(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : शासन व्यवस्था)
संदर्भ
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के एक हालिया आदेश ने वर्ष 2018 की चुनावी बॉण्ड योजना (Electoral Bond Scheme) में अंतर्निहित समस्याओं को एक बार फिर से उजागर कर दिया है।
वर्तमान मुद्दा
- केंद्रीय सूचना आयोग ने भारतीय स्टेट बैंक के उस तर्क को सही ठहराया है, जिसमें कहा गया है कि आर.टी.आई. अधिनियम के तहत दान या चंदा दाताओं, प्राप्तकर्ताओं और उसके विवरण को प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।
- भारतीय स्टेट बैंक के खिलाफ दायर एक अपील के संदर्भ में सी.आई.सी. ने यह मत व्यक्त किया है। इस निर्णय से सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत चुनावी बॉण्ड से संबंधित दान दाताओं और प्राप्तकर्ताओं के बारे में किसी प्रकार का विवरण प्राप्त करने के सभी प्रभावी रास्ते बंद हो गए हैं।
योजना में निहित समस्या
- इस योजना के अंतर्गत राजनीतिक दान देने वालों की पहचान छुपाने के साथ-साथ दान की राशि को भी गुप्त रखा जाता है। वास्तव में यह योजना अपारदर्शी और मनमानी को बढ़ावा देने वाली है।
- इस प्रकार, इस योजना में दोनों पक्षों को अघोषित लाभ पहुँचाने की व्यवस्था है, जिसमें राजनीतिक दल और अधिकांशत: कॉर्पोरेट शामिल हैं। ऐसी व्यवस्था चुनावी लोकतंत्र की सर्वोत्तम प्रथाओं के विरुद्ध होने के साथ-साथ वाक व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के भी प्रतिकूल है।
- ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ’ (2003) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वाक व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्राप्त करना मतदाताओं का मौलिक अधिकार है।
आर.टी.आई. अधिनियम का दुरुपयोग
- यह योजना एस.बी.आई. के माध्यम से राजनीतिक दलों को दान देने के लिये बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराती है। इससे संबंधित सूचना को सार्वजनिक न करने के संबंध में एस.बी.आई. ने आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रदत्त दो आधारों का प्रयोग किया है, जो सूचना के प्रकटीकरण के लिये कुछ छूट प्रदान करता है।
- पहला, जो जानकारी माँगी गई है उसमें प्रत्ययी संबंध या विश्वास के रिश्ते (Fiduciary Capacity) का प्रश्न न हो और दूसरा इसमें कोई सार्वजनिक हित न शामिल हो।
- धारा 8 (2) के अनुसार, यदि सार्वजनिक हित किसी व्यक्ति/संस्थान के संरक्षित हितों के नुकसान से अधिक महत्त्वपूर्ण है तो ऐसी जानकारी माँगी जा सकती है। हालाँकि, यह बाध्यकारी नहीं है और केंद्रीय सूचना आयोग इस मामले में निर्णय लेने में स्वतंत्र है, जिसका दुरूपयोग किया जाता रहा है।
- राजनीतिक मामले में जनहित निर्विवाद रूप से संरक्षित हितों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। साथ ही, सी.आई.सी. ने पहले के एक आदेश में राजनीतिक दलों को आर.टी.आई. अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण माना है।
- दान दाताओं से पार्टियों को प्राप्त धन मतदाताओं के लिये स्वाभाविक रूप से उनके वित्तपोषण और कार्यप्रणाली को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- अत: इस मुद्दे को सार्वजनिक महत्त्व का न मानना सी.आई.सी. की विफलता को दर्शाता है। साथ ही, तकनीकी आपत्तियों का सहारा लेना आर.टी.आई. अधिनियम के उद्देश्य को ही प्रभावित करता है।
अंतिम मध्यस्थ
- सी.आई.सी. का आदेश चुनावी बॉण्ड और इसी प्रकार की अन्य सहवर्ती जानकारी के संबंध में किसी भी आर.टी.आई. अनुरोध पर रोक लगा देता है।
- इस योजना के संबंध में कानून का निर्धारण करने और केंद्रीय सूचना आयोग के निर्णय की व्याख्या करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है।
- चुनावी बॉण्ड और इसकी पारदर्शिता के संबंध में ए.डी.आर. (ADR) और एक राजनीतिक दल द्वारा दायर याचिकाएँ विचाराधीन हैं। इसलिये, केंद्रीय सूचना आयोग के निर्णय को भी उच्चतम न्यायालय में सुना जा सकता है।
- इन याचिकाओं के संबंध में चुनाव आयोग ने वर्ष 2017 में उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हलफनामे में कहा कि राजनीतिक दलों को प्राप्त दान और उसके खर्च के तरीकों की घोषणा चुनाव प्रक्रिया में बेहतर पारदर्शिता तथा जवाबदेही के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष
- राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के बारे में सार्वजनिक जानकारी स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अनिवार्य तथा अपरिहार्य हिस्सा है। राजनीतिक वित्तपोषण से संबंधित जानकारी को गुप्त रखना लोकतंत्र के बुनियादी स्तंभों के ही विरुद्ध है।
- जब मतदाता को यह जानने की अनुमति है कि कोई उम्मीदवार कितने मुकदमों का सामना कर रहा है, तो उसे यह भी जानने का अधिकार होना चाहिये कि उस दल और उसके उम्मीदवार का खर्च कौन वहन कर रहा है?
- एक अनसुलझा कानून उतना ही खतरनाक होता है जितना की एक गलत कानून, अत: न्यायालय को निर्णायक रूप से चुनावी बॉण्ड की संवैधानिकता और संबंधित सवालों का निपटारा करना आवश्यक है।