New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 26 Feb, 11:00 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 15 Feb, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124 GS Foundation (P+M) - Delhi: 26 Feb, 11:00 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 15 Feb, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124

केन-बेतवा परियोजना के पर्यावरणीय निहितार्थ

(प्रारंभिक परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारत का प्राकृतिक भूगोल, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव विविधता तथा राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं में जल स्रोत  एवं सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, आपदा और आपदा प्रबंधन तथा सिंचाई प्रणाली से संबंधित विषय)
 

संदर्भ

विश्व जल दिवस के अवसर पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश सरकार के मध्य केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना के लिए प्रधानमंत्री की उपस्थिति में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।

केन-बेतवा लिंक परियोजना

  • वर्ष 1980 के दशक में पहली बार केन-बेतवा परियोजना को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान सामने लाया गया। तभी से पूर्व केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती इस परियोजना के लिए काम कर रही हैं।
  • यह केन तथा बेतवा नदियों को आपस में जोड़ने के लिए 'राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना' के तहत पहली परियोजना है।
  • राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा प्राप्त इस परियोजना की लागत का 90% हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है।इस परियोजना के तहत केन नदी के अधिशेष जल को बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाएगा।
  • ध्यातव्य है कि ये दोनों नदियाँ यमुना नदी की सहायक नदियाँ है। केन तथा बेतवा नदी का उद्गम क्रमशः मध्यप्रदेश में स्थित विंध्याचल पर्वत तथा मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के कुम्हारागांव से होता है।
  • यह परियोजना बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित है, जो कि सूखाग्रस्त क्षेत्र है। इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के 13 जिलें शामिल हैं। इस परियोजना के बाद बुंदेलखंड क्षेत्र में भू-जल पुनर्भरण का विस्तार तथा बाढ़ की समस्या को कम किया जाएगा।
  • जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से बुंदेलखंड के पानी से भरे क्षेत्र, विशेष रूप से मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी, रायसेन और उत्तर प्रदेश के बाँदा, महोबा, झाँसी और ललितपुर क्षेत्र को भारी लाभ होगा।
  • केन-बेतवा लिंक परियोजना के दो चरण हैं। प्रथम चरण के अंतर्गत, दौधन बाँध (Daudhan dam) तथा इसके अतिरिक्त निम्न स्तर की सुरंग, उच्च स्तर की सुरंग, केन-बेतवा लिंक नहर और विद्युत गृह जैसे कार्यों को पूरा किया जाएगा। जबकि द्वितीय चरण में, तीन घटक शामिल होंगे जिसमें लोअर ऑयर बाँध (Lower Orr dam), बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना (Bina complex project) और कोठा बैराज (Kotha barrage) का निर्माण किया जाएगा।

भारत में नदी-जोड़ो परियोजना का विकासक्रम

  • 1970 के दशक में, नदी जल की कमी वाले क्षेत्र में अधिशेष जल को स्थानांतरित करने का विचार तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री (पहले जल शक्ति मंत्रालय सिंचाई मंत्रालय के रूप में जाना जाता था) डॉ. के.एल. राव द्वारा रखा गया।
  • डॉ. राव ने जल-संपन्न क्षेत्रों से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी स्थानांतरित करने के लिए एक राष्ट्रीय जल ग्रिड के निर्माण का सुझाव दिया। इसी तरह, कप्तान दिनशॉ जे दस्तूर ने एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पानी के पुनर्वितरण के लिए गारलैंड नहर का प्रस्ताव रखा।
  • हालाँकि, सरकार ने इन दोनों विचारों को आगे नहीं बढ़ाया। अगस्त, 1980 में सिंचाई मंत्रालय ने देश में अंतर बेसिन जल हस्तांतरण की परिकल्पना के लिए जल संसाधन विकास के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan) तैयार की।
  • एन.पी.पी. में दो घटक शामिल थे: (i) हिमालयी नदियों का विकास; और (ii) प्रायद्वीपीय नदियों का विकास। एन.पी.पी. के आधार पर, राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) ने 30 नदी लिंक की पहचान की जिसमें 16 प्रायद्वीपीय और 14 हिमालयी नदियों के विकास के तहत शामिल की गईं। तत्पश्चात, तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान नदी-जोड़ो परियोजना संबंधी विचार को पुनर्जीवित किया गया। केन-बेतवा लिंक परियोजना प्रायद्वीपीय नदियों के विकास के तहत 16 नदी जोड़ने वाली परियोजनाओं में से एक है।

नदी-जोड़ो परियोजना संबंधी कुछ अन्य उदाहरण

  • पूर्व में भी कई नदी-जोड़ो परियोजनाओं को शुरू किया जा चुका है। उदाहरण स्वरूप, पेरियार परियोजना के तहत, पेरियार बेसिन से वैगाई (वैगी) बेसिन तक पानी के स्थानांतरण की परिकल्पना की गई,इस परियोजना को वर्ष 1895 में कमीशन किया गया था।
  • इसी तरह कुछ अन्य परियोजनाएँ भी शुरू की गई थीं, जैसे- परम्बिकुलम अलियार, कुर्नूल कुडप्पा नहर, तेलुगु गंगा परियोजना और रावि-ब्यास-सतलज इत्यादि।

पर्यावरणीय चिंता

  • केन-बेतवा नदी परियोजना के दौधन बाँध के निर्माण के कारण 6,017 हेक्टेयर क्षेत्र जलमग्न हों जायेगा जिसमें से 4,206 हेक्टेयर क्षेत्र मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व के मुख्य बाघ संरक्षण क्षेत्र के भीतर स्थित है।
  • पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों और गिद्धों की आबादी को संरक्षण प्रदान किया जाता है जिसे यहाँ सफलतापूर्वक सुधार के साथ पूर्ण भी किया गया है।
  • केन-बेतवा लिंक परियोजना से जलमग्न होने वाली 12,500 हेक्टेयर भूमि में से 9,000 हेक्टेयर से अधिक को वन भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है एवं यह परियोजना लगभग 7.2 लाख पेड़ों को नष्ट कर सकती है।

नदी-जोड़ो परियोजना हेतु आवश्यक मंजूरी

आमतौर पर, नदी परियोजनाओं के अंतःक्षेपण के लिए विभिन्न प्रकार की मंजूरियों की आवश्यकता होती है। इनमें तकनीकी-आर्थिक मंजूरी (केंद्रीय जल आयोग द्वारा); वन और पर्यावरण मंजूरी (पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा); आदिवासी जनसंख्या का पुनःस्थापन और पुनर्वास (आर एंड आर) योजना (जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा) और वन्यजीव मंजूरी (केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा) शामिल हैं।

निष्कर्ष

यह आश्चर्य की बात है कि बाँध बनाए बिना जल-संरक्षण और जल-संचयन विधियों जैसे विकल्पों पर इस क्षेत्र में गंभीरता से विचार नहीं किया गया है। इस तरह के बड़े पैमाने पर समाधान हमेशा व्यवहार्य और सर्वश्रेष्ठ नहीं होते हैं। परियोजना के लाभों को भी गंभीर संदेह के रूप में देखना चाहिए क्योंकि इसके निर्माण से पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक नुकसान होगा जिसके अंतर्गत संरक्षित वन्यजीव भी शामिल हैं। अतः ऐसी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं के निर्माण से पूर्व पारिस्थितिकी संतुलन को बनाये रखने के संदर्भ में विचार करना आवश्यक है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR