(प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी) (मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3; संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
भारत में पारिस्थितिकीय संकट एवं पर्यावरणीय ह्रास के मुद्दे पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्य सभा में भारत सरकार के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किये गए प्रयासों का ब्यौरा प्रस्तुत किया।
भारत में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संरक्षण
संकटग्रस्त पौधों का संरक्षण
- भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) के अनुसार वर्तमान में भारत में पाई जाने वाली 2970 पौधों की प्रजातियों को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में शामिल किया गया है।
- इनमें से गंभीर रूप से संकटग्रस्त (155), लुप्तप्राय (274), कमजोर (213) और निकट संकटग्रस्त (80) हैं, जिनके लिए BSI और अन्य संबंधित संस्थानों द्वारा संरक्षण उपाय किए जा रहे हैं।
- 2043 से अधिक प्रजातियों को 'सबसे कम चिंताजनक' के रूप में वर्गीकृत किया गया है और उन्हें तत्काल संरक्षण उपायों की आवश्यकता नहीं है।
संकटग्रस्त जीवों का संरक्षण
- भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) के अनुसार वर्तमान में भारत से 7076 जीव-जंतु प्रजातियों को IUCN रेड लिस्ट की विभिन्न श्रेणियों में शामिल है, जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।
- IUCN रेड लिस्ट में से 3739 प्रजातियाँ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की विभिन्न अनुसूचियों के अंतर्गत संरक्षित हैं तथा अन्य प्रजातियाँ देश के संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के अंतर्गत संरक्षित हैं।
- एक्स-सीटू संरक्षण के माध्यम से BSI देश के विभिन्न फाइटो-भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित अपने 16 वनस्पति उद्यानों में IUCN रेड लिस्ट में सूचीबद्ध प्रजातियों सहित अन्य पौधों का संरक्षण करता है।
समुद्री प्रजातियों का संरक्षण
- समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के लिए वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत देश के तटीय राज्यों और द्वीपों में संरक्षित क्षेत्रों का एक नेटवर्क बनाया गया है।
- समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के लिए 106 तटीय और समुद्री स्थलों की पहचान की गई है और उन्हें महत्वपूर्ण तटीय और समुद्री जैव विविधता क्षेत्रों (ICMBA) के रूप में चिह्नित किया गया है।
- कई संकटग्रस्त समुद्री प्रजातियों को शिकार से सुरक्षा प्रदान करते हुए वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची I और II में शामिल किया गया है।
- भारत में समुद्री कछुओं और उनके आवासों के संरक्षण के उद्देश्य से राष्ट्रीय समुद्री कछुआ कार्य योजना जारी है।
विभिन्न नियमों एवं विनियमों का प्रभावी क्रियान्वयन
- वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन कर अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में भारतीय तट रक्षकों को प्रवेश, तलाशी, गिरफ्तारी और हिरासत में लेने का अधिकार दिया गया है।
- समुद्री मेगाफौना के प्रबंधन के लिए वर्ष 2021 में 'समुद्री मेगाफौना स्ट्रैंडिंग प्रबंधन दिशानिर्देश' जारी किए गए हैं।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रख्यापित तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना, 2019 में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESA) पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- जैसे कि मैंग्रोव, समुद्री घास, रेत के टीले, प्रवाल भित्तियाँ, जैविक रूप से सक्रिय मिट्टी के मैदान, कछुओं के घोंसले के मैदान और केंकड़े के आवास।
आर्द्र भूमि संरक्षण
जागरूकता प्रसार
आर्द्रभूमियों के मूल्यों और उपयोग के बारे में समाज के सभी वर्गों के बीच जागरूकता प्रसार के लिए प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को राष्ट्रीय स्तर पर विश्व आर्द्रभूमि दिवस मनाया जाता है।
नामित रामसर स्थल
- जून, 2024 तक देश में 82 आर्द्रभूमियाँ हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय महत्व के रामसर स्थल के रूप में नामित किया गया है।
- सरकार ने आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए 80 रामसर स्थल, 16 राज्यों में 45 जैव विविधता विरासत स्थल, भारत की मुख्य भूमि, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में 7517 किलोमीटर के तटीय विनियमन क्षेत्र की घोषणा की है।
- वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत कई मीठे पानी की आर्द्रभूमियों को संरक्षित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- आर्द्रभूमियों के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017 को अधिसूचित किया गया है, एवं इसके कार्यान्वयन के लिए व्यापक दिशा-निर्देश प्रकाशित किए गए हैं।
विभिन्न योजनाएँ एवं कार्यक्रम
- समुद्री राज्यों में मैंग्रोव के लिए आवास पुनर्स्थापन और संवेदनशील वन पारिस्थितिकी तंत्र में वनीकरण जैसे उपाय किए गए हैं।
- आर्द्रभूमियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए, राष्ट्रीय जलीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण योजना (NPCA) नामक केन्द्र प्रायोजित योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
- आर्द्रभूमि पर ज्ञान साझा करने और सूचना प्रसार को सुविधाजनक बनाने के लिए "भारतीय आर्द्रभूमि पोर्टल" (indianwetlands.in) लॉन्च किया गया है।