(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, येल और कोलंबिया विश्वविद्यालयों द्वारा जारी ‘पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI)2022’ में भारत 180 देशों की सूची में सबसे निचले पायदान पर रहा है। हालाँकि, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, इसके मूल्यांकन में प्रयोग किये गए संकेतक ‘निराधार धारणाओं’ पर आधारित हैं।
क्या हैपर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI)
- पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक देशों की उनके पर्यावरणीय स्थिति के आधार पर एक अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग प्रणाली है।यह एक द्विवार्षिक सूचकांक है जिसे सर्वप्रथम वर्ष 2002 में विश्व आर्थिक मंच द्वारा ‘पर्यावरण वहनीयता सूचकांक’(ESI) के रूप में प्रारंभ किया गया था।
- इस सूचकांक में जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन, पर्यावरणीय स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्रजीवन शक्ति सहित 11 श्रेणियों में 40 प्रदर्शन संकेतकों का उपयोग किया गया है।
- ये संकेतक अंतर्राष्ट्रीय स्तर परविशिष्ट पर्यावरणीय मुद्दों के लिये स्थापित सतत लक्ष्यों को पूरा करने में देशों की स्थिति का मापन करते हैं।
- ई.पी.आई.-2022 में कुछ नए मापदंडों को शामिल किया है जिसमें वर्ष 2050 में शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की दिशा में प्रगति के अनुमानों के साथ-साथ नए वायु गुणवत्ता संकेतक और धारणीय कीटनाशकों का उपयोग शामिल हैं।
भारत की स्थिति
- भारतवर्ष 2020 में 27.6 अंकों के साथ 168वें स्थान पर था, जबकि वर्ष 2022में 18.9 अंकों के साथ वह 180वें स्थान पर आ गयाहै।
- वर्ष 2022 में इस सूची में शीर्ष तीन स्थानों पर क्रमश: डेनमार्क, यूनाइटेड किंगडम और फ़िनलैंड हैं, जबकि अंतिम तीन स्थानों पर क्रमश: भारत (180वें), म्यांमार और वियतनाम हैं।
- भारत का स्थान सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम और म्यांमार के बादहै।
- पारिस्थितिक तंत्रजीवन शक्ति, जैव विविधता, जैव विविधता आवास सूचकांक, प्रजाति संरक्षण सूचकांक,आर्द्रभूमि क्षति, वायु गुणवत्ता, अपशिष्ट प्रबंधन, जलवायु नीति, पी.एम. 2.5, भारी धातुएँ जैसे पानी में सीसा सहित कई संकेतकों में भारत की रैंक लगभग निम्नतम स्थान पर हैं।
- साथ ही,भारत का स्कोर कानून का शासन,भ्रष्टाचार नियंत्रण और सरकारी प्रभावशीलता में भी अत्यंत कम है।
भारत की निम्न रैंक के कारण
- बिगड़ती वायु गुणवत्ता और तेजी से बढ़ता ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भारत के कम स्कोर के पीछे प्राथमिक कारण हैं।
- बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन के दहन से वायु की गुणवत्ता खराब होती है तथा दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 भारत में है।
- भारत में वार्षिक प्लास्टिक उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। हालांकि भारत में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध 1 जुलाई से प्रभावी होने वाला है।
- भारत में हर साल वायु प्रदूषण से 16 लाख से अधिक लोग मारे जाते हैं। साथ ही घरेलू ईंधन दहन से पार्टिकुलेट मैटर (PM) उत्सर्जन अत्यधिक मात्रा में होता है।
- इंडोनेशिया के साथ भारत समुद्री प्लास्टिक कचरे का शीर्ष उत्पादक है।
भारतकी आपत्तियाँ
- इस संबंध में पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की आपत्तियाँ एवं तर्क इस प्रकार हैं-
- प्रदर्शन का आकलन करने के लिये प्रयुक्त कुछ संकेतकों का अनुमानों एवं अवैज्ञानिक विधियों पर आधारित होना।
- आकलन के लिये आधारभूत डाटा का प्रयोग नकिया जाना।
- कुछसंकेतकोंको अधिक भारांश (Weightage) दिये जाने को लेकर अस्पष्टता।
- कई संकेतकों का भारांश परिवर्तन से भारत की रैंकिंग का कम होना।
- ब्लैक कार्बन वृद्धि में भारत का स्कोर वर्ष 2020 में 32 से बढ़कर वर्ष 2022 में 100(शीर्ष) हो गया है किंतु इस संकेतक का भारांश वर्ष 2020 में 0.018 से वर्ष 2022में 0.0038कर दिया गया है।
- वर्ष 2050 के आधार पर शुद्धशून्य लक्ष्यों में शामिल हरितगृह गैस (GHG) अनुमानों की गणना।
- भारत ने वर्ष 2070 के लिये शुद्ध शून्य लक्ष्य निर्धारित किया है जबकि विकसित देशों ने यह लक्ष्य वर्ष 2050 निर्धारित किया है।
- कई विकसित देशों के विपरीत गरीब देशों में जी.एच.जी. उत्सर्जन कुछ समय के लिये बढ़ते रहने की उम्मीद है।
अनुमानों को लेकर आपत्तियाँ
- हरितगृह गैसउत्सर्जनके अनुमान की गणना मॉडलिंग केबजाए विगत 10 वर्षों में उत्सर्जन में परिवर्तन की औसत दर के आधार पर करना।
- मॉडलिंग में लंबी अवधि के लिये अक्षय ऊर्जा क्षमता और उपयोग की सीमा, अतिरिक्त कार्बन सिंक, ऊर्जा दक्षता को ध्यान में रखा जाता है।
- हरितगृह गैस का शमन करने वाले महत्वपूर्ण कार्बन सिंक (जैसे- जंगल और आर्द्रभूमि) को ध्यान में नरखा जाना।
- प्रतिव्यक्ति हरितगृह गैस उत्सर्जन को कम भारांश (2.6%) देना।
- किसी भी संकेतक में अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और प्रक्रिया अनुकूलन को अधिक महत्त्व न देना।
- पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण की गुणवत्ता की तुलना में उसके विस्तार को अधिक महत्त्व देना।
- कृषि जैव-विविधता, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य क्षति और अपशिष्ट जैसे संकेतकों को नशामिल किया जाना।
- ये संकेतक अत्यधिक कृषि आबादी वाले विकासशील देशों के लिये महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष
- ई.पी.आई. की विसंगतियों के बावजूद सरकार को इस तथ्य की अनदेखी नहीं करनी चाहिये कि इस सूचकांक के प्रारंभ होने के बाद से भारत कभी भी शीर्ष 150 देशों में शामिल नहीं रहाहै।
- ई.पी.आई. रिपोर्ट में भारत में गंभीर स्थानीय पर्यावरणीय मुद्दे को उजागर किया गया है, जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है।
- इस सूचकांक में कुछ बहुत छोटे और गरीब देशों ने भी बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत को सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें तुरंत अपनाने की आवश्यकता है।