(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्य परीक्षा, निबंध तथा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था: प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार नेटवर्क)
पृष्ठभूमि
भारत ने स्वास्थ्य और आर्थिक संकटों से निपटने में मदद करने हेतु प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer) प्रणाली को नियोजित किया है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के अनुमानों के अनुसार, भारत में लगभग 100 मिलियन प्रवासी मज़दूर लॉकडाउन के कारण आजीविका खो चुके हैं। इस दौरान, ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ (PMJDY) के अंतर्गत खोले गए बैंक खातों के माध्यम से प्रवासी मजदूरों को आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। पी.एम.जे.डी.वाई. को बैंकिंग सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करने के लिये वर्ष 2014 में शुरू किया गया था। इन खातों को आधार संख्या और मोबाइल नम्बर के साथ भी जोड़ दिया गया है। वर्ष 2019 में सरकार द्वारा ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ योजना की घोषणा की गई। इसके माध्यम से भी प्रवासी मजदूरों को सहायता प्रदान करने की कोशिश की जा रही है।
लॉकडाउन: प्रमुख आँकड़े
- 31 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान सड़कों (पैदल) द्वारा प्रवास कर रहे 0.6 मिलियन से अधिक लोगों को रोककर अस्थाई आवास प्रदान किया गया, जबकि 22 मिलियन से अधिक लोगों को राशन प्रदान किया गया।
- इस संख्या में वृद्धि की सम्भावना है और स्थिति सामान्य होने से पूर्व कम से कम तीन महीने तक लोगों को नकदी के साथ-साथ भोजन के रूप में सहायता की आवश्यकता होगी। शहरों और गाँवों में लाखों ऐसे लोग हैं जिन्हें भी सहायता की आवश्यकता होगी। उन्हें पहचान कर सहायता प्रदान करना सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है।
- भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 16 अप्रैल को ज़ारी इकोव्रैप (Ecowrap) रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 70 % आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई हैं।
- देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़े योगदानकर्ता राज्यों, यथा-महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली में सबसे ज्यादा कोविड-19 मामलों के मिलने के कारण आर्थिक स्थिति और भी बदतर होती जा रही है। अप्रैल में एच.डी.एफ.सी. बैंक के अनुसार, इन तीन राज्यों की भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में 30 % की हिस्सेदारी है।
- इसके अतिरिक्त, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश के वे क्लस्टर जहाँ कोविड-19 के मामलों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है भारत की विनिर्माण गतिविधियों में 34% के हिस्सेदार हैं। इस कारण से निकट भविष्य में आर्थिक गतिविधियों को पुन: शुरू करना अपेक्षाकृत कठिन है।
कोविड-19 और डी.बी.टी.
- लॉकडाउन के दौरान वित्त मंत्री द्वारा मार्च में ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ (पी.एम.जी.के.वाई.) के अंतर्गत 800 मिलियन लोगों को सहायता प्रदान करने हेतु डी.बी.टी. के माध्यम से 1.70 लाख करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा की गई। 800 मिलियन जनसंख्या भारत की कुल आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है।
- डी.बी.टी. पैकेज में ‘नकद’ और ‘इन-काइंड’ के रूप में सहायता शामिल है। डी.बी.टी. के माध्यम से नकद सहायता के रूप में पी.एम.जे.डी.वाई. के तहत लगभग 200 मिलियन महिलाओं को 500 रुपये और करीब 87 मिलियन किसानों को पी.एम.-किसान के तहत 2,000 रुपए हस्तांतरित किये जाएंगें।
- इस राहत पैकेज के नकद घटक में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत मजदूरी में भी वृद्धि की गई है, जिसके तहत लगभग 136 मिलियन लाभार्थी परिवारों को प्रति दिन 182 रुपए के साथ अतिरिक्त 20 रुपए प्रदान किये जाएंगे।
- इन-काइंड के रूप में सहायता तीन महीने के लिये है, जिसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) के माध्यम से प्रदान किया जा रहा है। इसमें मुफ्त सहायता के रूप में प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम गेहूँ या चावल, प्रति माह 1 किलो दालें और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पी.एम.यू.वाई.) के तहत रसोई गैस की तीन रिफिल शामिल हैं।
- नई घोषणा के अनुसार इस सहायता को अतिरिक्त पाँच महीने के लिये बढ़ा दिया गया है जिसके अंतर्गत नवम्बर तक करीब 800 मिलियन लोगों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता रहेगा।
- डी.बी.टी. को सही तरीके से लागू करना सरकार के लिये वास्तविक परीक्षा होगी क्योंकि अभी तक कई ऐसे पात्र वर्ग है जिनको सहायता राशि प्राप्त नहीं हो सकी है। दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्थान, इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट (IHD) ने अनुमान लगाया है कि देश के कुल प्रवासी श्रमिकों में से केवल एक-तिहाई तक ही राहत उपाय पहुँच पाए हैं।
डी.बी.टी. का उद्भव व विकास
- वर्तमान में, देश भर में 400 से अधिक योजनाओं का लाभ डी.बी.टी. के माध्यम से वितरित किया जा रहा है। इनमें से 63 इन-काइंड सब्सिडी हैं जबकि शेष या तो नकद हैं या नकद व इन-काइंड सब्सिडी का मिश्रण हैं।
- पूर्ववर्ती योजना आयोग ने वर्ष 2011 में नकद हस्तांतरण पद्धति का खाका तैयार किया। विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत दी जाने वाली सहायता के वितरण में आने वाले अत्यधिक खर्च को कम करने के साथ-साथ वितरण में तेज़ी लाने के लिये डी.बी.टी. के विचार को मज़बूती मिली।
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, भारत ने वर्ष 2000 में विकास के लिये दिये गए ‘एक रुपए की डिलीवरी या वितरण में 3.65 रुपए खर्च’ किये।
- केंद्रीय बजट 2011-12 में, सरकार ने नंदन नीलेकणी के नेतृत्व में डी.बी.टी. के लिये एक कार्यबल की घोषणा की।
- जनवरी 2013 में भारत द्वारा पहली बार सात केंद्र प्रायोजित योजनाओं को डी.बी.टी. मोड के अंतर्गत लाया गया। साथ ही, योजना आयोग के तहत डी.बी.टी. मिशन की स्थापना की गई।
- वर्ष 2014-15 के आर्थिक सर्वेक्षण में ‘जैम त्रयी (JAM Trinity): जन धन बैंक खाता, सत्यापन उपकरण के रूप में आधार कार्ड और व्यक्तिगत ऑपरेटिंग सिस्टम के रूप में मोबाइल फोन’ को प्रस्तावित किया गया।
- प्रधानमंत्री मोदी ने पहले कार्यकाल में, लगभग 220 मिलियन लोगों तक डी.बी.टी. के माध्यम से घरेलू स्तर पर सभी बुनियादी ज़रुरतों और लाभों को वितरित करने के लक्ष्य का निर्देश दिया। इन बुनियादी पहलों में आवास, रोज़गार, रियायती खाद्यान्न, शौचालय, बिजली, स्वास्थ्य बीमा, कृषि नकदी सहायता और बीमा शामिल हैं। बाद में इस सूची में पाइप द्वारा जलापूर्ति को भी जोड़ा गया।
- भारत ने इस मोड के माध्यम से वितरण द्वारा अनुमानत: 900 मिलियन से अधिक लोगों को लाभ पहुँचाया है।
- डी.बी.टी. मिशन की वेबसाइट के अनुसार वर्ष 2014 के बाद से सरकार ने केंद्र सरकार के कल्याणकारी और सब्सिडी बजट का लगभग 60 % वितरण सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में किया है।
- वर्ष 2019-20 में, डी.बी.टी. के तहत कुल हस्तांतरण वर्ष 2013 में डी.बी.टी. की शुरुआत के प्रथम वर्ष का लगभग 40 गुना है।
- डी.बी.टी. के तहत योजनाओं के लिये वर्ष 2020-21 के कुल कृषि बजट का आवंटन लगभग 81% है, जो प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण की मात्रा को इंगित करता है।
- सरकार के अनुसार, डी.बी.टी. ने न केवल वितरण प्रणाली को सटीक बनाया है, बल्कि चोरी और प्रशासनिक लागत को कम करके पैसे बचाने में भी मदद की है। डी.बी.टी. मिशन वेबसाइट के अनुसार, जून 2020 तक यह बचत लगभग 1.7 लाख करोड़ रुपये रही जो करीब कोविड-19 राहत पैकेज की पहली राशि के समान है।
सब्सिडी/वस्तुओं के रूप में लाभ (Benefits In-Kind)
- इसके माध्यम से लगभग 63 ‘इन-काइंड’ प्रकार की योजनओं का संचालन किया जा रहा है। इसमें सर्वप्रमुख रियायती राशन का वितरण (पी.डी.एस. के माध्यम से), आँगनवाड़ी सेवाओं के माध्यम से पूरक पोषण कार्यक्रम, मध्याह्न भोजन योजनाएँ (Mid-Day Meal), उर्वरक सब्सिडी, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, आयुष्मान भारत और उज्ज्वला योजनाएँ हैं।
- ‘इन-काइंड’ के तहत, सरकार या उसकी एजेंसी लक्षित लाभार्थियों को मुफ्त या रियायती दरों पर सामान खरीदने और प्रदान करने के लिये आंतरिक व्यय करती है।
लाभार्थी और बहिष्करण
- डी.बी.टी. का सबसे आधारभूत और परेशान करने वाला पहलू लाभार्थियों की पहचान है। मनरेगा, पी.एम.-किसान या पी.एम.यू.वाई. जैसी कुछ योजनाओं को छोड़कर डी.बी.टी. योजनाओं में से अधिकांश का प्रबंधन राज्यों द्वारा किया जाता है।
- प्रत्येक डी.बी.टी. योजना के लिये सरकार के पास एक अलग मानदंड, लाभार्थी सूची और वितरण चैनल होते हैं।
- समस्या यह है कि किसी आपदा के दौरान, सरकार यादृच्छिक रूप से लाभार्थी सूचियों का चयन करती है, जिससे कई पात्रों का समावेश नहीं हो पाता है।
- इसके अतिरिक्त कई मामलों में, पात्रों की सूचियाँ ठीक से लक्षित या सम्पूर्ण नहीं होती हैं। उदाहरणस्वरुप देश में वर्ष 1997 में पहला बी.पी.एल. सर्वेक्षण किया था, उसके बाद से ऐसी कोई सूची तैयार नहीं की गई।
- दूसरा उदाहरण पी.एम.-किसान का लिया जा सकता है जो की भारत की सबसे बड़ी नकद आय सहायता योजना है। इस योजना के तहत लाभार्थियों का प्रारम्भिक अनुमान 140 मिलियन था, जिसे बाद में घटाकर 87 मिलियन कर दिया गया। साथ ही, इसमें बटाईदार किसानों और पशुपालकों को लाभार्थी नहीं माना जाता है।
- इसके अतिरिक्त, अनौपचारिक क्षेत्र के मज़दूरों के लिये किसी प्रकार का डाटाबेस न होना भी एक समस्या है।
- वर्ष 2017 में, केंद्र ने गरीबी रेखा के बजाय सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) -2011 डाटा का उपयोग करने, लाभार्थियों की पहचान करने और ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक योजनाओं के लिये धन हस्तांतरित करने का निर्णय लिया। यह एक अच्छी शुरुआत है परंतु डाटाबेस पुराना होने के कारण इसको अद्यतन करने और दुबारा जाँचने की भी ज़रुरत है।
जैम और बैंकिंग में अंतराल
- ‘जन-धन खाते’ का प्रयोग वित्तीय संस्थानों तक समावेशी पहुँच बढ़ाने और विभिन्न प्रकार की सब्सिडी के नकद हस्तांतरण को प्रभावी बनाने के लिये किया गया था, परंतु ऐसे खाते खोलने के लिये पात्रता मानदंड अस्पष्ट है।
- जन-धन खाते ऐसे ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिये थे जिनके पास खाता नहीं है परंतु इसका भी सत्यापन नहीं किया जा सका।
- सरकार के अनुसार, जनवरी 2020 तक लगभग 15 % भारतीयों के बैंक खातें आधार से लिंक नहीं है जो संख्यात्मक रूप में लगभग 160 मिलियन है। 2014-19 में, सरकार द्वारा 1.257 बिलियन से अधिक आधार कार्ड जारी किये गए।
- भारतीय रिजर्व बैंक के वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, भारत के सबसे गरीब लगभग 40 फीसदी लोगों में से करीब 23% का किसी भी वित्तीय संस्थान में खाता नहीं है। साथ ही, निष्क्रिय खातों की बड़ी संख्या चिंता का दूसरा कारण है। भारत में गरीबों के कुल खातों में से लगभग 45% निष्क्रिय हैं। साथ ही, जुलाई 2018 तक 60 मिलियन से अधिक जन धन खाते निष्क्रिय थे।
- बैंक और शाखा रहित क्षेत्रों के लोग राहत उपायों का लाभ पाने से वंचित रह सकते हैं। इसके लिये शाखा रहित ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने और कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये सरकार के पास लगभग 126,000 बैंक मित्र हैं।
- इसके अलावा, डिजिटल वित्तपोषण सेवाओं की बुनियादी संरचना की स्थिति भी ग्रामीण क्षेत्रों में निराशाजनक है। वर्ष 2017 में वित्तीय समावेशन पर नाबार्ड द्वारा एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण में कहा गया है कि ग्रामीण आबादी के 2% से भी कम खाताधारक मोबाइल और इंटरनेट बैंकिंग पर निर्भर हैं।
- बैंकिंग क्षेत्र में एक और बड़ी चुनौती ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढाँचे की कमी है। वर्ष 2019 तक देश के कुल ए.टी.एम. का केवल 19% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
आगे की राह
वर्तमान संकट के दौर में, सरकार को केवल जन धन खाताधारकों को लक्षित करने के बजाय, मनरेगा और एन.एफ़.एस.ए, दोनों सूचियों का उपयोग करके लाभार्थियों की पहचान करनी चाहिये। इसमें कोई संदेह नहीं है कि बैंक इस विशाल राहत अभियान के केंद्र में रहे हैं लेकिन बैंकिंग केंद्रों की कमी भी एक समस्या है। हालाँकि, सरकार द्वारा योजना की घोषणा के कुछ हफ़्ते बाद ही खातों में सहायता राशि का आना उस गति की गवाही है जिस पर डी.बी.टी. अवसंरचना कार्य कर सकती है। जिस गति से लाभ दिया जाता है वह गेम चेंजर साबित हो सकता है। डी.बी.टी. के लिये, वित्तीय समावेशन, वित्तीय साक्षरता और राशि तक वास्तविक समय में पहुँच आवश्यक शर्तें हैं। डी.बी.टी. के रूप में इस समय सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म उपलब्ध है, क्योंकि यह योजनाओं तक सीधी पहुँच प्रदान करता है। यदि सरकार को राशन भेजना है, तो उसे एक रसद श्रृंखला बनानी होगी, अनाजों की खरीद करनी होगी और इसे राशन की दुकानों में पहुँचाना होगा, जिसमें यह काफी सहायक साबित होगा।