(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय)
संदर्भ
भारत में बाल विवाह अभी भी बड़े पैमाने पर प्रचलित है। ऐसा तर्क दिया जा रहा है कि महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर पर्याप्त लाभ के लिये की गई है। इस प्रयास से बाल विवाह उन्मूलन की समस्या पर पड़ने वाले प्रभाव का भविष्य में आकलन करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5 : 2019-2021) के आँकड़े वर्तमान स्थिति की वास्तविकता को दर्शाते हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आँकड़े
ग्रामीण एवं शहरी अंतराल
- NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसार 18 से 29 वर्ष आयु की लगभग 25% महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की कानूनी आयु से पहले हो गया है।
- शहरी क्षेत्रों (17%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (28%) में बाल विवाह का प्रसार अधिक है।
राज्यों की स्थिति
- बाल विवाह का सर्वाधिक प्रसार पश्चिम बंगाल (42%) में है, इसके बाद बिहार और त्रिपुरा (प्रत्येक में 40%) का स्थान आता है। हालाँकि, इन उच्च प्रसार वाले राज्यों में बाल विवाह में सर्वाधिक कमी देखी गई है।
- दूसरी ओर गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल में इसके प्रचलन की दर 6% से 7% के बीच है।
शिक्षा और समुदायवार आँकड़े
- भारत में बाल विवाह का सर्वाधिक प्रचलन आदिवासियों एवं दलित समुदायों (39%) में है। सुविधा प्राप्त सामाजिक समूहों में इसका प्रसार 17% है, जबकि इसका शेष प्रचलन अन्य पिछड़ा वर्ग में है।
- 18 वर्ष से पहले विवाह करने वाली 27% निरक्षर महिलाओं का वजन कम (बॉडी मास इंडेक्स 18.5 से कम) है। साथ ही, दो-तिहाई से अधिक (लगभग 64%) निरक्षर महिलाएँ आयरन की कमी से होने वाली रक्ताल्पता से ग्रस्त हैं।
बाल विवाह के संरचनात्मक कारक
- बाल विवाह के लिये सामाजिक और आर्थिक स्थितियाँ मुख्य रूप से ज़िम्मेदार होती हैं। बाल विवाह और प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों के बीच संबंध सामाजिक मानदंडों, जैसे- गरीबी और महिला शिक्षा जैसे संरचनात्मक कारकों से प्रेरित है।
- बाल विवाह का एक प्रमुख कारण गरीबी और देर से विवाह होने पर दहेज का भारी बोझ है। साथ ही, इन कारकों से किसी बालिका के शैक्षिक अवसरों में व्यवधान उपन्न होता है, जो बाल विवाह को अधिक सुविधाजनक बना देता है।
- समाज की मान्यता यह भी है कि सुरक्षा की दृष्टिकोण से महिलाओं का शीघ्र विवाह कर देना चाहिये।
- आर्थिक बोझ और पारिवारिक प्रतिष्ठा धूमिल होने की आशंका के चलते भी बाल विवाह को बढ़ावा मिलता है।
बाल विवाह रोकने के प्रयास
- बाल विवाह रोकने के लिये अधिकांश राज्यों ने विगत 2 दशकों से ‘सशर्त नगद हस्तांतरण’ (Conditional Cash Transfers : CCTs) की नीति अपनाई है। इसके माध्यम से सरकार ने ‘सभी पर एक समान नीति’ लागू करने का प्रयास किया, जो व्यावहारिक तरीका नहीं है। वस्तुतः नगद हस्तांतरण की नीति किशोरियों के लिये प्रभावी सिद्ध नहीं हुई है।
- कर्नाटक सरकार ने ‘बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2017’ में संशोधन कर ‘बाल विवाह’ को संज्ञेय अपराध बना दिया है तथा बाल विवाह को बढ़ावा देने वालों के लिये सश्रम कारावास की एक न्यूनतम सीमा निर्धारित की है।
- इस दिशा में सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना, सुकन्या समृद्धि योजना जैसे प्रयास भी किये हैं।
- सरकार ने वर्ष 1988 में ‘महिला समाख्या कार्यक्रम’ की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य देश में सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा और उनके सशक्तीकरण को बढ़ावा देना था। यह कार्यक्रम महिलाओं के ‘सामुदायिक मेलजोल’ (Community Engagement) पर आधारित था।
- महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी गई है। 21 वर्ष की आयु में विवाह से सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभांश प्राप्त किया जा सकता है।
समाधान
- महिलाओं को न्यूनतम 12 वर्ष की शिक्षा सुनिश्चित करना।
- माध्यमिक शिक्षा का विस्तार किया जाना चाहिये तथा किशोरियों को निमियत रूप से विद्यालय भेजा जाना चाहिये।
- सरकारों को आवासीय विद्यालयों, बालिका छात्रावासों और सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क का विस्तार देश के वंचित क्षेत्रों में करना।
- इससे बालिकाएँ बीच में शिक्षा छोड़ने को विवश नहीं होंगी।
- महिलाओं की शिक्षा में सुधार और उन्हें आधुनिक कौशल प्रदान करना।
- इससे रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी और स्वास्थ्य व पोषण में सुधार आएगा।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक भलाई के लिये शिक्षा महत्वपूर्ण है और यह मानव विकास में योगदान देता है।
- विवाह के वित्तीय बोझ को कम करने वाली योजनाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता।
- हालाँकि, इन योजनाओं की पात्रता मानदंड आयु के अलावा अनिवार्यत: शिक्षा प्राप्ति से जुड़ी होनी चाहिये।
- जननी सुरक्षा योजना और खुले में शौच को समाप्त करने जैसी इच्छाशक्ति एवं अंतर्दृष्टि बाल विवाह के मामले में भी अपनाने की आवश्यकता।
आगे की राह
- माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में महिलाओं के क्लब बनाकर ‘सामूहिक अध्ययन’ (Group Study) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, ताकि वैचारिक आदान-प्रदान के माध्यम से बाल विवाह के विरुद्ध चेतना बढ़ाई जा सके।
- विद्यालयों में अध्यापकों द्वारा ‘लैंगिक समानता’ विषय पर कार्यक्रम एवं व्याख्यान आयोजित किये जाने चाहियें, ताकि बच्चों में महिलाओं के प्रति ‘प्रगतिशील अभिवृत्ति’ (Progressive Attitude) विकसित की जा सके।
- देश की लगभग 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में स्थापित ‘बाल ग्राम सभाएँ’ (Children’s Village Assemblies) देशभर में बाल विवाह के विरुद्ध बेहतर मंच सिद्ध हो सकती हैं।
- नियमित रूप से ग्रामीण लोगों से मेल-मिलाप करने वाले विभिन्न विभागों के कर्मचारियों को ‘बाल विवाह निषेध अधिकारी’ के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिये।
- जन्म व विवाह पंजीकरण करने के अधिकारों का विकेंद्रीकरण किया जाना चाहिये और ये अधिकार ग्राम पंचायतों को दिये जाने चाहियें, ताकि लड़कियों को उनके अधिकार व्यावहारिक रूप से सुनिश्चित कराए जा सकें।