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जलचक्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा : भूगोल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन)

संदर्भ 

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (ANU) ने ग्लोबल वाटर मॉनिटर रिपोर्ट, 2024 जारी की है। इसमें जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक जलचक्र (Global Water Cycle) में चिंताजनक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला गया है।

जल-संबंधी आपदा से संबंधित रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • वर्ष 2024 की जल-संबंधी प्रमुख आपदाएँ : अफगानिस्तान-पाकिस्तान, पूर्वी अफ्रीका, ब्राजील में रियो ग्रांडे डो सुल की भयानक बाढ़ तथा अमेज़न बेसिन में भयंकर सूखा एवं जंगल की आग आदि।
    • फ़्लैश फ्लड, नदी में बाढ़, सूखा, उष्णकटिबंधीय चक्रवात एवं भूस्खलन आदि जल-संबंधी आपदाएँ हैं। 
  • जान-माल की क्षति : वर्ष 2024 में जल-संबंधी आपदाओं से 8,700 से अधिक लोगों की मौत, लगभग 40 मिलियन लोगों का विस्थापन और 550 बिलियन डॉलर से अधिक की आर्थिक क्षति
  • भयावहता में वृद्धि : समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि से अमेज़न बेसिन और दक्षिणी अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों व सूखे की स्थिति का भयावह होना 
  • चरम तापमान की स्थिति : वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर अब तक का सर्वाधिक औसत तापमान दर्ज 
    • यह वर्ष 1979 के बाद का सर्वाधिक तापमान वाला वर्ष है। लगभग 34 देशों में वार्षिक अधिकतम तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। दक्षिण अमेरिका में अभूतपूर्व न्यूनतम तापमान दर्ज किया गया। ठंड के औसत दिनों में भी कमी आई है।
  • भारी वर्षा की घटनाओं में तेजी : केवल वर्ष 2024 में रिकॉर्ड मासिक वर्षा सदी की शुरुआत की तुलना में 27% अधिक 
    • रिकार्ड तीव्र मासिक वर्षा वाले इन क्षेत्रों में पश्चिमी अफ्रीका, यूरोप एवं एशिया के कुछ क्षेत्र शामिल हैं।
  • वर्ष 2024 में रिकॉर्ड शुष्क महीनों की संख्या में वृद्धि तथा अत्यधिक शुष्क महीनों के सामान्य होने की परिघटना में वृद्धि    
  • विश्व भर में झीलों व जलाशयों में जल भंडारण क्षमता में गिरावट की निरंतर प्रवृत्ति जारी 
  • दुनिया के ज़्यादातर शुष्क क्षेत्रों में ज़मीनी और सतही जल के साथ-साथ बर्फ़ और हिमपात में कमी आई है। 
    • हालाँकि, पश्चिमी, मध्य और पूर्वी अफ़्रीका में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। 

वैश्विक जलचक्र प्रणाली

  • जलचक्र (Water cycle) : पृथ्वी पर उपलब्ध जल के एक अवस्था से दूसरी अवस्था (ठोस, द्रव व गैस) में परिवर्तन एवं एक स्थान से दूसरे स्थान पर (धरातलीय, वायुमण्डलीय, समुद्री व भूगर्भिक) गति करने की चक्रीय प्रक्रिया
  • प्रक्रिया : कुल जल की मात्रा का क्षय नहीं, केवल जल की अवस्था एवं स्थान में परिवर्तन
    • अधिकांश जल सूर्य से प्राप्त ऊर्जा एवं तापमान में परिवर्तन के कारण गतिशील रहता है।

जलचक्र की प्रक्रिया 

  • इसके तहत धरातल पर जल निकायों में उपलब्ध कुल जल वाष्पीकरण (Evaporation) के माध्यम से जल वाष्प के रूप में वायुमंडल में जाता है। वनस्पति मृदा से कुछ जल ग्रहण करके उसे जलवाष्प के रूप में छोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया को वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) कहते हैं।
  • जल वाष्प अंततः बादलों के रूप में संघनित हो जाता है और बाद में वर्षा या हिमपात के रूप में वर्षण करता है।  
    • वर्षा का जल आइस कैप, महासागरों, झीलों, नदियों या ग्लेशियरों में प्रवेश करता है जिसमें से कुछ जल का अवशोषण पौधों द्वारा हो जाता है और कुछ जल धरातल की गहराई तक रिस जाता है तथा जलचक्र की प्रक्रिया पुनः प्रारंभ होती है। 

जलचक्र का महत्व 

  • पृथ्वी पर जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया 
  • सभी जीवित जीवों के लिए जल की उपलब्धता को सक्षम बनाने में 
  • पृथ्वी पर मौसम प्रतिरूप को नियंत्रित करने में 

जलवायु परिवर्तन का जलचक्र पर प्रभाव 

  • वैश्विक तापन एवं जलवायु परिवर्तन से जलचक्र की प्रक्रिया का तीव्र होना 
  • वायु का तापमान बढ़ने से वाष्पन की प्रक्रिया का तेज होना  
  • जलवाष्प धारण क्षमता पर प्रभाव : गर्म वायु अधिक जलवाष्प धारण कर सकती है जिससे औसत तापमान में प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण वायुमंडल में लगभग 7% अधिक आर्द्रता धारण की जा सकती है। इसके निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं-
    • वर्षा की तीव्रता, अवधि एवं आवृत्ति बढ़ने से बाढ़ की बारंबारता में वृद्धि
    • तीव्र सूखे की स्थिति 
    • तापीय विस्तार एवं बर्फ के पिघलने से समुद्री जलस्तर में वृद्धि
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