(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र)
संदर्भ
भारत की ‘श्वेत क्रांति’ में महिला डेयरी किसानों के अत्यधिक योगदान के बावजूद उनको उचित स्थान नहीं मिल पाया है। इसमें अधिकतर योगदान उन छोटे जोत वाले डेयरी किसानों का रहा है, जो दो से पाँच दुधारू पशुओं के स्वामी है। इन्होंने डेयरी सहकारी मॉडल की सफलता में प्रमुख भूमिका निभाई है।
डेयरी सहकारी मॉडल के लाभ
- इस दृष्टिकोण ने डेयरी मूल्य श्रृंखला में लिंकेज को मज़बूत किया है, जिससे छोटे किसान बिचौलियों के चंगुल से मुक्त हो पाए है। इस प्रकार, दूध के लिये न्यूनतम खरीद मूल्य को निश्चित किया जा सका है।
- अंतर्राष्ट्रीय विकास अनुसंधान केंद्र (International Development Research Centre : IDRC) के एक अध्ययन के अनुसार, वित्तीय सहायता के साथ प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली 93% महिला किसान अपने उद्यम में सफल होती हैं, जबकि केवल वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाली महिलाओं की सफलता की दर केवल 57% है।
- इस तरह के आदानों (Inputs) को संस्थागत रूप प्रदान करते हुए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) अब देश भर में किसानों के उन्मुखीकरण के लिये विभिन्न कार्यक्रम (Orientation Programmes) आयोजित करता है। इसके तहत महिला किसानों को पशु स्वास्थ्य, चारा गुणवत्ता, स्वच्छ दुग्ध उत्पादन और लेखा प्रबंधन में सर्वोत्तम वैज्ञानिक अभ्यासों के अनुसार प्रशिक्षित किया जाता है।
डेयरी कार्यकलापों में लगी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों की सहायता (SDCFPO)
- वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान ‘डेयरी कार्यकलापों में लगी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों की सहायता’ योजना प्रारंभ की गई थी। इस योजना का कार्यान्वयन ‘राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड’ कर रहा है।
- इस योजना के उद्देश्य इस प्रकार हैं -
- गंभीर प्रतिकूल बाजार स्थितियों से निपटने के लिये सुलभ कार्यशील पूँजी ऋण प्रदान करके संबंधित सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों की सहायता करना।
- डेयरी किसानों को स्थिर बाजार तक पहुँच प्रदान करना।
- सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों को किसानों का बकाया भुगतान समय पर जारी करने के लिये सक्षम करना।
- किसानों से लाभकारी मूल्य पर दूध खरीदने के लिये डेयरी कार्यकलापों में लगी सहकारी और किसान उत्पादक संगठनों को सक्षम बनाना।
आय में वृद्धि
- नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, देश भर में 1,90,000 से अधिक डेयरी सहकारी समितियों में लगभग 6 मिलियन महिलाएँ कार्यरत हैं। राजस्थान में महिला डेयरी सहकारी समिति के सदस्यों पर किये गए एक अध्ययन के अनुसार डेयरी के माध्यम से होने वाली आय के योगदान से 31% महिलाओं ने अपने कच्चे घरों की जगह पक्के घरों का निर्माण कर लिया था, जबकि 39% महिलाओं ने मवेशियों के लिये कंक्रीट शेड का निर्माण किया था।
- इसके अतिरिक्त, महिलाओं के स्वामित्त्व वाली सहकारी समितियों ने ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं में नेतृत्व की भावना विकसित की है। यह कई मामलों में महिलाओं को पारंपरिक प्रथाओं से मुक्ति दिलाने में सार्थक कदम है। साथ ही, कई परिवारों में महिलाएँ कमाने वाली प्रमुख सदस्य बन गई है।
- पिछले वर्ष अमूल डेयरी ने कंपनी को दूध बेचकर करोड़पति बनने वाली 10 महिला डेयरी किसानों की सूची भी जारी की थी।लाभ
- ऐसे कई उदाहरण मौजूद है, जहाँ शिक्षा या औपचारिक रोजगार तक पहुँच न होने के बावजूद दुग्ध संघ के सदस्यों के जीवन में पर्याप्त परिवर्तन देखा गया है। यह इसलिये महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि बिना किसी औपचारिक तकनीकी और औद्योगिक शिक्षा के ही ग्रामीण स्तर पर बदलाव लाया जा सकता है। यह अशिक्षा और निर्धनता के प्रभाव को कम करके महिला सशक्तिकरण में भी सहायक है।
- सहकारी समितियों और दुग्ध संघों के रूप में सामूहिक प्रयास की उपस्थिति महिलाओं के ज्ञान को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
महिलाओं के नेतृत्व वाली कंपनियाँ
- विगत वर्षों में महिलाओं के नेतृत्व वाले डेयरी संघों और कंपनियों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। डेयरी विकास बोर्ड ने महिलाओं के नेतृत्व वाले उत्पादक उद्यमों को स्थापित करने में एक सक्रिय भूमिका निभाई है।
- श्रीजा महिला दुग्ध उत्पादक कंपनी इसका एक अच्छा उदाहरण है। इसकी शुरुआत 24 महिलाओं के साथ की गई थी और वर्तमान में लगभग ₹450 करोड़ के वार्षिक कारोबार के साथ इसमें 90,000 से अधिक सदस्य है।
- संगठनात्मक संरचनाओं में नवाचार ने इस क्षेत्र में लगातार विकास को गति दी है। इस संबंध में व्यक्तिगत महिला डेयरी किसानों का उल्लेख आवश्यक है। इनमें से कई महिलाओं के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी किंतु डेरी व्यवसाय की प्रक्रियाओं और दुग्ध संघों व सहकारी समितियों जैसे बड़े समूहों के साथ कार्य करने से उनको वित्त एवं विपणन की बारीकियों में महारत हासिल हो गई है।
आगे की राह
वित्त वर्ष 2021-22 में कृषि ऋण लक्ष्य 15 लाख करोड़ से बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रुपए करने की भी घोषणा की गई है। इसमें पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन करने वाले किसानों को अधिक ऋण प्रदान कराया जाएगा। इस क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती किसानों के बीच सूचना विषमता है। आँकड़ों के अनुसार बड़े और मध्यम स्तर के किसानों के पास उपलब्ध संसाधनों के केवल 50 से 70% तक ही छोटे और सीमांत किसानों की पहुँच है।