(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-1 : महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ)
संदर्भ
हाल ही में, ‘साइंस’ नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार ‘उत्तरी अटलांटिक विक्षोभ भारतीय मानसून को प्रभावित कर सकता है।
अटलांटिक विक्षोभ
- अगस्त के अंत और सितम्बर की शुरुआत में उत्तर अटलांटिक के वायुमंडल में हवाओं और चक्रवात की विसंगतियों से वायुमंडलीय विक्षोभ उत्पन्न होता है।
- यह विक्षोभ एक लहर के रूप में भारत की ओर मुड़ता है और तिब्बत के पठार पर बने निम्न-दाब क्षेत्र के कारण उसकी और आकर्षित हो जाता है। इससे भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून का चक्र प्रभावित होता है।
- ध्यातव्य है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून के निर्माण के दौरान बंगाल की खाड़ी/अरब सागर की ओर से आने वाली हवाएँ तिब्बत के पठार पर बने निम्न-दाब क्षेत्र की ओर आकर्षित होती हैं।यह भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मानसून के मौसम में सूखा
- अनुसंधान के अनुसार, पिछली सदी में जिन वर्षों में अल-नीनो की घटनाएँ नहीं हुईं, उस दौरान भारत में मानसूनी मौसम में जो सूखे की घटनाएँ देखी गईं, वे उप-मौसमी कारणों का परिणाम थीं।
- उत्तरी अटलांटिक विक्षोभ के कारण सूखे की परिघटना अल-नीनो के दौरान पड़ने वाले सूखे से इस रूप में भिन्न है कि इस दौरान भारत में मानसून कमज़ोर रहता है।
सूखे की स्थिति : तुलनात्मक अध्ययन
- साइंस जर्नल के इस अनुसंधान में वर्ष 1900 से 2015 तक सूखे की उपरोक्त दोनों श्रेणियों में दैनिक वर्षा का विश्लेषण किया गया, इस विश्लेषण में वर्षा की कमी के कारणों में नाटकीय अंतर देखा गया।
- अल-नीनो के दौरान जून के मध्य से वर्षा की कमी शुरू हो जाती है जो उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है, अगस्त के मध्य तक अल्प वर्षा की स्थिति बनी रहती है;धीरे-धीरे इस स्थिति का प्रसार पूरे देश में होने लगता है।
- जिन वर्षों में अल-नीनो की घटना नहीं देखी गई, उस दौरान पड़ने वाले सूखे में जून माह में वर्षा की स्थिति मध्यम रही। इसके बाद मध्य-जुलाई से मध्य-अगस्त (भारत में सर्वाधिक वर्षा का समय) तक वर्षा की स्थिति में सुधार देखने को मिला। फिर अगस्त के अंत में वर्षा में अचानक बहुत अधिक कमी आ जाती है और पुन: सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
अनुसंधान कार्य
- अनुसंधान में, अगस्त के अंत में भारतीय मौसम के व्यवहार को प्रभावित करने वाले घटकों का पता लगाने के क्रम में, अल-नीनो की अनुपस्थिति वाले वर्षों में पड़ने वाले सूखे के समय चलने वाली हवाओं पर ध्यान दिया गया।
- यह अध्ययन, विशेष रूप से प्रशांत क्षेत्र में प्रचलित संकेतकों की अनुपस्थिति में सूखे की बेहतर भविष्यवाणी के लिये एक नया अवसर प्रदान करता है।
- साथ ही, इस अनुसंधान में मानसून और इसकी परिवर्तनशीलता के साथ-साथ सूखे की स्थिति के बेहतर पूर्वानुमान के लिये प्रशांत और हिंद महासागर के अलावा मध्य अक्षांशों के प्रभाव को भीमॉडल प्रयासों में शामिल किया जाना चाहिये।