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शत्रु संपत्ति : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, निपटान एवं विनियमन

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संघ व राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, भारत एवं इसके पड़ोसी-संबंध)

संदर्भ

भारत सरकार ने देश के ऐसे भूतपूर्व नागरिकों की संपत्तियों की नीलामी शुरू कर दी है, जिनके पास अब पाकिस्तान एवं चीन का पासपोर्ट है।

शत्रु संपत्ति के बारे में 

  • शत्रु संपत्ति वह संपत्ति होती है जो दुश्मन देशों में चले गए लोग छोड़ जाते हैं। 
  • शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 (2017 में संशोधित) शत्रु संपत्ति को एक ऐसी संपत्ति के रूप में परिभाषित करता है जो ‘किसी शत्रु, शत्रु आश्रित या शत्रु फर्म की ओर से प्रबंधित की जाती है या धारण की जाती है’।
    • यहाँ ‘शत्रु’ शब्द का अर्थ है, कोई भी ऐसा देश जिसने भारत संघ के विरुद्ध कोई आक्रामक कार्य किया हो या युद्ध की घोषणा की हो।
    • ‘संपत्ति’ के अंतर्गत सभी चल/अचल एवं लिखित संपत्तियां, जैसे- शेयर, डिबेंचर इत्यादि शामिल हैं।

भारत में शत्रु संपत्ति का वितरण

  • केंद्र सरकार ने देश भर में 12,611 संपत्तियों को चिन्हित किया है, जिनमें से 126 चीनी नागरिकों की हैं।
  • उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा 6,041 संपत्तियां हैं, उसके बाद पश्चिम बंगाल में 4,354 संपत्तियां हैं।
    • लखनऊ में 361 और शामली ज़िले में 482 ऐसी संपत्तियां हैं। इनमें से कई पर लोगों का कब्ज़ा है।
  • वित्त मंत्रालय के निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग की जनवरी 2024 की अधिसूचना के अनुसार, देश की 84 कंपनियों में लगभग 2.91 लाख शत्रु संपत्ति के शेयर हैं।
    • सरकार इन शेयरों को किस्तों में बेचना चाहती है और उसने 20 कंपनियों के 1.88 लाख शेयरों की बिक्री के लिए बोलियाँ आमंत्रित की हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के बाद भारत से पाकिस्तान में लोगों का पलायन हुआ।
  • भारत रक्षा अधिनियम, 1962 के तहत बनाए गए भारत रक्षा नियमों के तहत भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकता लेने वालों की संपत्तियों एवं कंपनियों को अपने कब्जे में ले लिया।
  • इन ‘शत्रु संपत्तियों’ को केंद्र सरकार ने भारत के शत्रु संपत्ति संरक्षक को सौंप दिया था।
  • वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन चले गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति के लिए भी यही किया गया था।
  • 10 जनवरी, 1966 के ताशकंद घोषणापत्र में एक खंड शामिल था, जिसके अनुसार भारत और पाकिस्तान किसी संघर्ष के सिलसिले में किसी भी पक्ष द्वारा ली गई संपत्ति एवं परिसंपत्तियों की वापसी पर चर्चा करेंगे।
    • हालाँकि, पाकिस्तान सरकार ने वर्ष 1971 में भारत से चर्चा किये बिना ही अपने देश में ऐसी सभी संपत्तियों का निपटान कर दिया था।

भारत द्वारा शत्रु संपत्ति का विनियमन 

  • वर्ष 1968 में लागू शत्रु संपत्ति अधिनियम में भारत के ‘शत्रु संपत्ति संरक्षक’ (Custodian of Enemy Property for India: CEPI) के पास शत्रु संपत्ति के निहित होने का प्रावधान किया गया था।
    • CEPI गृह मंत्रालय के अधीन एक विभाग है, जिसका गठन वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध और 1962 व 1967 में हुए दो भारत-चीन युद्धों के बाद हुआ था।
    • CEPI के माध्यम से केंद्र सरकार देश के राज्यों में फैली शत्रु संपत्तियों पर निगरानी एवं कब्ज़ा रखती है।
  • वर्ष 2017 में संसद ने शत्रु संपत्ति (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक, 2016 पारित किया, जिसने शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 और सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत अधिभोगियों की बेदखली) अधिनियम, 1971 में संशोधन किया।
    • इसका मुख्य उद्देश्य इस संबंध में न्यायालय के फैसले के प्रभाव को नकारना था।
      • सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2005 के निर्णय के अनुसार, ‘शत्रु संपत्ति का संरक्षक’ ट्रस्टी के रूप में संपत्ति का प्रबंधन कर रहा है और शत्रु उसका कानूनी मालिक बना हुआ है। इसलिए, शत्रु की मृत्यु के बाद शत्रु संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को विरासत में मिलनी चाहिए।
    • संशोधित अधिनियम ने ‘शत्रु आश्रित’ और ‘शत्रु फर्म’ शब्दों की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें शत्रु के कानूनी वारिस (Legal Heir) एवं उत्तराधिकारी (Successor) को शामिल किया है, चाहे ‘वह भारत का नागरिक हो’ या किसी ऐसे देश का नागरिक हो जो शत्रु नहीं है; तथा शत्रु फर्म की उत्तराधिकारी फर्म को भी, चाहे उसके सदस्यों या भागीदारों की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
    • इन संशोधनों का प्रयोजन युद्ध के बाद पाकिस्तान एवं चीन चले गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों के उत्तराधिकार या हस्तांतरण के दावों से सुरक्षा प्रदान करना था।
    • इन संशोधनों ने कानूनी उत्तराधिकारियों को शत्रु संपत्ति पर किसी भी तरह के अधिकार से वंचित कर दिया। 
  • CEPI, केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति से, इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अपने अधीन निहित शत्रु संपत्तियों का निपटान कर सकता है तथा सरकार इस प्रयोजन के लिए संरक्षक को निर्देश जारी कर सकती है।

शत्रु संपत्ति का निपटान

  • वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने 'शत्रु संपत्तियों' के निपटान की निगरानी के लिए गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में एक मंत्रिसमूह का गठन किया था।
  • देश भर में सर्वे की गई 12,000 ‘शत्रु संपत्तियों’ की कीमत 1 लाख करोड़ आंकी गई है। 
  • शत्रु संपत्तियों के निपटान के लिए दिशा-निर्देशों में यह प्रावधान है कि यदि संपत्ति का मूल्य 1 करोड़ रुपए से कम है, तो CEPI को उस संपत्ति को खरीदने वाले व्यक्ति को खरीदने का विकल्प देना होगा। यदि वे ऐसा करने से मना करते हैं, तो संपत्ति की ई-नीलामी की जाएगी।
  • एक करोड़ रुपए से अधिक लेकिन 100 करोड़ रुपये से कम मूल्य की संपत्तियों का निपटान CEPI द्वारा ई-नीलामी के माध्यम से या शत्रु संपत्ति निपटान समिति द्वारा निर्धारित दर के माध्यम से किया जाएगा, जब तक कि केंद्र सरकार इसे अपने पास रखने का विकल्प नहीं चुनती है।
  • सभी नीलामियां मेटल स्क्रैप ट्रेड कॉरपोरेशन लिमिटेड के माध्यम से होती हैं, जो केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का एक उपक्रम है। 
  • वर्ष 2023 में केंद्र सरकार ने शेयर एवं सोने जैसी चल 'शत्रु संपत्तियों' के निपटान से 3,400 करोड़ से अधिक की कमाई की है।

संबंधित मुद्दे 

  • वर्ष 1968 में भारत सरकार द्वारा शत्रु संपत्ति अधिनियम पारित किए जाने के बाद विदेश जाने वाले सभी राजा एवं नवाबों की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया।
  • इस कानून के परिणामस्वरूप जिस व्यक्ति ने आपसी सद्भाव से किसी पूर्व भारतीय नागरिक से संपत्ति खरीदी थी, उस पर अपनी संपत्ति खोने का खतरा पैदा हो गया, जबकि लेन-देन एवं खरीद कानूनी थी।
  • इस मुद्दे को अनेक बार अनुच्छेद 14 के तहत कानूनी रूप से चुनौती दी गई है, जो समानता के अधिकार को सुनिश्चित करता है और नागरिकों को उनकी सरकार की मनमानी कार्रवाइयों से बचाता है।
  • भारतीय व्यक्ति, जो शत्रु संपत्तियों के कानूनी उत्तराधिकारी हैं, उन्हें अपनी संपत्ति विरासत में मिलने से मना किया गया है, जिससे वे राज्य के शत्रु बन गए हैं।
  • वर्ष 2017 से विधेयक पारित होने के बाद शत्रु संपत्ति से संबंधित मुद्दों पर क्षेत्राधिकार वाली अदालत केवल सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय हैं, जिससे उन लोगों के विकल्प सीमित हो गए जिनके संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
  • शत्रु संपत्ति से जुड़े विवादों में सिविल अदालतों या अन्य प्राधिकारियों द्वारा सुनवाई की आवश्यकता नहीं होती है।

महमूदाबाद के राजा की विरासत का मुद्दा

  • महमूदाबाद के तत्कालीन राजा के पास हजरतगंज, सीतापुर एवं नैनीताल में कई बड़ी संपत्तियां थीं। विभाजन के बाद राजा इराक चले गए और बाद में लंदन में बस गए। 
  • हालाँकि, उनकी पत्नी और पुत्र मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान भारतीय नागरिक के रूप में भारत में ही रह गए और स्थानीय राजनीति में सक्रिय रहे।
  • वर्ष 1968 में भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति अधिनियम पारित किये जाने के बाद राजा की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया। राजा की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने संपत्ति पर अपना दावा पेश किया। 
  • 30 साल से अधिक समय तक चली कानूनी लड़ाई के बाद 21 अक्तूबर, 2005 को न्यायमूर्ति अशोक भान और न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने उनके पुत्र के पक्ष में फैसला सुनाया।
  • इस फैसले से देश भर की अदालतों में आगे की याचिकाओं के लिए द्वार खुल गए, जिनमें पाकिस्तान चले गए लोगों के वास्तविक या कथित रिश्तेदारों ने उपहार दस्तावेज पेश कर दावा किया कि वे शत्रु संपत्ति के वास्तविक स्वामी हैं।
  • 2 जुलाई, 2010 को तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, जिसके तहत अदालतों को ‘सरकार द्वारा शत्रु संपत्ति को कस्टोडियन से वापस लेने का आदेश देने से’ रोक दिया गया। 
  • इस तरह 2005 का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश निष्प्रभावी हो गया और कस्टोडियन ने फिर से राजा की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया।
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