(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 3 - संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन। आपदा और आपदा प्रबंधन।)
संदर्भ
हाल ही में, भारत मौसम विभाग (IMD) की रिपोर्ट से पता चला है कि वर्ष 2020 भारतीय इतिहास का आठवाँ सबसे गर्म वर्ष था। वर्ष 2020 में तापमान सामान्य से 0.29℃ अधिक रिकॉर्ड किया गया जबकि जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते देश भर में 1,500 से भी अधिक लोगों की मृत्यु हुई। यद्यपि वैश्विक वृद्धि की बात करें तो वर्ष 2020 में औसत तापमान सामान्य से 1.2℃ अधिक था।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 2016 अब तक का सबसे अधिक गर्म वर्ष था। इस वर्ष तापमान वर्ष 1980 से 2010 के औसत तापमान की तुलना में 0.71℃ अधिक था।
- ध्यातव्य है कि अब तक के 12 सबसे गर्म वर्ष हाल के पंद्रह वर्षों (2006 से 2020) के दौरान रिकॉर्ड किये गए हैं।
- यदि अब तक के पाँच सबसे गर्म वर्षों की बात की जाए तो वर्ष 2016 पहले स्थान पर है, जिसमें तापमान सामान्य से 0.71℃ अधिक था। इसके बाद वर्ष 2009 (+0.55℃), वर्ष 2017 (+0.54℃), वर्ष 2010 (+0.539℃) तथा वर्ष 2015 में तापमान सामान्य से 0.42℃ अधिक रिकॉर्ड किया गया था।
- इस वर्ष जलवायु से जुड़ी आपदाओं के कारण 1,500 से भी अधिक लोगों की जान गई। इसमें 600 से अधिक मौतें मानसून के दौरान आई भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के कारण गई थी। वहीं तूफान और बिजली गिरने के कारण 815 मौतें हुई थी जबकि शीत लहर के चलते देश भर में 150 से अधिक जानें गई थी।
औसत से अधिक बारिश
- वर्ष 2020 में सामान्य से 109% अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई थी। यह वर्ष 1994 के 112% एल.पी.ए. (Long Period Average) और वर्ष 2019 के 110% एल.पी.ए. के बाद तीसरा सबसे अधिक औसत था। इस वर्ष देश में सामान्य से 12 दिन पहले ही मानसून आ गया था।
- विगत 65 वर्षों में अत्यधिक बारिश की घटनाओं में करीब तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई है।
जलवायु परिवर्तन से खतरा
- विगत वर्ष भारत में आई बाढ़ और चक्रवाती तूफान अम्फान को वर्ष 2020 में विश्व की 10 सबसे महंगी आपदाओं की सूची में शामिल किया गया था।
- इन दोनों आपदाओं से करीब 1.70 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। ध्यातव्य है कि यह मात्र बीमित नुकसान का अनुमान है, जबकि वास्तविकता में इससे कई गुना ज़्यादा नुकसान हुआ था।
- ‘ऐक्शन ऐड’ द्वारा हाल में प्रकाशित रिपोर्ट ‘कास्ट ऑफ़ क्लाइमेट इन एक्शन’ के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत के 4.5 करोड़ से ज़्यादा लोग जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते अपना घर छोड़ने के लिये मजबूर हो जाएंगे।
- यह आँकड़ा वर्तमान के आँकड़े से लगभग 3 गुना ज़्यादा है। वर्तमान में सूखा, समुद्री जलस्तर के बढ़ने, जल संकट, कृषि और पारिस्थितकी को हो रहे नुकसान के कारण देश में लगभग 1.4 करोड़ लोग पलायन करने को मज़बूर हैं।
- काउंसिल ऑफ़ एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (CEEW) के एक शोध से स्पष्ट हुआ है कि देश में 75% से अधिक ज़िलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है और लगभग 63 करोड़ लोगों पर इसका असर पड़ेगा।
- हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित ‘उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट – 2020’ से यह पता चला है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो शताब्दी के अंत तक यह वृद्धि 3.2℃ के पार चली जाएगी, जिसके विनाशकारी परिणाम झेलने होंगे।