(प्रारम्भिक परीक्षा : पर्यावरण; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : विषय- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।)
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट (Emission Gap Report) 2020 प्रकाशित की गई।
- यू.एन.ई.पी. की यह वार्षिक रिपोर्ट, पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप, अनुमानित उत्सर्जन स्तरों के बीच अंतर को मापती है। ध्यातव्य है कि इस सदी का प्रमुख लक्ष्य ग्लोबल वार्मिंग के स्तर को 2°C से कम करके1.5°C पर लाना है।
प्रमुख बिंदु (वर्ष 2019 के विश्लेष्णात्मक आँकड़े)
रिकॉर्ड ग्रीन हाउस गैस (GHG) उत्सर्जन
- वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन लगातार तीसरे वर्ष, वर्ष 2019 में भी बढ़ता रहा, जो भूमि उपयोग परिवर्तन ( land use changes -LUC ) को शामिल किये बिना 52.4 गीगाटन कार्बन समकक्ष (GtCO2e) के रिकॉर्ड उच्च स्तर तक पहुँच गया ।
- हलाँकि विगत कुछ समय में ऐसे संकेत मिले हैं, जो यह बताते हैं कि वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की वृद्धि दर धीमी हुई है।
- हलाँकि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओ.ई.सी.डी.) देशों की अर्थव्यवस्थाओं में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में गिरावट आ रही है और गैर- ओ.ई.सी.डी. अर्थव्यवस्थाओं में यह उत्सर्जन बढ़ रहा है।
रिकॉर्ड कार्बन उत्सर्जन:
- जीवाश्म ईंधन और कार्बोनेट से जीवाश्म कार्बन डाइऑक्साइड (Fossil carbon dioxide) का उत्सर्जन कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पर हावी रहा।
- जीवाश्म कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन वर्ष 2019 में रिकॉर्ड 38.0 Gt CO2 तक पहुँच गया।
दावानल/वनाग्नि के कारण बढ़ता जी.एच.जी. उत्सर्जन
- वर्ष 2010 के बाद से, वैश्विक ग्रीन हाउस गसों का उत्सर्जन औसतन प्रति वर्ष 1.4% बढ़ा है, लेकिन वर्ष 2019 में दावानल में वृद्धि के कारण यह उत्सर्जन 2.6% की तेज़ी से बढ़ा है।
जी-20 देशों में भारी मात्रा में उत्सर्जन
- पिछले एक दशक में, शीर्ष चार उत्सर्जक देशों (चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, EU27 + यू.के. और भारत) ने भूमि उपयोग परिवर्तन (LUC) के बिना कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 55% का योगदान दिया है ।
- शीर्ष सात उत्सर्जक देश (रूस, जापान सहित अंतर्राष्ट्रीय परिवहन) 65% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं तो वहीं जी -20 के सदस्य देशों ने 78% का योगदान दिया है।
- यदि भारत के उत्सर्जन की बात की जाए तो वर्ष 2019 के दौरान भारत में 3.7 गीगाटन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ था। यहाँ प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2.7 टन CO2 था।
उत्सर्जन पर महामारी का प्रभाव:
- CO2 उत्सर्जन वर्ष 2020 में, वर्ष 2019 के उत्सर्जन स्तर के मुकाबले 7% तक घट सकता है।
- अन्य ग्रीन हाउस गैसें, जैसे- मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) की वायुमंडलीय सांद्रता में वृद्धि वर्ष 2019 और 2020, दोनों में जारी रही।
- महामारी के कारण उत्सर्जन में सबसे कम गिरावट परिवहन क्षेत्र में रही। चूँकि लम्बे समय तक लॉकडाउन रहा इस वजह से परिवहन गतिविधियाँ कम रहीं।
गम्भीरता
- वर्तमान दर से यदि देखा जाए तो दुनिया अभी भी इस सदी में 3°C से अधिक तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है।
- पेरिस समझौते में प्रयास के स्तर को अभी भी 2°C के लक्ष्य हेतु तिगुना और 1.5°C के लक्ष्य के लिये कम से कम पाँच गुना बढ़ाया जाना चाहिये।
- वैश्विक तापमान में 3°C की बढ़ोत्तरी दुनिया भर में मौसम सम्बंधी तीव्र घटनाओं का कारण बन सकती है।
आगे की राह
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोविड-19 की आर्थिक मार से उबरने के लिये अगर अभी पर्यावरण के अनुकूल निर्णय लिये जाते हैं तो वर्ष 2030 तक के अनुमानित ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse gas emissions) में 25% की कमी लाई जा सकती है।
- भारत ने अपने उत्सर्जन में कमी लाने के लिये कई प्रयास किये हैं। इसी दिशा में उसने वर्ष 2020 की पहली छमाही में कोई नया ताप विद्युत् प्लांट स्थापित नहीं किया है। यही वजह है कि भारत में कोयले से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा में करीब 0.3 गीगावाट की कमी आई है।
- इसके अतिरिक्त, भारत सौर ऊर्जा पर भी विशेष ध्यान दे रहा है, वर्ष 2022 तक अपने कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा के अनुप्रयोगों को बढ़ाने और 25 गीगावाट क्षमता विकसित करने के लिये पी.एम. कुसुम योजना भी चला रहा है।