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प्राकृतिक पूंजी लेखांकन एवं पारिस्थितिकी सेवाओं का मूल्यांकन

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 विषय- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

  • प्राकृतिक पूंजी लेखांकन एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन (NCAVIS) इंडिया फोरम- 2021 का वर्चुअल आयोजन 14, 21 और 28 जनवरी को किया जा रहा है।

प्राकृतिक पूंजी लेखांकन एवं पारिस्थितिकी सेवाओं का मूल्यांकन इंडिया फोरम- 2021

  • इसका आयोजन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र के सहयोग से सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) द्वारा किया जाएगा।
  • इसके अंतर्गत एम.ओ.एस.पी.आई. ने संबंधित हितधारकों, जैसे- पर्यावरणीय खातों का उपयोग करने वाले निर्माताओं और नीति निर्धारकों, के मध्य परामर्श प्रक्रिया हेतु समन्वय स्थापित करने के लिये एक तंत्र स्थापित किया है।
  • यूरोपीय संघ द्वारा वित्तपोषित और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) एवं जैवविविधता अभिसमय (CBD) द्वारा समर्थित प्राकृतिक पूंजी लेखांकन तथा पारिस्थितिकी सेवाएँ मूल्यांकन परियोजना में भारत एक भागीदार राष्ट्र है।
  • इस परियोजना में भारत के अतिरिक्त अन्य देश; ब्राज़ील, चीन, दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको हैं।
  • इस परियोजना के तहत ‘भारत–ई.वी.एल. उपकरण’ का विकास भी एक प्रमुख उपलब्धि है, जो विभिन्न अध्ययनों के आधार पर देश के विभिन्न राज्यों की पारिस्थितिकीय सेवाओं की एक स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत करने में सक्षम है। साथ ही, यह उपकरण उपलब्ध साहित्य और जैव भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार पूरे देश में अनुमानों की व्यावहारिकता के संदर्भ में आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
  • इस परियोजना में भागीदारी के कारण एम.ओ.एस.पी.आई. को यू.एन.–एस.ई.ई.ए. फ्रेमवर्क के अनुरूप पर्यावरणीय खातों के संकलन को शुरू करने और वर्ष 2018 से वार्षिक आधार पर अपने प्रकाशन ‘एनवायरनमेंट स्टेट्स इंडिया’ में पर्यावरणीय खातों को जारी करने में विशेष मदद मिली है।

प्राकृतिक पूंजी लेखांकन एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्याकंन

  • प्राकृतिक पूंजी को प्राकृतिक संपत्ति भंडार के रूप में जाना जाता है, जिसमें भू-तत्त्व, मृदा, वायु, जल तथा अन्य सभी जैविक तत्त्व शामिल होते हैं। मनुष्य को प्राकृतिक सेवाएँ एक विस्तृत शृंखला के रूप में प्राप्त होती हैं, जिन्हें पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ कहा जाता है।
  • मनुष्य प्राकृतिक पूंजी का अत्यधिक मात्रा में दोहन करता है जिनका पुनर्भुगतान किया जाना आवश्यक है। इसके लिये वस्तुओं का पुनर्नवीनीकरण तथा कचरे का पुनर्चक्रण किया जाना चाहिये।
  • प्राकृतिक पूंजी लेखांकन (NCA) एक ऐसी पद्धति है जिसका प्रयोग प्राकृतिक संसाधनों के उपभोग से संबंधित आय और लागत को समायोजित करने के लिये किया जाता है। यह पद्धति वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुमोदित की गई एक रूपरेखा पर आधारित है, जिसे ‘पर्यावरणीय आर्थिक लेखांकन प्रणाली’ (SEEA) कहा जाता है।
  • एन.सी.ए. यह आकलन करने में सहायता करता है कि उपलब्ध प्राकृतिक पूंजी का प्रबंधन और उपयोग संधारणीय रूप से किया गया है अथवा नहीं। एन. सी.ए. को पारंपरिक आर्थिक खातों के साथ संबद्ध किया जाता है, जिससे यह पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के मध्य संबंधों को समझने में सहायता करता है।

उद्देश्य

  • प्राकृतिक पूंजी लेखांकन का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न पारिस्थितिकी प्रणालियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के योगदान के संबंध में जानकारी एकत्र करना है। यह हरित जी.डी.पी. के मापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • यह बेहतर परिणामो के लिये राष्ट्रीय खातों में प्राकृतिक पूंजी एवं संसाधनों को शामिल करता है और यह अर्थव्यवस्था के बेहतर प्रबंधन के लिये जल, ऊर्जा आदि के क्षेत्रक आगत खाते से संबंधित विस्तृत आँकड़े प्रदान करता है।

आवश्यक दिशा-निर्देश

  • राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के आधार पर, भौतिक एवं मौद्रिक खातों में पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित विभिन्न खातों का चयन तथा एक राष्ट्रीय योजना का विकास करना।
  • ऐसे दिशानिर्देशों और कार्यप्रणालियों का विकास जो परियोजना के राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वयन तथा पर्यावरण आर्थिक लेखांकन प्रणाली - प्रायोगिक पारिस्थितिकी तंत्र लेखांकन (SEEA - EEA) के संदर्भ में वैश्विक अनुसंधान लक्ष्यों में योगदान देती हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्य 2030, आइची लक्ष्यों (Aichi target) और अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के संदर्भ में संकेतकों के एक समुच्चय को विकास करना।
  • सी.ई.ई.ए. और कॉर्पोरेट सततता रिपोर्टिंग के मध्य संरेखण में योगदान देना।
  • प्राकृतिक पूंजी लेखांकन पेशेवर समुदाय के परिवर्द्धन के लिये संवर्द्धित क्षमता निर्माण और ज्ञान को साझा करना।

भारत में प्राकृतिक पूंजी लेखांकन की पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1999-2000 में प्राकृतिक संसाधनों के लेखांकन पर भारत का पहला पायलट अध्ययन गोवा में कराया गया था। प्रथम अध्ययन की सफलता के बाद इसी तरह की लेखांकन प्रक्रियाएँ 8 राज्यों में दोहराई गईं।
  • इन लेखांकन पद्धतियों के क्रियान्वयन के परिणाम डॉ. किरीट पारिख की अध्यक्षता में वर्ष 2010 में गठित तकनीकी सलाहकार समिति द्वारा प्रस्‍तुत किये गए थे। इस समिति ने एक ‘राष्ट्रीय लेखांकन पद्धति’ विकसित करने की भी सिफारिश की थी।
  • वर्ष 2011 में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने प्रोफेसर पार्थ दासगुप्ता की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया जिसे भारत में ‘हरित राष्ट्रीय लेखांकन’ के लिये एक रूपरेखा तैयार करने का कार्य दिया गया।
  • भारत में संशोधित कार्यात्मक लेखांकन प्रणाली को वर्ष 2015 तक अमल में लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन यह प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो पाई है।
  • प्राकृतिक संसाधन लेखांकन (NRA) डेटाबेस तैयार करने के लिये राज्यों से आवश्‍यक जानकारियां प्राप्त करने संबंधी कार्य लगातार किये जा रहे हैं। इसके लिये गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और मेघालय सहित कई राज्यों में पायलट अध्ययन कराए गए हैं।

निष्कर्ष

प्राकृतिक पूंजी लेखांकन आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के मध्य संतुलन स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। साथ ही, यह भारत को एक प्रबंधन रणनीति तैयार करने में भी सहायता करेगा, जो अन्य पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं जैसे बाढ़, भूजल पुनर्भरण आदि मुद्दों के मध्य संतुलन स्थापित करते हुए आर्थिक विकास में योगदान देती हैं। अतः प्राकृतिक पूंजी लेखांकन के उपयोग से ‘व्यापक आर्थिक विकास व्‍यवस्‍था’ की बजाय ‘प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग एवं संरक्षण करने वाली आर्थिक विकास प्रणाली’ को अपनाया जाना चाहिये, जो हरित लेखांकन और समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा।

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