(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : शिक्षा संबंधित मुद्दे) |
संदर्भ
मुख्यधारा की शिक्षा में एड-टेक (Ed-Tech) का एकीकरण बढ़ता जा रहा है। इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) (खंड 23 एवं 24) के अंतर्गत भी स्वीकार किया गया है। महामारी के दौरान एड-टेक सेवाओं की तेज़ी से हुई बढ़ोतरी और उसे अपनाने वालों की संख्या के साथ-साथ उसकी आवश्यकता ने कुछ मामलों में क्वॉलिटी की सीमाओं, कानूनी रूप-रेखा और मानकों से जुड़ी ज़रूरतों की तरफ ध्यान कम किया है जिसका प्रभाव बच्चों के अधिकारों और उनकी निजता पर पड़ रहा है।
एड-टेक और बच्चों की निजता पर इसका प्रभाव
- बच्चों की डाटा प्राइवेसी बारीकी से उनके अधिकारों और कल्याण की रक्षा करती है किंतु एड-टेक पर डाटा चोरी करने और बच्चों को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगे हैं।
- हाल के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट्स में बार-बार बिना सहमति के बच्चों की निगरानी के साथ-साथ ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें ज़बरन एवं गलत ढंग से बच्चों के डाटा का इस्तेमाल किया गया है।
- बच्चों का अलग-अलग डाटा प्राय: उनकी मंज़ूरी के बिना हासिल कर लिया जाता है और उनका इस्तेमाल उनकी पूरी प्रोफाइल के लिए किया जा सकता है। इसमें पहचान, लोकेशन, बायोमीट्रिक, पसंद एवं क्षमता जैसी महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है।
- डाटा का इस्तेमाल या तो एड-टेक ‘उत्पादों’ को तैयार करने और उनकी कीमत तय करने के लिए किया जा सकता है या डाटा ब्रोकर, विज्ञापन देने वालों या तीसरे पक्षों को यह डाटा साझा किया जा सकता है।
- इस तरह व्यवहार से जुड़े आकलन, निगरानी, अनचाहे विज्ञापन, ज़बरन वसूली, संवेदनशील एवं आयु के अनुसार अनुचित कंटेंट के संपर्क में आने इत्यादि का ख़तरा बढ़ जाता है।
- इससे अंतर्राष्ट्रीय विनियमन का उल्लंघन और बच्चों के डाटा का पूरी दुनिया में व्यावसायीकरण हो सकता है जिनकी निगरानी एवं रोकथाम मुश्किल हो सकती है।
- सबूतों से पता चलता है कि निगरानी का दायरा परिवारों एवं शिक्षण संस्थानों तक भी हो सकता है
- एड-टेक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जुड़ने से सीखने वालों में मनोवैज्ञानिक जोड़-तोड़ की स्थिति पैदा हो सकती है जिससे छात्र का व्यवहार नियंत्रित या परिवर्तित हो सकता है।
भारत में एड-टेक का विनियमन
एक क्षेत्र एवं एक सेवा के रूप में ‘एड-टेक’ में शामिल बिंदुओं एवं तत्त्वों को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है। कानूनी रूप से एड-टेक को विशेष मान्यता नहीं मिली हुई है किंतु ये निम्नलिखित अलग-अलग कानूनों के दायरे में आता है-
- डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023
- सूचना एवं तकनीक अधिनियम, 2000
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
- इसके अलावा भारत में एड-टेक सेवा को अलग-अलग बड़े एवं छोटे प्रदाता के द्वारा प्रदान किया जाता है जो सरकारी एवं गैर-सरकारी हैं, लाभ कमाने वाले और बिना लाभ वाले हैं।
एड-टेक संबंधी चुनौतियां
- एड-टेक में बच्चों की निजता एवं कल्याण प्रभावित होते हैं। नियामक अस्पष्टता के अलावा ये क्षेत्र रजिस्ट्रेशन, वर्गीकरण एवं मान्यता को लेकर भी अनिश्चित है।
- गोपनीयता एवं अधिकारों के उल्लंघन की सीमा व तौर-तरीकों को तय करने वाले तकनीक तथा तकनीकी साक्ष्य काम करने की समझ में कमी के संबंध में सामाजिक-कानूनी साक्ष्यों में बड़ी खामियां बनी हुई हैं।
- सामाजिक-कानूनी साक्ष्य एड-टेक प्रशासन की सीमित विनियामक और अनुभव से जुड़ी समझ और एड-टेक को अपनाने एवं बच्चों की निजता पर इसके प्रभाव के बारे में है।
- वैश्विक तकनीकी कंपनियों के द्वारा अन्य सहायक संगठनों के साथ शक्ति का संकेंद्रण तेज़ी से भारत के शिक्षा क्षेत्र को निर्धारित कर रहा है।
- एड-टेक सेवा प्रदान करने वालों एवं उनकी डाटा प्रथाओं और सभी दूसरे हितधारकों के बीच शक्ति व सूचना में एक महत्वपूर्ण असंतुलन है जिसे समझना अक्सर मुश्किल होता है।
- भविष्य की शिक्षा संबंधी सेवाओं का डिज़ाइन व प्रारूप निर्धारित करने के लिए व्यक्तिगत डाटा का लाभ उठाकर एड-टेक सेवा प्रदान करने वाले प्राय: पाठ्यक्रमों व शिक्षा शास्त्र के पहलुओं में फेरबदल करते हैं, भले ही ये बदलाव सरकार के द्वारा पाठ्यक्रम और शिक्षा शास्त्र को नियंत्रित करने वाली ज़रूरी रूपरेखा के साथ संबद्ध हो या न हो।
- इस तरह की रूपरेखा का साफ तौर पर पालन करने को लेकर सूचना की कमी ऐसी तकनीकों को प्रभावी ढंग से व्यवस्थित करने की सरकार और शिक्षण संस्थानों की निगरानी एवं क्षमता को कमज़ोर कर सकती है। इसका परिणाम न केवल निजता एवं सुरक्षा पर पड़ता है बल्कि पढ़ाई-लिखाई के परिणामों पर भी।
- एक अन्य महत्वपूर्ण चुनौती माता-पिता, शिक्षकों व शिक्षा प्रणाली के बीच एड-टेक को लेकर जागरूकता एवं सोच के संबंध में है।
- ये हितधारक प्राय: एड-टेक में डाटा के दुरुपयोग की प्रकृति, ख़तरे व प्रभाव को समझने में नाकाम हो जाते हैं। हितधारक आमतौर पर शिक्षा शास्त्र संबंधी, पाठ्यक्रम से जुड़े या वित्तीय पहलुओं का पक्ष लेते हैं और इस तरह बच्चों की गोपनीयता व कल्याण की चिंताओं को सक्रिय रूप से प्राथमिकता नहीं देते हैं।
- एड-टेक अपनाने को अक्सर शिक्षा में नवाचार लाने की उसकी कथित क्षमता के कारण सही ठहराया जाता है। हालांकि, इस तरह के दावों के पक्ष में निर्णायक सबूत मौजूद नहीं हैं। इसके विपरीत एड-टेक सेवाएं अक्सर शिक्षा शास्त्र से जुड़े संदिग्ध मूल्यों को प्रदर्शित करती हैं और पूर्वाग्रहों एवं मान्यताओं को मज़बूत करने की जानकारी भी मिली है। ये विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में नुकसानदेह है जो सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और भेदभाव से ग्रस्त है।
- एड-टेक एवं उसके ढांचे को विनियमित करने के लिए ज़िम्मेदार मुख्य मंत्रालय (मंत्रालयों) या निकायों की पहचान में स्पष्टता की कमी है, यद्यपि केंद्र सरकार ने एड-टेक के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ चेतावनी देने के लिए अतीत में संसदीय प्रतिक्रिया और सलाह जारी की है किंतु उनको लागू करने का काम सीमित रहा है।
आगे की राह
- बच्चों की डाटा निजता और सुरक्षा के मुद्दों का समाधान करने के लिए मानक, विनियामक, संस्थागत एवं डिज़ाइन के स्तर पर प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है
- शिक्षा के वास्तविक लक्ष्यों व उद्देश्यों को समझना पहला कदम होना चाहिए, जो एड-टेक के शिक्षा से जुड़े पहलुओं को तय करे और इसे किसी दूसरी सेवा या लाभ केंद्रित व्यावसायिक प्रयास से अलग करे।
- बच्चों के व्यक्तिगत डाटा का किसी भी तरह से बदलाव, दुरुपयोग या हेरफेर का उनके आगे के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। इनमें उच्च शिक्षा, नौकरी के अवसर, दुनिया को लेकर दृष्टिकोण और मान्यताएं शामिल हैं, इसलिए इनके शिक्षा से जुड़े अनुभवों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है।