्थशास्त्र का नोबेल भी कहा जाता है। अकादमी के अनुसार इस जोड़ी को ‘नीलामी के सिद्धांत में सुधार’ और ‘नए नीलामी प्रारूपों की खोज या कल्पना’ के लिये यह पुरस्कार प्रदान किया गया है। 10 मिलियन स्वीडिश क्रोनर पुरस्कार राशि को दोनों के मध्य सामान रूप से वितरित किया जाएगा।
नीलामी सिद्धांत (Auction Theory)
- ‘नीलामी सिद्धांत’ यह बताता है कि नीलामी किस प्रकार किसी वस्तु की कीमत को तय करती है और नीलामी प्रक्रिया कैसे तैयार की जाती है व इन्हें कौन से नियम नियंत्रित करते हैं। साथ ही, बोली लगाने वालों का व्यवहार और उससे प्राप्त होने वाले परिणामों का भी अध्ययन इसके अंतर्गत किया जाता है।
- नीलामी के सिद्धांत के बारे में लोग आमतौर पर लेनदारों को भुगतान करने के लिये किसी दिवालिया व्यक्ति की सम्पत्ति की नीलामी के बारे में ही सोचते हैं। हालाँकि, यह नीलामी का काफ़ी पुराना स्वरूप है।
- इस तरह की नीलामी के सरलतम प्रारूप के अनुसार खुली बोली में उच्चतम बोलीदाता, सम्पत्ति (या कमोडिटी) को प्राप्त करता है।
सिद्धांत में बदलाव
- पिछले तीन दशकों में विशेष रूप से नीलामी के तहत अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया गया है। इन वस्तुओं की प्रकृति में तेज़ी से बदलाव होता रहता है। उदाहरणस्वरूप, किसी दिवालिया व्यक्ति की सम्पत्ति की नीलामी रेडियो या दूरसंचार स्पेक्ट्रम की नीलामी से अलग तरह की होती है।
- इस प्रकार, कोई भी एक नीलामी प्रारूप सभी प्रकार की वस्तुओं या विक्रेताओं पर उपयुक्त नहीं बैठता है। साथ ही, नीलामी का उद्देश्य वस्तु तथा नीलामी का संचालन करने वाली संस्थाओं के साथ भी भिन्न-भिन्न हो सकता है।
- नीलामी प्रक्रिया के अंतर्गत निजी विक्रेताओं के लिये लाभ सर्वोपरि होता है, जबकि सार्वजनिक स्तर पर नीलामी के लक्ष्य अलग हो सकते हैं। उदाहरण के लिये, दूरसंचार स्पेक्ट्रम बेचते समय, सरकार या तो अपने राजस्व को अधिकतम करने के बारे में सोच सकती है या दूरसंचार को सभी के लिये अधिक किफायती बनाने का लक्ष्य रख सकती है।
- इसमें किसी कम्पनी द्वारा स्पेक्ट्रम का उपयोग करने और लाइसेंस प्राप्त करने के लिये सबसे उपयुक्त कम्पनी का आकलन करने जैसे प्रश्न शामिल होते हैं। हालाँकि, इस प्रकार के दृष्टिकोण से लॉबिंग में वृद्धि हुई है।
नीलामी और द्वितीय स्तर के बाज़ार का विकास
- स्पेक्ट्रम नीलामी जैसे कुछ मामलों में यदि क्षेत्रीय स्तर पर स्पेक्ट्रम की नीलामी होती है तो राष्ट्रीय स्तर के बोलीदाताओं (Bidder) को देश भर में स्पेक्ट्रम की इष्टतम गुणवत्ता तक सहज पहुँच नहीं मिल पाती है; परिणाम स्वरूप, वे आक्रामक रूप से बोली नहीं लगा सकते हैं।
- अमेरिका में भी इसी कारण एक प्रकार से द्वितीय स्तर का बाज़ार (Second-Hand Market) विकसित हो गया, जहाँ कम्पनियों ने आपस में व्यापार किया और सरकार को राजस्व की कम प्राप्ति हुई।
- इस प्रकार, किसी नीलामी के प्रारूप के डिज़ाइन का प्रभाव न केवल खरीदारों और विक्रेताओं पर, बल्कि व्यापक रूप से समाज पर भी पड़ता है।
नीलामी प्रक्रिया को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक
- नीलामी के प्रारूप को डिज़ाइन करते समय तीन मुख्य कारकों को समझने की आवश्यकता है। पहला कारक नीलामी के नियमों से सम्बंधित है, यदि नीलामी के नियम सील बंद बोलियों के विपरीत खुली बोली के अनुसार निर्धारित होते हैं, तो बोलीकर्ताओं के बोली लगाने के व्यवहार (Bidding Behaviour) में अंतर आ सकता है।
- इसी प्रकार एकल बोली बनाम बहु बोली या एक के बाद एक बोलियों या एक ही समय में प्रत्येक के द्वारा बोली लगाए जाने के मामलें में भी व्यवहारगत अंतर देखा जा सकता है।
- दूसरा कारक वह वस्तु या सेवा है, जिसे नीलामी के लिये रखा जा रहा है। संक्षेप में, सवाल यह है कि प्रत्येक बोलीदाता किसी वस्तु की क़ीमत कैसे आँकता है, जिसका पता लगाना अपेक्षाकृत आसान कार्य नहीं है।
- दूरसंचार स्पेक्ट्रम जैसे मामलों में किसी वस्तु के ‘सामान्य मूल्य सिद्धांत’ के कारण उनका मूल्यांकन करना आसान होता है, जबकि पेंटिंग जैसी अन्य वस्तुओं के मामलों में मूल्यांकन की समस्या आती है।
- अधिकांश नीलामी प्रक्रिया में, नीलम होने वाली वस्तु के बोलीकर्ताओं द्वारा ‘समान्य मूल्य’ के साथ-साथ ‘व्यक्तिगत मूल्य’ का भी निर्धारण किया जाता है और यह अंतिम रूप से उनकी बोलियों को प्रभावित करता है।
- तीसरा कारक अनिश्चितता से सम्बंधित है, जो किसी बोलीदाता द्वारा वस्तु के बारे में जानकारी पर निर्भर करता है।
मिलग्रोम और विल्सन द्वारा किया गया कार्य
- मिलग्रोम और विल्सन ने नीलामी सिद्धांत पर अग्रणी कार्य किया है और नीलामी प्रक्रिया की वर्तमान समझ के विकास का अधिकांश भाग उनके शोध का ही परिणाम है।
- रॉयल स्वीडिश अकादमी के अनुसार, विल्सन ने ‘सामान्य मूल्य’ के साथ वस्तुओं की नीलामी का सिद्धांत विकसित किया है। यह एक ऐसा मूल्य होता है, जो पहले अनिश्चित होता है लेकिन अंत में सभी के लिये समान है।
- विल्सन ने यह भी स्पष्ट किया है कि नीलामी में ‘बोली विजेताओं का हानिकारक प्रभाव’ (Winner’s Curse) क्या है और यह बोली लगाने को कैसे प्रभावित करता है।
- ‘विनर्स कर्स’ बताता है कि तर्कसंगत बोली लगाने वाले बोलीकर्ता ‘सामान्य मूल्य’ के लिये भी अपने सर्वश्रेष्ठ अनुमान या आकलन के नीचे ही बोली लगाने के लिये प्रवृत्त होते हैं और साथ ही वे अधिक भुगतान करने व घाटे के बारे में भी चिंतित होते हैं।
- मिलग्रोम ने नीलामी का एक और सामान्य सिद्धांत तैयार किया जो न केवल ‘सामान्य मूल्यों’ को बल्कि ‘व्यक्तिगत मूल्यों’ की भी अनुमति देता है, जो अलग-अलग बोलीदाताओं के लिये भिन्न-भिन्न होता है।
प्री फैक्ट्स:
- वर्ष 2020 के लिये ‘आर्थिक विज्ञान’ में ‘सेवरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार’ से पॉल आर. मिलग्रोम और रॉबर्ट बी. विल्सन को सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार ‘नीलामी के सिद्धांतों’ के विकास के लिये प्रदान किया गया है।
- नीलामी के प्रारूप को डिज़ाइन करते समय तीन मुख्य कारकों को समझने की आवश्यकता होती है : पहला नीलामी के नियम, दूसरा नीलाम होने वाली वस्तु या सेवा की क़ीमत को आँकना और तीसरा कारक अनिश्चितता से सम्बंधित है।
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