(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
वर्तमान में विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो भारत जैसे विकासशील देशों में विशेष रूप से प्रासंगिक है। ऐसे में पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) एक ऐसी प्रणाली के रूप में उभरा है जो राष्ट्रों को आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायता करता है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन(EIA) के बारे में
- यह किसी प्रस्तावित विकासात्मक परियोजना या कार्यक्रम को मंजूरी दिए जाने से पहले उसके संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करने की एक प्रक्रिया है।
- इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर इम्पैक्ट असेसमेंट (IAIA) पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन को प्रमुख निर्णय लिए जाने और प्रतिबद्धताएँ व्यक्त किए जाने से पहले विकास प्रस्तावों के जैवभौतिक , सामाजिक और अन्य प्रासंगिक प्रभावों की पहचान, मूल्यांकन और शमन की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करता है।
- EIA की स्थापना सबसे पहले वर्ष 1969 में अमेरिका में की गई थी। भारत के संदर्भ में इस प्रक्रिया की शुरुआत वर्ष 1978-79 में नदी घाटी परियोजनाओं के प्रभाव आकलन के साथ की गई थी।
- बाद में औद्योगिक गतिविधियों , खनन कार्यों और शहरी विकास पहलों सहित विभिन्न विकसात्मक परियोजनाओं तक इसका विस्तार किया गया।
EIA में शामिल चरण
- स्क्रीनिंग : स्क्रीनिंग के अंतर्गत किसी परियोजना के आकार, प्रकृति और संभावित प्रभावों के आधार EIA की आवश्यकता के संदर्भ में निर्णय लिया जाता है।
- पूर्वानुमान : इसके अंतर्गत परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों की पहचान की जाती है एवं इसके लिए व्यवहार्य विकल्पों व शमन उपायों का विश्लेषण किया जाता है।
- सार्वजनिक परामर्श: यह EIA प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण चरण है जो प्रभावित स्थानीय समुदायों और अन्य हितधारकों को परियोजना के संबंध में अपनी चिंताओं को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
- निर्णय लेना: EIA रिपोर्ट की गहन समीक्षा के आधार पर किसी परियोजना की स्वीकृति या अस्वीकृति संबंधी निर्णय लिए जाते हैं ।
उद्देश्य
- इसका प्राथमिक उद्देश्य विकास परियोजनाओं के पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों की भविष्यवाणी और मूल्यांकन करना है।
- यह प्रस्तावित परियोजना का गहन विश्लेषण प्रदान करके निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करने के साथ ही नियोजन चरण में संभावित नकारात्मक प्रभावों की पहचान करके सतत विकास को बढ़ावा देता है।
- यह उचित विकल्प और शमन तंत्र का भी सुझाव देता है।
- EIA सार्वजनिक परामर्श आयोजित करके विकासात्मक निर्णय लेने में लोकप्रिय भागीदारी को बढ़ावा देता है जहां नागरिक किसी परियोजना के संबंध में अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकते हैं।
भारत में EIA हेतु विधिक प्रावधान
- भारत ने वर्ष 1994 में पर्यावरण संरक्षणअधिनियम 1986, के तहत अपने पहले EIA मानदंडों को अधिसूचित किया।
- इसके माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच, उनका उपयोग करने और उन्हें प्रभावित (प्रदूषित) करने वाली गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक कानूनी ढाँचा स्थापित किया गया।
- इसके बाद विकास परियोजना को पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करने के लिए ईआईए प्रक्रिया से गुज़रना अनिवार्य बना दिया गया।
- अब तक इसमें दो बार वर्ष 2006 और 2020 में संशोधन किया जा चुका है।
- वर्ष 2020 में किए गए संशोधनों का उद्देश्य प्रासंगिक न्यायालयी आदेशों को शामिल करने और EIA प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना था।
पर्यावरणीय शासन एवं सतत विकास के लिए सरकारी पहल
पर्यावरणीय सूचना प्रणाली
- पर्यावरणीय सूचना प्रणाली (Environmental Information System: ENVIS) की स्थापना पर्यावरण क्षेत्र से संबंधित जानकारी एकत्र करने, मिलान करने, संग्रहीत करने, पुनः प्राप्त करने और प्रसारित करने के लिए की गई थी।
- यह विषय-विशिष्ट पर्यावरण डाटाबेस का एक वेब-आधारित वितरित नेटवर्क है जो पर्यावरणीय मुद्दों के संबंध में निर्णय लेने में सहायता करता है।
- यह शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और जनता को बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
परिवेश
- परिवेश (Pro-Active and Responsive facilitation by Interactive, Virtuous, and Environmental Single Window Hub : PARIVESH) सभी हरित मंजूरियों के प्रशासन और पूरे देश में उनके अनुपालन की निगरानी के लिए एक व्यापक एकल-खिड़की समाधान है।
- इसका उद्देश्य पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में देरी को कम करने, पारदर्शिता बढ़ाने और दक्षता में सुधार करने के लिए डिजिटल माध्यम का उपयोग करना है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना मसौदा 2020
- भारत में पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया वर्तमान में पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2006 द्वारा विनियमित है।
- वर्ष 2020 में, केंद्र सरकार द्वारा मसौदा पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना जारी की गयी जो वर्ष 2006 की अधिसूचना को प्रतिस्थापित करती है।
- हालाँकि मसौदा अधिसूचना अभी भी लंबित है क्योंकि इसके कुछ प्रावधान पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को कमजोर करने के साथ ही सार्वजनिक भागीदारी कम करते हैं।
- प्रस्तावित प्रावधान :
- इसमें EIA प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने का प्रावधान है जिससे परियोजनाओं में होने वाली देरी एवं प्रशासनिक बोझ को कम किया जा सकता है।
- इसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग पारदर्शिता बढ़ाने के साथ ही बेहतर जागरूकता और सार्वजनिक जांच को बढ़ावा दे सकते हैं।
- मंजूरी के बाद निगरानी एवं अनुपालन के प्रावधान भी मंजूरी प्राप्त होने के बाद मानदंडों के उल्लंघन को रोकने में मदद कर सकते हैं।
- ड्राफ्ट में विभिन्न परियोजना प्रकारों और क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार EIA आवश्यकताओं में कुछ लचीलापन प्रदान किया गया है, जिससे मंजूरी प्राप्त करने की प्रक्रिया अधिक कुशल हो जाती है।
- विवादास्पद मुद्दे :
- मसौदे में सबसे विवादास्पद बदलावों में से एक है सार्वजनिक सुनवाई के लिए नोटिस अवधि को 30 दिन से घटाकर 20 दिन करना है।
- यह पर्याप्त सार्वजनिक परामर्श और जागरूकता के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न करता है।
- प्रस्तावित मसौदे में तेल और गैस, जलविद्युत, सिंचाई और विनिर्माण क्षेत्रों सहित कई तरह की परियोजनाओं को सार्वजनिक जांच से छूट देने का प्रस्ताव है, जबकि इन सभी परियोजनाओं से व्यापक पर्यावरणीय क्षति होने की संभावना है।
- प्रस्तावित अधिसूचना में कार्योत्तर मंजूरी संबंधी प्रावधान भी शामिल किये गये हैं,जो परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी के बिना स्थापित होने के बाद नियमित करने की अनुमति देता है।
- मसौदे में उल्लंघनों और गैर-अनुपालन की सार्वजनिक रिपोर्टिंग को शामिल नहीं किया गया है।
- इससे पर्यावरण उल्लंघनों की पहचान करने और उन्हें संबोधित करने के लिए सरकारी अधिकारियों पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे पारदर्शिता एवं जवाबदेही से समझौता हो सकता है।
आगे की राह
- न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव वाली परियोजनाओं को त्वरित मंजूरी देने के लिए एक कुशल, सुव्यवस्थित और पारदर्शी प्रक्रिया बनाने के लिए नौकरशाही तथा कानूनी आवश्यकताओं में संशोधन के माध्यम से समाधान किया जाना चाहिए
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के सार्वजनिक सहभागिता घटक को दीर्घ सार्वजनिक परामर्श अवधि तथा क्षेत्रीय भाषाओं में सूचना उपलब्ध करा कर और अधिक मजबूत किए जाने की आवश्यकता है।
- ताकि प्रभावित समुदायों को अपनी चिंताओं को सुनने तथा निर्णय लेने में भाग लेने का अवसर मिले।
- सर्वोच्च न्यायालय ने भी EIA के महत्व को रेखांकित करते हुए टिपण्णी की है कि यह आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से सुरक्षा के लिए नियंत्रण एवं संतुलन की एक प्रणाली प्रदान करता है।
निष्कर्ष
वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनने और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में घोषित विभिन्न प्रतिबद्धताओं को हासिल करने के लिए एक कुशल एवं प्रभावी EIA प्रक्रिया की आवश्यकता होगी जो भारत के आर्थिक एवं पारिस्थितिक लक्ष्यों से समझौता किए बिना सही संतुलन बनाए रखे। ऐसे में मौजूदा EIA प्रक्रिया में बदलाव इस मूलभूत सिद्धांत पर आधारित होने चाहिए।